दिव्य, अलौकिक एवं एकमेवाद्वितीय सनातन संस्था !

मुख्य उद्देश्य – ‘आनंद (ईश्वर) प्राप्ति हेतु साधना सिखाना’ अध्यात्म का ज्ञान अगाध एवं अनंत है । सामान्य लोगों को वह कठिन लग सकता है अथवा उसमें दी गई उपासनाओं में से निश्चित रूप से कौनसी उपासना करनी चाहिए ?, यह प्रश्न उठता है । ‘पूजा, मंदिर में जाना, उपवास रखना, तीर्थयात्रा, ग्रंथवाचन, कथा-कीर्तन, व्रत करना अर्थात भगवान का कुछ करना’, यह बात सामान्य लोगों को ज्ञात होती है; परंतु आनंदप्राप्ति हेतु अर्थात ईश्वरप्राप्ति की दिशा में अग्रसर होने हेतु ‘काल के अनुसार प्रतिदिन कार्यान्वयन के स्तर पर योजनाबद्ध साधना कौनसी है तथा वह कैसे करनी चाहिए ?’, यह सनातन संस्था ने सर्वप्रथम बताया । यही सनातन संस्था द्वारा बताई जानेवाली साधना की विशेषता है । आनंदप्राप्ति प्राणिमात्र के जीवन का एकमात्र उद्देश्य होता है । हम जो कुछ भी करते हैं, वह आनंद मिलने के लिए करते हैं तथा आनंद कैसे प्राप्त करना चाहिए, यह केवल अध्यात्मशास्त्र ही सिखा सकता है, यही बात सनातन संस्था ने जनमानस पर अंकित की ।

संस्थापक का अल्प परिचय एवं सनातन संस्था की स्थापना

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी अंतरराष्ट्र्रीय ख्याति प्राप्त मनोविकार विशेषज्ञ तथा सम्मोहन चिकित्सा विशेषज्ञ रह चुके हैं । उन्होंने वर्ष १९९९ में ‘सनातन संस्था’ की स्थापना की । इंदौर (मध्य प्रदेश) के संत भक्तराज महाराजजी उनके गुरु तथा संस्था के प्रेरणास्रोत हैं । ‘जिज्ञासुओं को शास्त्रीय परिभाषा में अध्यात्म से परिचित करवाने’ तथा ‘व्यक्तिगत साधना के विषय में साधकों का मार्गदर्शन कर उन्हें आनंदप्राप्ति का मार्ग दिखाने’ के उद्देश्य से उन्होंने सनातन संस्था की स्थापना की । सनातन संस्था के माध्यम से आरंभिक काल में उन्होंने अभ्यासवर्ग तथा उसके उपरांत सत्संग आरंभ किए । वर्तमान में सनातन संस्था व्यापक स्तर पर विभिन्न माध्यमों से अध्यात्म एवं धर्म के प्रसार का कार्य कर रही है ।‘अध्यात्म’ ही मनुष्य जीवन का सार होता है । विश्व में रहनेवाले मानव का जीवन आनंदमय होने हेतु सनातन संस्था ने देवताओं की कृपा तथा संतों के आशीर्वाद से विगत २५ वर्षाें में अध्यात्म के क्षेत्र में वास्तव में मूलभूत, परिपूर्ण एवं उच्च श्रेणी का कार्य किया है !

सनातन संस्था द्वारा बताई गई साधना की विशेषताएं

१. वैज्ञानिक; परंतु सरल एवं सूत्रबद्ध भाषा में अध्यात्म एवं साधना बताना : मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या है ?, आनंद प्राप्त करने हेतु साधना क्यों आवश्यक है ?, कलियुग में सर्वश्रेष्ठ साधना कौनसी है ? साधना के मूलभूत तत्त्व कौनसे हैं ?, व्यष्टि एवं समष्टि साधना क्या होती है ? आदि सभी जानकारी सनातन संस्था ने वैज्ञानिक परिभाषा में सर्वप्रथम सत्संग, प्रवचन, ग्रंथ, श्रव्यचक्रिकाएं, नियतकालिक आदि विभिन्न माध्यमों से जिज्ञासु समाज तक पहुंचाई ।

२. शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति हेतु गुरुकृपायोग की निर्मिति ! : साधना अथवा ईश्वरप्राप्ति के भले ही अनेक मार्ग हों; परंतु प्रत्येक मार्ग में ‘गुरुकृपा ही केवलं शिष्य परम्मंगलम्’ अर्थात ‘केवल गुरुकृपा से ही शिष्य की प्रगति हो सकती है’, अध्यात्म का यह सिद्धांत लागू होने के कारण काल के अनुसार शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति हेतु सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी ने भक्तियोग, कर्मयोग एवं ज्ञानयोग आदि योगमार्गाें के संगम से ‘गुरुकृपायोग’ की निर्मिति की । उन्होंने इस योग के अंतर्गत स्वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, भावजागृति, नामजप, सत्संग, सेवा, त्याग, प्रीति आदि चरण बताए हैं । इन सभी चरणों के माध्यम से एक ही समय साधना करने का प्रयास करने से शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होती है ।

३. व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार साधना को प्राथमिकता देना : सनातन संस्था द्वारा बताई गई साधना की विशेषता यह है कि इसमें अध्यात्म के सिद्धांत ‘जितने व्यक्ति उतनी प्रकृतियां तथा उतने साधनामार्ग’, के अनुसार साधना बताई जाती है; इसलिए सनातन ‘संप्रदाय’ नहीं है ।

४. प्रत्यक्ष साधना की कृतियां करवा लेना ! : ‘अध्यात्म केवल २ प्रतिशत शब्दजन्य तथा ९८ प्रतिशत कार्यान्वयन का शास्त्र है’, यह सिद्धांत विश्व को बतानेवाली सनातन संस्था ही है । प्रत्यक्ष जीवन जीते समय साधना के सैद्धांतिक सूत्रों का जिज्ञासुओं से प्रयास करवाना सनातन संस्था की प्रमुख विशेषता है । अभी तक अनेक संतों ने ईश्वरप्राप्ति हेतु षड्रिपु निर्मूलन अथवा अंतःकरण शुद्धि की प्रक्रिया बताई है; परंतु सनातन के द्वारा बताई गई साधना की विशेषता यह है कि स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन की प्रक्रिया के माध्यम से ‘मन के दोषों को शास्त्रशुद्ध पद्धति से कैसे दूर किया जाए ?’, यह सिखाया जाता है, साथ ही साधक, शिष्य को आगे जाकर भक्त बनने हेतु ‘भावजागृति के प्रयास कैसे करने चाहिए ?’, यह भी सिखाया जाता है ।

५. साधक को संत बनानेवाली सनातन संस्था ! : उपरोक्त अनुसार सनातन संस्था के माध्यम से साधना कर साधकों की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होकर सनातन संस्था में संतों का एक समूह बन गया है । अभी तक १२० साधक संत बन चुके हैं, जबकि डेढ सहस्र से अधिक साधक संतपद प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हैं । जिसे सचमुच ही साधना कर ईश्वरप्राप्ति करने की प्रामाणिक इच्छा है, उसके लिए साधना का एक ‘आदर्श पाठ्यक्रम’ तथा उसकी ‘फलोत्पत्ति’ को इस माध्यम से सनातन संस्था ने समाज के सामने रखा है !

सनातन के चैतन्य प्रसार का समाजाभिमुख अध्यात्मकार्य

१. सनातन के संतों द्वारा दिए गए नामजप का लाभ मिलना : कोरोना महामारी के समय सनातन के संतों ने समाज के लिए नामजप दिया । अनेक लोगों को यह जप करने के कारण इस महामारी से शीघ्र स्वस्थ होने अथवा कोरोना संक्रमण न होने की विशिष्ट अनुभूतियां हुईं । सनातन के संतों द्वारा बताए गए नामजपादि उपचार करने से अनेक लोगों को उनकी समस्याओं का समाधान होने की अनुभूतियां हुई हैं तथा सनातन के साधकों को भी उनके कार्य में उत्पन्न बाधाएं दूर होने की अनुभूतियां हुई हैं ।

२. विशिष्ट आध्यात्मिक उपचारों का शोधकार्य ! : किसी भी शारीरिक, मानसिक या पारिवारिक कष्ट, किंबहुना किसी भी समस्या का ८०% कारण आध्यात्मिक होने से उसके निवारण हेतु नामजपादि आध्यात्मिक उपचार करने से कष्ट शीघ्र घटता है । ऐसे विभिन्न प्रकार के कष्टों पर प्राणशक्ति प्रणाली के माध्यम से नामजप ढूंढना, रिक्त बक्सों का उपयोग करना, भीमसेनी कर्पूर या प्राकृतिक इत्र, मोरपंख आदि सात्त्विक वस्तुओं का उपयोग, हाथ की विभिन्न मुद्राएं कर उपचार, नमक-पानी का उपयोग, कुदृष्टि निकालना, अमावस्या-पूर्णिमा तिथि से २ दिन पूर्व तथा २ दिन उपरांत अनिष्ट शक्तियों के कष्ट बढते हैं, यह बताकर इस अवधि में अधिकाधिक जप करने के लिए कहना, वास्तुशुद्धि हेतु वास्तु की छत पर नामजप-पट्टिकाओं का मंडल लगाना, वाहनशुद्धि आदि विविध उपचार बताए हैं । ये सरल उपचार कर जिज्ञासुओं को उनकी समस्याओं का समाधान होने की अनुभूतियां हुई हैं ।

३. देवता के ३०% तत्त्व से युक्त देवताओं के चित्रों की निर्मिति : साधना करनेवाले व्यक्ति के लिए ईश्वर से आंतरिक सान्निध्य बनाना सुगम हो, उपासक या साधक को उपासना करते समय संबंधित देवता के चैतन्य एवं शक्ति का अधिकाधिक लाभ मिले; इस हेतु सनातन संस्था ने शिव, श्रीकृष्ण, श्रीराम, हनुमान, गणेश, दत्त, महालक्ष्मी एवं दुर्गादेवी के चित्र बनाए हैं । धर्मशास्त्र में दिए देवताओं के वर्णन अनुसार उनके स्पंदनों को आकर्षित व प्रक्षेपित करनेवाले ये चित्र कला के माध्यम से साधना करनेवाले सनातन के साधकों ने संतों के मार्गदर्शन में बनाए हैं । इन चित्रों की ओर देखकर नामजप करने से अभी तक अनेक जिज्ञासुओं को भाव जागृत होना, प्रत्यक्ष देवता का अस्तित्व प्रतीत होना, संबंधित देवता के साथ आंतरिक सान्निध्य बढना आदि अनुभूतियां हुई हैं । इनमें संबंधित देवता का अधिकाधिक तत्त्व आए; इस हेतु आज भी स्पंदनशास्त्र तथा संतों के मार्गदर्शन के अनुसार शोधकार्य जारी है ।

४. सात्त्विक अक्षरोंवाली नामजप-पट्टियां : वास्तुशुद्धि, वाहनशुद्धि, साथ ही नामजप अच्छा होने हेतु सनातन संस्था ने अक्षरयोग के अनुसार सात्त्विक अक्षरों के आधार से विभिन्न नामजप की सात्त्विक नामजप-पट्टियां उपलब्ध करवाई हैं ।

५. देवताओं के नामजप, आरती गायन तथा स्तोत्रों को उचित पद्धति से बोलने का शास्त्र बताना : उपासना करते समय कोई भी कृति अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से उचित करना अति आवश्यक होता है; क्योंकि ऐसी कृति का ही परिपूर्ण फल मिलता है । कृति का शास्त्र अथवा सिद्धांत बताने से ही उसका महत्त्व शीघ्र समझ में आता है, इसे ध्यान में लेते हुए सनातन संस्था देवताओं के नामजप, आरती गायन तथा स्तोत्र आदि उचित पद्धति से कैसे बोलने चाहिए?, यह भी बताती है ।

चैतन्यदायी आश्रमों की निर्मिति !

जिन्हें आनंदप्राप्ति हेतु निवृत्तिमार्ग से पूर्णकालिक साधना करनी है, उनके लिए सनातन संस्था ने गुरुकुल के समान आश्रमों की निर्मिति की है । (सनातन के आश्रमों के विषय में विस्तृत लेख इसी विशेषांक में दिया गया है । – संपादक)

सनातन का सूक्ष्म का कार्य

महाभारत युद्ध से पूर्व श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, ‘‘तुम्हें केवल स्थूल से कृति करनी है । मैंने इसके पूर्व ही (सूक्ष्म से) युद्ध किया है ।’ प्रत्येक काल में धर्म-अधर्म के युद्ध में पहले भगवान सूक्ष्म से युद्ध करते हैं, तदुपरांत स्थूल से युद्ध होता है । आगामी तृतीय विश्वयुद्ध के समय तथा उसके उपरांत होनेवाले धर्मसंस्थापना के कार्य में भी यही प्रक्रिया है । भगवान ही सूक्ष्म से उसे पहले लड रहे हैं तथा उसके उपरांत वह स्थूल से होनेवाला है । सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का सूक्ष्म अवतारी कार्य भी हिमालय के अनेक ऋषितुल्य संत-महात्माओं की भांति ही है ।

