मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी,
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ?
तुम बिन और न दूजा, तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी ।।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा,
स्वामी पाप हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढाओ, श्रद्धा भक्ति बढाओ,
सन्तन की सेवा ।।
समष्टि के कल्याण का निदिध्यास लेकर अखंड कार्यरत, साधकों के लिए माता-पिता, बंधु, सखा ऐसे सबकुछ, साधकों को सुख-दुःख से परे की आनंद की अनुभूति करना सिखानेवाले, साधकों की आध्यात्मिक प्रगति के लिए आतुर, प्रत्येक जीव पर असीमित निरपेक्ष प्रेम करनेवाले और ‘सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका’ में श्रीविष्णु के कलियुग के ‘जयंत-अवतार’ नाम से गौरवान्वित परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ! परमेश्वर ने हमें ऐसे श्रीविष्णु स्वरूप परात्पर गुरु डॉक्टरजी की छत्रछाया तले रखा है ।
गुरुदेवजी, ‘काल भले कितना भी कठिन हो; परंतु ईश्वर उससे भी अधिक सामर्थ्यवान हैं ।’, आपकी इस सीख के कारण हम सभी साधक आज के इस संकटकाल में भी आनंद की अनुभूति कर रहे हैं और आपके आश्वासक आधार की सहायता लेकर संकटों से दो-दो हाथ कर रहे हैं । गुरुदेवजी, आप हमारे जीवन में आए’, इससे बडा कोई सौभाग्य नहीं है ! आपके सुकोमल श्रीचरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !