सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी द्वारा स्थापित सनातन संस्था इस वर्ष जहां रजत जयंती वर्ष में प्रवेश कर रही है, ऐसे में हमें सनातन संस्था की अद्वितीय कार्य-विशेषताओं का अवलोकन करने का अवसर प्राप्त हुआ; इसलिए अपार कृतज्ञता प्रतीत हो रही है ।
आध्यात्मिक क्षेत्र में बडा कार्य कर रही सनातन संस्था ने धर्म एवं राष्ट्र के कार्य में भी उतना ही अमूल्य योगदान दिया है, यह सनातन की विशेषता है । ‘केवल साधना ही करनी है’, ऐसा नहीं; अपितु ‘आध्यात्मिक प्रगति कर आनंदप्राप्ति करनी होती है’, यह समाज को बतानेवाली सनातन संस्था आध्यात्मिक संस्थाओं में से एक ‘आदर्श’ संस्था सिद्ध हुई है । आज ‘अर्थ’ एवं ‘काम’ से भारित वातावरण में भक्ति, कर्म एवं ज्ञान, इन योगों के एकत्रीकरण से ‘गुरुकृपा’ कैसे प्राप्त करनी चाहिए ? तथा विस्मृत हुए ‘धर्म’ एवं ‘मोक्ष’, इन दो पुरुषार्थाें की दिशा में कैसे अग्रसर होना चाहिए ?, इसे अत्यंत सुलभता से बतानेवाली सनातन संस्था कलियुग के लिए एक वरदान ही सिद्ध हुई है ! दुर्लभ मनुष्यजीवन को सार्थक करने हेतु साधना बतानेवाली सनातन संस्था आनेवाले आपातकाल के संबंध में समाज में जागृति ला रही है तथा उससे पार करवाने हेतु उपाय भी बता रही है । वर्तमान ‘डिजिटल’ एवं गतिशील युग में ‘वैज्ञानिक परिभाषा तथा निश्चित पद्धति से सार बताना’, ये सनातन संस्था की विशेषताएं काल की कसौटी पर खरी उतरी हैं !
राष्ट्र-धर्म कार्य हेतु समर्पित !
वेदज्ञान के अनुसार ‘धर्म’ ही मनुष्य के जीवन का मूल है । राष्ट्र धर्म के अतिव्यापक अंग का एक भाग है । राष्ट्रनिर्माण का प्रत्येक सूत्र तथा राष्ट्र की प्रत्येक समस्या का उत्तर धर्म में है । सनातन परंपरा में राष्ट्रधर्माधिष्ठित ही होने से यह परंपरा समृद्ध मानवीय जीवन की सेवक है । साधनारत एवं धर्माचरणी राजा एवं प्रजा आदर्श राष्ट्र का मूल है । सनातन संस्था निरपेक्षता से ऐसी प्रजा तैयार करने का कार्य कर रही है । सनातन संस्था ने समष्टि साधना को ६५ प्रतिशत महत्त्व दिया है । इसके अंतर्गत धर्मप्रसार कर नीतिमान समाज बनाने हेतु प्रयास करना तथा समाज एवं राष्ट्र की समस्याओं की जड पर प्रहार करने का कार्य सनातन संस्था कर रही है । राष्ट्र एवं समाज की चेतना के ऊर्जास्रोत ढंक से गए हैं, इसे ध्यान में लेकर सनातन ने ही सर्वप्रथम ‘देवताओं का अनादर रोकना’ तथा ‘मंदिररक्षा’ इन अभियानों को हाथ में लेकर इन चैतन्यस्रोतों को मुक्त करने का कार्य आरंभ किया । सनातन के देवताओं के अनादर को रोकने के संबंध में चल रहे जनजागृति अभियान को सफलता मिल रही है । अनेक हिन्दुत्वनिष्ठों ने इस सिद्धांत को बडे स्तर पर अपनाया तथा अब वे उसके विरोध में अनेक स्तरों पर सक्रिय हो गए हैं । हिन्दूद्वेषी चित्रकार म.फि. हुसैन के विरुद्ध शिकायतें पंजीकृत करने से लेकर मदिरा की दुकानों को देवताओं एवं महापुरुषों के नाम न देने हेतु उद्बोधन करना, आरंभिक काल में कश्मीरियों पर किए गए अत्याचारों के विरुद्ध प्रदर्शनी लगाकर उनके अत्याचार समाज के सामने लाना, वजन में धोखाधडी करनेवालों से लेकर मिलावटखोरों तक भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाना, सडक पर दिन में जलनेवाले दीपों से लेकर कुत्तों की समस्याओं के विषय में जागृति लाना, सार्वजनिक उत्सवों में होनेवाली अप्रिय घटनाओं के विरुद्ध अभियान चलाकर ‘आदर्श उत्सव कैसे मनाएं ?’, यह बताना; कश्मीर जाकर वहां प्रवचन एवं व्याख्यान देना, आदर्श अर्थात रामराज्य की संकल्पना रखना, लव जिहाद एवं धर्मांतरण के विरुद्ध जनजागरण करना आदि अनेक अभियानों में सनातन संस्था का बडा सहभाग रहा है । देवता, धर्म, हिन्दू, राष्ट्र आदि के संदर्भ में कोई भी अन्यायकारी घटना ध्यान में आने पर हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों को एकत्र कर प्रशासन को ज्ञापन प्रस्तुत कर उसके संदर्भ में जनजागरण करने की अभिनव एवं अत्यंत वैधानिक पद्धति सनातन ने अपनाई । आज अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन राष्ट्र-धर्म पर हो रहे आघातों के विरोध में प्रशासन को ज्ञापन प्रस्तुत कर रहे हैं । हिन्दुओं पर हो रहे विभिन्न आघातों के संबंध में एक ही समय पर राज्य के अनेक स्थानों पर ज्ञापन प्रस्तुत किए जाने से अपनेआप ही विभिन्न आंदोलन खडे होकर जागृति एवं उसमें परिवर्तन को गति प्राप्त हुई है । आश्चर्य की बात यह कि आज भ्रष्टाचार से लेकर लव जिहाद तक अनेक सूत्रों के संबंध में राष्ट्रीय स्तर पर बडी मात्रा में जागृति एवं कृति हो रही है । अब इसी प्रकार ‘हिन्दू राष्ट्र’ शब्द का जयघोष भी आरंभ हो गया है । इससे ध्यान में लेने योग्य बात यह है कि सनातन जैसी आध्यात्मिक संस्था जब कोई राष्ट्र से संबंधित अभियान हाथ में लेती है, उस समय उसके पीछे साक्षात ईश्वर के आशीर्वाद एवं गुरुदेवजी का संकल्प होने से उसमें सफलता मिलना निश्चित होता है । सनातन के साधक आज इसी का अनुभव कर रहे हैं !