भारत में आदि शंकराचार्य, संत ज्ञानेश्‍वर जैसे बचपन में ही संत बने, अनेक चमत्कार कर करने की क्षमता रखनेवाले तथा विश्व का मार्गदर्शन करने की क्षमता रखनेवालों के अनेक उदाहरण मिलते हैं     । इसलिए ऐसे बालकों को ‘आध्यात्मिक दृष्टि से असामान्य बालक’ अर्थात ‘स्पिरिच्युयल चाइल्ड प्रॉडिजी’ कहना पडेगा । ‘सनातन संस्था’ ने सूक्ष्म परीक्षण से स्वर्ग, मर्हलोक, जनलोक आदि उच्च लोकों से पृथ्वी पर जन्मे १ सहस्र से भी अधिक बालकों को पहचान कर उन्हें ‘दैवीय बालक’ कहा है । ये बालक सात्त्विक हैं तथा जन्म से ही उनमें भगवान के प्रति आकर्षण है तथा वे आध्यात्मिक दृष्टि से प्रगल्भ भी हैं । उनका आध्यात्मिक स्तर भी अच्छा होता है । आनेवाले हिन्दू राष्ट्र को चलाने में ये बालक सक्षम बनेंगे । सनातन संस्था ने ऐसे अनेक बालकों को पहचान कर समाज को उनकी विशेषताएं बताने का प्रयास किया है ।

हिन्दू राष्ट्र अर्थात रामराज्य की स्थापना हेतु केवल वातावरण बनाना ही नहीं, अपितु उसे चलानेवाली पीढी का भी निर्माण करना !

आदर्श राज्य अथवा रामराज्य को चलाने हेतु प्रजा भी उतनी ही नीतिमान, गुणसंपन्न तथा त्यागी होना आवश्यक होता है । साधनारत तथा धर्माधिष्ठित प्रजा एवं राजा ही आदर्श राज्य चला सकते हैं । ऐसी साधनारत एवं धर्माधिष्ठित प्रजा तैयार होने हेतु समाज को उचित साधना बताना, उसे धर्माचरण करने हेतु प्रेरित करना, धर्मशिक्षा का महत्त्व बताना आदि के माध्यम से सनातन संस्था धर्म एवं अध्यात्म का प्रसार कर रही है । उसके कारण एक प्रकार से आनेवाले काल में रामराज्य चलानेवाली पीढी तैयार करने में सनातन संस्था का अतुलनीय योगदान है !

भावी भीषण आपातकाल को ध्यान में रखकर उस दृष्टि से आवश्यक तैयारियां बतानेवाली एकमात्र संस्था !

सभी ने कोरोना महामारी के भीषण आपातकाल का अनुभव किया है । अनेक संतों एवं त्रिकालदर्शियों ने आनेवाले समय में भी भीषण तीसरा विश्वयुद्ध होने की बात कही है । ‘इस काल में जीने हेतु अथवा पार लगने हेतु क्या उपाय करने चाहिए ?’, इस विषय में सनातन संस्था ग्रंथ, नियतकालिक, जालस्थल, सामाजिक माध्यम आदि के माध्यम से विस्तार से बता रही है । इसमें अपने पास अत्यावश्यक सामग्री रखने के साथ ही कौनसे अन्नपदार्थ बनाकर रखने चाहिए, अनाज का संग्रह, औषधीय वनस्पतियों का रोपण, पानी, बिजली आदि की सुविधा, अग्निहोत्र करना आदि अनेक विषयों की विस्तार से जानकारी दी है ।

सनातन संस्था का धर्म एवं ज्ञानदान का कार्य

श्री. अभय वर्तक

१. धार्मिक कृतियों का अध्यात्मशास्त्र विशद करनेवाली एकमात्र सनातन संस्था ! : सनातन संस्था ने ही सर्वप्रथम हिन्दुओं की विभिन्न धार्मिक कृतियों का निश्चितरूप से क्या ‘शास्त्र’ है ? त्योहार, व्रत, अनुष्ठान, धार्मिक कृतियों के समय किस कारण ईश्वर का चैतन्य कार्यरत होता है ?, इस विषय का दैवीय ज्ञान समाज के सामने रखा है, उदा. गणेशजी को लाल फूल क्यों समर्पित करते हैं; क्योंकि उसमें श्री गणेश का तत्त्व आकर्षित तथा प्रक्षेपित करने की क्षमता अधिक होने से श्रद्धालु को उसका लाभ मिलता है । ‘नमस्कार कैसे करें ?’, ‘पूजाघर की रचना’, ‘कुमकुम लगाना’, ‘आरती उतारना’ आदि धार्मिक कृतियों का शास्त्र बताने से लेकर ‘होली’, ‘गणेशोत्सव’ आदि सार्वजनिक उत्सव भी धर्मशास्त्र के अनुसार ‘आदर्श पद्धति से कैसे मनाने चाहिए ?’, यह सनातन संस्था समाज को बता रही है ।

