मैं एक ‘उद्यमी से साधक उद्यमी’ !

नमस्कार ! मैं रविंद्र प्रभुदेसाई ! परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी की कृपा के कारण ही उद्योग-व्यवसाय में मुझे अनेक अच्छी अनुभूतियां हुईं तथा मुझे उनकी कृपा प्राप्त हुई है । इसके लिए मैं सर्वप्रथम गुरुदेवजी तथा सनातन संस्था के चरणों में नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करता हूं ।

१. ‘पितांबरी’ की सफलता में परिश्रम के साथ आत्मबल प्रदान करनेवाले अध्यात्म का भी महत्त्वपूर्ण योगदान

‘पितांबरी उद्योग समूह’ का नाम आज महाराष्ट्र के उद्योग जगत में एक सुप्रतिष्ठित हो चुका है । विगत ३५ वर्षाें से अत्यंत स्थिरतापूर्वक प्रगति करते हुए आज ‘पितांबरी उद्योग समूह’ ने वार्षिक ३०० करोड के कारोबार का चरण पार किया है । कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देश के सभी क्षेत्रों में ३ सहस्र ५०० मुख्य वितरकों, छोटी दुकानों से लेकर बडे मॉल में ३.५ से ४ लाख तक के बिक्रीकेंद्रों तकइस प्रतिष्ठान का विस्तार है । इस सफलता के पीछे परिश्रम एवं समर्पण तो है ही; परंतु यह सब साध्य करने हेतु आवश्यक आत्मबल की शक्ति प्रदान करनेवाले अध्यात्म का भी उतना ही बडा योगदान है ।

२. राष्ट्रभक्ति एवं अध्यात्म का मेल करने से निराशा की स्थिति से बाहर निकलने में सहायता मिलना

आलोचना, अस्वीकरण एवं असफलता किसी भी उद्यमी के लिए कोई नई बात नहीं होती । मैं भी एक समय इन सभी स्तरों से गुजर चुका था । ‘पितांबरी शाइनिंग पाउडर’, इस उत्पादन का शोध होने से पूर्व मैंने ‘मोजैक टाइल्स’ के नाम से एक व्यवसाय आरंभ किया था; परंतु इस व्यवसाय का अनुभव अल्प होने के कारण उसमें मुझे प्रचंड आर्थिक हानि एवं असफलता झेलनी पडी थी । बडा उद्योगपति बनने का ध्येय मन में रखकर प्रामाणिकता के साथ प्रयास करते समय व्यवसाय में मिली असफलता, अपनों द्वारा की गई आलोचना, आर्थिक हानि एवं भविष्य की चिंता; इन सभी विचारों ने मुझे एक मोड पर बहुत नकारात्मक बनाया था । मैंने अपना आत्मविश्वास खो दिया था ।

मेरे माता-पिता ने बचपन से ही मुझे अध्यात्म के संस्कार दिए थे । स्तोत्र, श्लोक आदि का पाठ करने पर मुझे तात्कालिक मन की शांति मिलती थी । उसके उपरांत एक बार ठाणे के घंटाळी प्रांगण में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का प्रवचन है, यह ज्ञात हुआ । कुछ विमनस्क मन की स्थिति में मैं उस प्रवचन में गया । उसमें परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने मुझे राष्ट्रभक्ति एवं अध्यात्म का मेल कर ‘व्यक्तिगत आध्यात्मिक उन्नति’ का मंत्र दिया । यही बात मेरे मन को भी गई । इस सत्संग के कारण मुझे निराशा की स्थिति से बाहर निकलने में सहायता मिली । उसके उपरांत मैं नियमित रूप से सनातन संस्था के सत्संग में जाने लगा तथा स्वयं की आध्यात्मिक उन्नति हेतु सनातन संस्था से जुड गया । धीरे-धीरे हमारा संपूर्ण परिवार ही सनातन संस्था के मार्गदर्शन में साधना करने लगा ।

५. ‘पितांबरी उद्योग समूह’ अर्थार्जन का नहीं, अपितु समाज की आध्यात्मिक प्रगति करनेवालों के लिए साधना का मार्ग !

