सनातन धर्म एवं संस्कृति विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है । सनातन का अर्थ ‘नित्य नूतन’ है । इसका अर्थ सनातन धर्म एवं संस्कृति कभी भी कालबाह्य नहीं होती । ‘इस धर्म के मूलतत्त्व प्रकृति के नियमों के अनुरूप हैं ।’ विश्व की अनेक प्राचीन सभ्यताएं एवं धर्म नष्ट हो गए; परंतु हिन्दू धर्म उसकी विशेषताओं के कारण आज भी टिका हुआ है । हिन्दू धर्म ने काल के प्रवाह में आनेवाले अनेक परिवर्तन स्वीकार किए; इसलिए सनातन संस्कृति का मूल सार नष्ट नहीं हुआ । इंग्लैंड के दिवंगत प्रधानमंत्री चर्चिल ने कहा था, ‘‘Culture and literature are all very well, but a culture without strength ceases to be a living culture.’’ (अर्थ : संस्कृति एवं साहित्य अच्छा हो; परंतु संस्कृति को बल न हो, तो चल रही संस्कृति का अंत निकट आ जाता है ।) भले ही ऐसा हो; परंतु तब भी सनातन धर्म एवं संस्कृति का वास्तविक स्वरूप आज भी बनाए रखना इस धर्म के अनुयायियों का कर्तव्य है । इस कर्तव्य का निर्वहन करनेवाली आज की अग्रणी संस्था है ‘सनातन संस्था’ ! सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन से इस संस्था का कार्य अखंडित चल रहा है ।
संकलनकर्ता – श्री. दुर्गेश जयवंत परुळकर, हिन्दुत्वनिष्ठ व्याख्याता तथा लेखक, डोंबिवली, मुंबई.
१. धर्म एवं संस्कृति की सेवा के विचार से कार्यरत ‘सनातन संस्था’ !
वैदिक काल के ऋषि-मुनियों ने भौतिक एवं आध्यात्मिक, इन दोनों जीवनों का अच्छा मेल कर स्व-अनुशासित मानवीय समाज का निर्माण किया । ऐसे मानवीय समाज के निर्माण हेतु स्थल-काल का बंधन नहीं है, यह धर्म का मूलभूत सिद्धांत है । इस सिद्धांत के अनुरूप हम अपने धर्म एवं संस्कृति की सेवा कर सकते हैं, इस विचार से प्रेरित होकर ‘सनातन संस्था’ कार्यरत हुई ।
मनुष्य का सामाजिक जीवन यथार्थपूर्ण परिपूर्ण होने हेतु मार्गदर्शन करनेवाले संत एवं महात्मा इस भूतल पर अवतीर्ण हुए । उन्होंने देश में विदेशियों की राजनीतिक सत्ता के समय में भी यह कार्य किया । आज पाश्चात्य विचारों के प्रभाव के अधीन रहनेवाला हिन्दू समाज अपने मूल सनातन धर्म की ओर मुडे, इस प्रमुख उद्देश्य को लेकर ‘सनातन संस्था’ आध्यात्मिक मार्गदर्शन करने हेतु आगे आई ।
२. भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन का सुयोग्य मेल करना सिखानेवाली ‘सनातन संस्था’ !
भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन का सुयोग्य मेल बिठाकर मनुष्य स्वयं का भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास कर सकता है, यह विश्वास आधुनिक काल के हिन्दुओं के मन में उत्पन्न करने का प्रयास ‘सनातन संस्था’ विगत २५ वर्षाें से कर रही है ।
इस संस्था द्वारा किए जा रहे कार्य से हम अनुमान लगा सकते हैं कि ‘सनातन संस्था’ की स्थापना ‘सनातन धर्म को सुयोग्य पद्धति से संजोने हेतु की गई है ।’
३. हिन्दू समाज को धार्मिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा देने हेतु प्रयासरत ‘सनातन संस्था’ !
हमारा जीवन स्वच्छ, प्रामाणिक एवं शुद्ध होना चाहिए, तभी हमारा वास्तविक विकास होगा, अन्यथा हमें दुःख का सामना करना पडता है, साथ ही परिवर्तनशील काल के अनुसार आचरण करते समय मनुष्य काल के प्रवाह में बह जाता है । धन संपादन की होड में वह अनुचित मार्ग का चयन करता है । उसके कारण मनुष्य सुखी होने की अपेक्षा दुःखी होता है तथा अपने परिवार का भी विनाश कर लेता है । ऐसी स्थिति न आए; इसके लिए ‘सनातन संस्था’ विगत २४ वर्षाें से हिन्दू समाज को सांस्कृतिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा देने का प्रयास कर रही है ।
४. ‘सनातन संस्था’ हिन्दू समाज का मार्गदर्शन करने का कार्य करती है !