२. धर्मशास्त्र बताकर धर्माभिमान जगानेवाली सनातन संस्था ! : सनातन संस्था समाज को सोलह संस्कार, पूजा तथा त्योहार के समय आवश्यक तथा अन्य धार्मिक कृतियों का शास्त्र बताती है । शास्त्र समझकर कृति करने से अनेक लोगों को उन कृतियों का ‘अनुभव’ होता है तथा उसमें समाहित चैतन्य का अनुभव होता है । इस प्रकार धार्मिक कृतियों का महत्त्व ध्यान में आने से सनातन संस्कृति की महानता की अपनेआप ही प्रतीति होती है । इसलिए अनेक हिन्दुओं में धर्माभिमान जागृत होने में सहायता मिलती है । सनातन संस्था सत्संग, प्रवचन, फलक, पोस्टर, जालस्थल, सामाजिक माध्यमों पर की जानेवाली पोस्ट, वीडियो, नियतकालिक, पंचांग एवं ग्रंथ आदि व्यापक माध्यमों से इस धर्मशास्त्र को विभिन्न भाषाओं में समाज तक पहुंचाने का प्रयास करती है ।

३. जीवन का अध्यात्मीकरण करना सिखानेवाली सनातन संस्था ! : आहार, विहार, पोशाख, केशभूषा, आभूषण, वास्तु, वाहन आदि सभी को सात्त्विक कैसे बनाएं ? उसके आयुर्वेदीय या आध्यात्मिक कारण बताकर उस माध्यम से ‘जीवन का अध्यात्मीकरण कैसे करना चाहिए ?’, इस विषय में सनातन संस्था उद्बोधन कर रही है । रंगोली अथवा मेहंदी बनाना, साथ ही रसोई बनाना, भोजन पकाना आदि कृतियां भी सात्त्विक पद्धति से कैसे करनी चाहिए? उसके आयुर्वेदीय, साथ ही धार्मिक अथवा आध्यात्मिक कारण बताकरउसमें समाहित चैतन्य का लाभ उठाने से ‘हममें विद्यमान देवत्व जागृत होने में कैसे सहायता मिल सकती है ?’, यह सनातन संस्था अत्यंत सहज एवं सरल भाषा में सिखा रही है ।

४. ग्रंथोंद्वारा ज्ञानयोग का कार्य ! : सनातन संस्था ने सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी द्वारा संकलित विभिन्न विषयों के ग्रंथ प्रकाशित किये हैं । काल के अनुसार ‘वेद-गीता-ज्ञानेश्वरी’ का धर्मज्ञान बताया गया । आज सामान्य लोगों को इसका आंकलन होना कठिन होने से सनातन संस्था के ग्रंथों में इस धर्मज्ञान को सरल भाषा में बताया गया है । (सनातन के ग्रंथों के विषय में विस्तृत लेख इसी विशेषांक में दिया गया है । – संपादक)

५. जालस्थल और ‘सनातन प्रभात’ नियकालिकों के माध्यम से धर्म एवं अध्यात्मप्रसार ! : ‘सनातन डॉट ओआरजी’ इस जालस्थल के माध्यम से अध्यात्म को सरल भाषा में समझाना, धर्मशास्त्र सिखाना, धर्म के विषय में अनेक शंकाओं का समाधान एवं खंडन करना आदि कार्य चल रहे हैं । इस जालस्थल पर विभिन्न धार्मिक कृतियां कैसे करनी चाहिए ?, इसके वीडियो, नामजप, स्तोत्र, आरती आदि के ‘ऑडियो’ रखे गए हैं । अध्यात्म, साधना एवं धर्म के विषय में प्रचलित जालस्थलों में यह जालस्थल अग्रणी है ।

सनातन आश्रम के विषय में गौरवोद्गार !

श्री. प्रवीण शर्मा, कुंभकोणम् (तमिलनाडु) के सनातन के रामनाथी आश्रम में आए थे । तब उन्होंने कहा कि आश्रम में निवास करते समय ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हम सत्संग में रह रहे हैं । मनुष्य जन्म क्यों मिला ?’, यह यहां (आश्रम में) रहने से ध्यान में आता है । आश्रम में बहुत सकारात्मक ऊर्जा प्रतीत होती है । आश्रम के साधकों में बहुत विनम्रता है और सभी आनंदी हैं । आश्रम के वातावरण को शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते ।

– श्री. अभय वर्तक, पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था