पितांबरी में कार्यरत मेरे सहयोगियों को भी आध्यात्मिक साधना का आनंद मिले । इसके लिए हमने ‘पितांबरी’ प्रतिष्ठान की विभिन्न शाखाओं में कार्यरत सहयोगियों के लिए सत्संग आरंभ किए । उससे पूर्व वहां सनातन के साधक सत्संग लेते थे; परंतु कार्यालय एवं सहयोगियों की संख्या बढने पर मैंने मेरे सहयोगी श्री. सतीश कोचरेकर को ‘आध्यात्मिक व्यवस्थापक’ (स्पिरिच्युयल मैनेजर) के रूप में नियुक्त कर सहयोगियों के लिए नियमित सत्संग आरंभ किए । यहां नियमित रूप से प्रार्थनाएं की जाती हैं । उसके कारण ‘पितांबरी उद्योग समूह’ केवल अर्थार्जन का ही नहीं, अपितु समाज की आध्यात्मिक प्रगति करनेवालों के लिए साधना का मार्ग बन गया है । ‘पितांबरी’ के सभी विभाग कार्यालयों में प्रतिदिन सवेरे सहयोगियों के द्वारा नामस्मरण किया जाता है । केवल इतना ही नहीं, अपितु ‘पितांबरी’ के ग्राहकों को भी साधना का महत्त्व समझ में आए; इस उद्देश्य से हमने उत्पादों के आवरण पर (उदा. अगरबत्ती उत्पादों पर अथवा पूजा उत्पादों में ‘साधना कैसे करें ?’, इसका जानकारी पत्रक भी दिया जाता है ।) साधना का महत्त्व विशद करनेवाला लेखन छापा है ।

६. साधना के कारण उद्यमी का रूपांतरण ‘साधक उद्यमी’ में होना

श्री. प्रभुदेसाई को विदा करते सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी

‘आज का मेरा यह दिन अच्छा रहे’, यह प्रार्थना कर मेरे दिन का आरंभ होता है, जबकि ‘आज का मेरा यह दिन अच्छा रहा’; इसके लिए ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर दिन का समापन होता है । साधना के कारण सत्त्वगुण में वृद्धि होकर रज-तम गुण न्यून होते हैं । इसका उपयोग हमें समस्याओं को दूर कर ‘पितांबरी’ के उत्पादों की निर्मिति करते समय होता है ।

७. साधना के कारण आत्मबल बढकर तीव्रगति से व्यावहारिक प्रक्रिया एवं व्यावसायिक वृद्धि होना

साधना के कारण ही मैं व्यक्तिगत एवं उद्योग के क्षेत्र में संतुष्ट एवं संपन्न जीवन जी रहा हूं तथा इसका संपूर्ण श्रेय सनातन संस्था को, साथ ही मेरे परिजनों को जाता है । सनातन संस्था से प्राप्त आध्यात्मिक साधना के बल पर उद्योग में मिली सफलता-असफलता को बडी सहजता से सहन कर मैं साधनापथ पर स्थिर हूं । सफल एवं संतुष्ट हूं । मुख्य बात यह कि आध्यात्मिक साधना के कारण एकाग्रता बढती है, मन शांत रहता है, वर्तमान में मन स्थिर होता है, सकारात्मक विचार करने की आदत लगती है, सकारात्मक मानसिकता बढती है, अध्ययन में ध्यान केंद्रित होता है, मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है, निर्णयक्षमता बढती है, नौकरी-व्यवसाय में प्रगति होकर आर्थिक समृद्धि बढती है, जीवन सर्वांगीण एवं समृद्ध बनता है तथा उद्यमी मन यदि तनावमुक्त हो, तो आपको कोई भी मनौती मांगने की आवश्यकता नहीं पडेगी । साधना के कारण आत्मबल बढकर आपकी व्यावहारिक प्रक्रियाओं की गति भी प्रचंड बढती है तथा उसके कारण व्यावसायिक प्रगति भी तीव्र गति से होने लगती है ।