व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में एकात्मता की कल्पना, भूमिनिष्ठा एवं परंपरा का अभिमान प्रत्येक व्यक्ति को रखना चाहिए, तभी जाकर हमारा अस्तित्व टिका रहता है । हमारे महान पूर्वजों की दीप्तिमान स्मृतियां हमें सदैव प्रेरणा देती रहती हैं, इसका विस्मरण न हो तथा हिन्दू समाज भटक न जाए; इसके लिए ‘सनातन संस्था’ हिन्दू समाज का मार्गदर्शन करने का कार्य करती आई है ।
५. तनावमुक्त जीवन जीने के संदर्भ में मार्गदर्शन करनेवाली ‘सनातन संस्था’ !
अध्यात्म, नैतिकता, शुद्ध आचरण एवं उपासना, ये ४ बातें मानवीय जीवन को आकार देनेवाली हैं । तनाव से मुक्त होने हेतु मनुष्य को इनकी नितांत आवश्यकता होती है, इसे ध्यान में लेकर ‘सनातन संस्था’ ने काल के अनुरूप आधुनिक पद्धति प्रचलित की है । सरल नियमों में स्वयं को बांधकर अनुशासित जीवन कैसे जीना चाहिए ?, इसका मार्गदर्शन करनेवाली ‘सनातन संस्था’ है ।
६. हिन्दू संस्कृति के महत्त्वपूर्ण अंग ‘कला’ की ओर विश्व का ध्यान केंद्रित करनेवाली ‘सनातन संस्था’ !
मनुष्य संगीत, नृत्य, चित्रकला जैसे तथा ऐसे विभिन्न कलागुणों का शास्त्रशुद्ध विकास करे, तो मनुष्य का जीवन सुखी (समृद्ध)
हो सकता है । कलासक्त जीवन भी हमारी संस्कृति का एक अंग है, इसकी ओर सनातन संस्था ने विश्व का ध्यान आकर्षित
किया है । यही सनातन संस्था के कार्य की प्रमुख विशेषता है, ऐसा हम कह सकते हैं ।
७. सुसंस्कृत वेशभूषा के विषय में आग्रहपूर्ण भूमिका रखनेवाली ‘सनातन संस्था’ !
‘सुविद्य, सुसंस्कृत समाज अनुरूप वेशभूषा धारण करे’, यह आग्रहपूर्ण भूमिका रखनेवाली यह संस्था है । सनातन द्वारा किया जा रहा कार्य प्रशंसनीय एवं अभिमानास्पद है । इसे धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्य करने का अक्षय बल मिले, यही ईश्वर के चरणों में प्रार्थना है !
हिन्दू धर्म टिका रहे; इसके लिए सभी प्रकार के माध्यमों का यथोचित उपयोग करनेवाली ‘सनातन संस्था’ !आज काल प्रवाह के कारण घर-घर से ‘संस्कार’ मिलना लगभग रुक गया है । ऐसे में संस्कारों का दायित्व स्वीकारकर हिन्दू समाज में श्रेष्ठतम हमारी संस्कृति के प्रति अभिमान को जागृत करने का कार्य ‘सनातन संस्था’ लगन से कर रही है । हमारी संस्कृति ने जो मर्यादा सुनिश्चित की है, उसका यदि हम ही उल्लंघन करें, तो हमारी संस्कृति नष्ट होने में समय नहीं लगेगा । ऐसी स्थिति न आए; इस हेतु ‘सनातन संस्था’ प्रयास कर रही है । इसलिए ‘सनातन संस्था’ हिन्दू धर्म तथा संस्कृति के अनुरूप विभिन्न विषयों पर ग्रंथ प्रकाशित करती है । इसके साथ ही सनातन संस्था ने ‘धर्माचरण कैसे करना चाहिए ?, हमें हमारे त्योहार-उत्सव किस प्रकार मनाने चाहिए ?’, इस विषय में भी मार्गदर्शन करनेवाले ग्रंथों का निर्माण किया है । आधुनिक काल के सभी प्रचार एवं प्रसारमाध्यमों की सहायता लेकर ‘सनातन संस्था’ हिन्दू धर्म को बनाए रखने के लिए अथक प्रयास कर रही है । यह प्रशंसनीय है । – श्री. दुर्गेश जयवंत परुळकर |