तृतीय विश्वयुद्ध के विषय में भविष्यवाणी, विश्वयुद्ध के दुष्परिणाम और उनसे बचने हेतु आवश्यक उपाय

तृतीय विश्वयुद्ध की अवधि साधकों की ईश्वरभक्ति पर निर्भर होगी । यह युद्ध भक्तों (धर्माचरण करनेवाले जीवों) और अनिष्ट शक्तियों (अधर्माचरण करनेवाली जीवों) के मध्य होनेवाला है; इसलिए इस युद्ध की अवधि बदल सकती है ।

परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के अव्यक्त संकल्प के कारण गत एक वर्ष में विविध भाषाओं में सनातन के ३० नए ग्रंथ-लघुग्रंथ प्रकाशित और ३५७ ग्रंथ-लघुग्रंथों का पुनर्मुद्रण !

‘हिन्दू राष्ट्र’ धर्म के आधार पर ही स्थापित होगा । धर्मप्रसार के कार्य में ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति और क्रियाशक्ति में से ज्ञानशक्ति का योगदान सर्वाधिक है । ज्ञानशक्ति के माध्यम से कार्य होने का सर्वाधिक प्रभावी माध्यम हैं ‘ग्रंथ’ ।

तनावमुक्ति के लिए बाह्य साधना के साथ-साथ आंतरिक साधना करना आवश्यक ! – सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति

उधम सिंहनगर के रुद्रपुर स्थित उत्तराखंड पुलिस की ४६ वीं बटालियन के अधिकारी एवं कर्मचारियों के लिए ‘सुखी जीवन हेतु तनावमुक्ति’ विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया था । इस कार्यशाला को संबोधित करते समय सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी बोल रहे थे ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

     ‘मंदिर में देवताओं के कर्मचारी दर्शनार्थियों को दर्शन कराने की अपेक्षा अन्य कुछ करते हैं क्या ? उन्होंने दर्शनार्थियों को धर्मशिक्षा दी होती, साधना सिखाई होती, तो हिन्दुओं की एवं भारत की ऐसी दयनीय स्थिति नहीं होती ।’ सनातन के आश्रम में कौन रह सकता है ?      ‘सनातन का आश्रम देखने … Read more

तृतीय विश्वयुद्ध के विषय में भविष्यकथन, विश्वयुद्ध का दुष्परिणाम और उसमें से बचने हेतु उपाय

१. प्रस्तावना      पिछले कुछ दशकों में समस्त विश्व ‘प्राकृतिक आपदाओं, आतंकी गतिविधियों, युद्ध और राजनीतिक उथलपुथल’ जैसे दुष्टचक्रों से गुजर रहा है । ये सब रुकने के चिन्ह दिखाई नहीं दे रहे हैं । केवल इतना ही नहीं, यह सब घटता हुआ भी दिखाई नहीं दे रहा है । संपूर्ण विश्व एक अनिश्चित … Read more

सनातन के देवद आश्रम की सुश्री (कु.) रत्नमाला दळवी (आयु ४५ वर्ष) सनातन के ११८ वें समष्टि संतपद पर विराजमान !

     पनवेल (महाराष्ट्र) – तत्त्वनिष्ठा, आज्ञापालन, स्थिरता, नम्रता, अंतर्मुखता, समर्पणभाव से सेवा करना आदि अनेक गुणरत्नों का खजाना, मूलतः तिवरे (तालुका राजापुर, जिलहा रत्नागिरी) एवं वर्तमान में सनातन के देवद आश्रम में निवास कर रहीं सुश्री (कु.) रत्नमाला दळवी ६ मार्च को सनातन के ११८ वें समष्टि संतपद पर विराजमान हुईं । सनातन के … Read more

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

भ्रष्टाचार, बलात्कार, राष्ट्रद्रोह, धर्मद्रोह बढने का मूल कारण है, समाज को सात्त्विक बनानेवाली साधना न सिखाना । जिन्हें यह भी नहीं समझ में आता, ऐसे सर्व दल राज्य करने के योग्य हैं क्या ? केवल हिन्दू (ईश्वरीय) राष्ट्र में ही रामराज्य की अनुभूति होगी ।

परात्पर गुरु डॉक्टरजी का साधना के विषय में मार्गदर्शन !

अध्यात्म में साधना का आरंभ अर्थात ‘अ’(A) ऐसा कुछ नहीं होता । प्रत्येक के आध्यात्मिक स्तर एवं साधनामार्ग के अनुसार उसकी साधना आरंभ होती है ।

सनातन के आश्रम में वेद, पुराण एवं उपनिषद के अनुसार किया जानेवाला आचरण अनुकरणीय ! – प्रा. डॉ. रमाकांत शर्मा

प्रा. डॉ. रमाकांत शर्माजी, आयुर्वेद में एम.डी., पीएच.डी. होने के साथ-साथ एम.ए., एम.बी.ए. भी हैं । वे जयपुर के ‘नेशनल इन्स्टिट्यूट ऑफ आयुर्वेद’ के सेवानिवृत्त प्राध्यापक हैं । उनकी आयुर्वेदीय औषधियों का उत्पादन करनेवाली ‘गौरव मैन्युफैक्चरिंग फार्मसी’ है । वे भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के भी सदस्य हैं ।

जोधपुर की दैवी बालसाधिका कु. वेदिका मोदी को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के समक्ष भावपूर्ण नृत्य प्रस्तुत करते देख कु. मधुरा भोसले को हुई अनुभूति !

नृत्य करते समय कु. वेदिका ने घागरा पहना था । उसे देखकर प्रतीत हुआ कि घागरा पहनने के कारण उसके स्थान पर ‘एक नन्हीसी गोपी ही श्रीकृष्ण के समक्ष भावपूर्ण नृत्य प्रस्तुत कर नृत्य के माध्यम से श्रीकृष्ण की उपासना कर रही है । उसका यह नृत्य हो रहा था, तब उसके हृदय में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भाव जागृत हो गया ।