सामर्थ्य है आंदोलन का… !
सनातन के साधक अत्यंत निरपेक्षता से समाज एवं राष्ट्र कार्य करते हैं । वे उनकी समष्टि साधना के रूप में राष्ट्र से संबंधित आंदोलनों में भी सम्मिलित होते हैं । उनकी साधना का मनोबल उन्हें देवता, धर्म एवं हिन्दुओं पर हो रहे अन्याय के संघर्ष में सहभागी होने की प्रेरणा देता है । उनके जीवन का ध्येय ईश्वर (आनंद)प्राप्ति है तथा समाज अथवा राष्ट्र के कार्य में सम्मिलित होने में उनका किसी प्रकार का स्वार्थ न होने से उन्हें अपेक्षित प्रसिद्धि नहीं मिली, तब भी उससे उनकी साधना होती है तथा सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि बीजरूप में समाज, धर्म या राष्ट्र पर हो रहे आघात पर प्रहार किया जाता है । आगे जाकर संबंधित अभियान या सूत्र कालगति के अनुसार व्यापक होकर समाजपरिवर्तन आरंभ होता है । स्थूल से आए इस परिवर्तन के पीछे सूक्ष्म ईश्वरीय तत्त्व कार्यरत होता है । आनेवाले हिन्दू राष्ट्र की निर्मिति के पीछे तथा हिन्दू राष्ट्र आते समय होनेवाले प्रचंड संघर्ष के पीछे जो आध्यात्मिक अधिष्ठान है, उसका दायित्व किसी दीपस्तंभ की भांति सनातन संस्था ने उठाया है, ऐसा कहना अनुचित नहीं होगा !
हिन्दुत्वनिष्ठों के लिए मातृ-पितृतुल्य संस्था सनातन के साधक हिन्दुत्वनिष्ठों के अभियानों में भी सम्मिलित होते हैं, साथ ही वे उन्हें नामजप का आत्मिक बल तथा अपना उत्साहवर्धक सत्संग भी देते हैं । विभिन्न हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के लिए सनातन संस्था मातृ-पितृतुल्य लगती है । देशभक्त एवं राष्ट्रप्रेमी हिन्दुत्वनिष्ठ लगन से राष्ट्रकार्य करते रहते हैं; परंतु ‘यतो धर्मस्ततो जयः ।’ अर्थात ‘धर्म के अधिष्ठान के कारण ही वे विजयश्री खींचकर ला सकते हैं’, यह बात सनातन संस्था ने उनके मन पर अंकित की है ।
अनेक हिन्दुत्वनिष्ठों को उसकी प्रतीति हुई है; इसलिए अब अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ भी साधना करने लगे हैं । धर्मसंस्थापना का कार्य अवतार का कार्य है । इसलिए उचित समय आने पर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना भी होने ही वाली है; परंतु ‘उद्धरेत आत्म आत्मानाम् ।’ अर्थात स्वयं का उद्धार स्वयं को ही (क्रियमाण का उपयोग कर) करना है; इसलिए साधना करना आवश्यक है । कोई भी राष्ट्र-धर्म से संबंधित अभियान सफल होने हेतु तथा उनमें उत्पन्न सूक्ष्म बाधाएं दूर होने हेतु सनातन के संत नामजपादि उपचार करते हैं । इस प्रकार हिन्दुत्वनिष्ठों के अभियानों को ईश्वर के आशीर्वाद प्राप्त करवाकर उसके विजय की निश्चिति करने का कार्य सनातन संस्था करती है ! आनेवाले हिन्दू राष्ट्र की अर्थात रामराज्य की स्थापना के कार्य में धर्म का अर्थात ही ईश्वर का अधिष्ठान प्राप्त करवाने का कार्य करने से सनातन संस्था का नाम विश्व के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में उकेरा जाएगा, इसमें कोई संदेह नहीं है !