‘ऐहिक कर्तृत्व के साथ ही पारमार्थिक उन्नति का सुंदर संगम साधकर आपके जीवन में भी संपन्नता आए, साथ ही आपके द्वारा हिन्दू राष्ट्र की निर्मिति का अमूल्य धर्मकार्य संपन्न हो’, यही श्रीगुरुचरणों में प्रार्थना है !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने मुझे तन-मन-धन अर्पित करने का संस्कार दिया, जिसका मुझे आध्यात्मिक स्तर पर अच्छा लाभ मिला । अब मैं प्रतिदिन अर्पण देता हूं । पितांबरी की सभी उत्पाद एवं ‘क्रिएटिव’ (कल्पक) विज्ञापन यह उत्पाद भी परमेश्वर ने ही हमसे तैयार करवाकर लिया है । इन सभी अनुभवों से उद्यमी रविंद्र प्रभुदेसाई का रूपांतरण एक ‘साधक उद्यमी’ में हुआ है । – श्री. रविंद्र प्रभुदेसाई

सनातन संस्था द्वारा बताई साधना करने से सद्गुणों में वृद्धि हुई – प्रभुदेसाई

श्री. रविंद्र प्रभुदेसाई

सनातन संस्था के माध्यम से आध्यात्मिक साधना की दिशा प्राप्त होने के कारण तथा ईश्वरस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के रूप में गुरु मिलने के कारण नामस्मरण, सत्संग, सत्सेवा एवं त्याग, इन आध्यात्मिक संस्कारों का आचरण करने में सहायता मिली तथा उससे जीवन में संपन्नता आई । उनकी सीख के कारण आजचाहे वह मेरा परिवार हो या उद्यमी, सामाजिक एवं आध्यात्मिक परिवार हो; हर जगह आनंद, उत्साह, आत्मीयता, सामाजिक जुडाव देखने को मिलता है । इस साधना से प्रेमभाव, संगठन, अन्यों को समझना, अन्यों का विचार करना, एकाग्रता बढना, नियोजन कुशलता, सामाजिक कर्तव्य का भान रखना, सभी स्तरों के लोगों की सहायता करना, अपने आसपास के वातावरण को आनंदित रखना, उद्योग से मिलनेवाले धन का उपयोग राष्ट्ररक्षा एवं धर्मजागृति के कार्य हेतु करना, समाज में सामाजिक-सांस्कृतिक कार्य करनेवाली संस्थाओं की सहायता करना आदि सद्गुणों की मुझमें वृद्धि हुई । इसके कारण मेरे व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक जीवन में आमूल परिवर्तन आया ।

साधना के कारण व्यक्तिगत जीवन में उत्साह एवं चैतन्य प्राप्त होकर कार्यक्षमता बढना

सनातन संस्था को २५ वर्ष पूर्ण हुए हैं । संस्था ने पहले चरण में नामजप, सत्संग, सत्सेवा एवं त्याग; दूसरे चरण में प्रार्थना, प्रीति, कृतज्ञता एवं स्वभावदोष-निर्मूलन के विषय में संपूर्ण भारत में अध्यात्मप्रसार का कार्य आरंभ किया । ‘सनातन प्रभात’ में छपे तेजस्वी विचारों से सहस्रों हिन्दुओं के मन में अध्यात्म, धर्म एवं राष्ट्रतेज की ज्योति प्रज्वलित हुई है । ‘व्यक्तिगत साधना के साथ समाज की उन्नति हेतु आवश्यक साधना की सीख’, इस माध्यम से दी जा रही है । आज आयु के ६१ वें वर्ष में भी मेरे व्यक्तिगत जीवन में उत्साह, चैतन्य एवं कार्यक्षमता है । अन्यों में भी चैतन्य व उत्साह बना रहे, इस हेतु मैं प्रयासरत रहता हूं । इसकी प्रेरणा मुझे मेरी साधना से ही प्राप्त होती है ।