‘सनातन प्रभात’ की लेखनी !
पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ की लेखनी के माध्यम से राष्ट्र-धर्म के हो रहे कार्य का जब-जब गौरव हुआ, तब यह लेखनी स्थिर हुई तथा कठिन काल में भी अपनी प्रखर ध्येयनिष्ठा के कारण अविचल रही !
पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ की लेखनी के माध्यम से राष्ट्र-धर्म के हो रहे कार्य का जब-जब गौरव हुआ, तब यह लेखनी स्थिर हुई तथा कठिन काल में भी अपनी प्रखर ध्येयनिष्ठा के कारण अविचल रही !
आतंकवाद का समर्थन करने के माध्यम से ये पर्यावरणवादी विश्व का वातावरण दूषित करने का प्रयास कर रहे हैं । अन्य समय पर प्रदूषण का विरोध करनेवाले यही लोग वैचारिक एवं राष्ट्रविरोधी प्रदूषण का कारण बन रहे हैं, यह भी उतना ही सत्य है ।
वायु की गुणवत्ता निर्देशांक सर्वाधिक, अर्थात ७०० प्रविष्ट हुआ । निर्देशांक ७०० होना अत्यंत गंभीर स्थिती है । नगर में धुएं की विषैली वायु का स्तर फैलने से अनेक लोगों को सांस लेने में कठिनाई हो रही है, त्वचारोग हो रहे हैं, आंखों की जलन बढ रही है तथा गले की विविध समस्याएं भी बढ रही हैं ।
त्योहार-उत्सव, चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों न हो; परंतु उससे यदि प्रदूषण होता हो, तो उसे रोकने के लिए प्रदूषण नियंत्रण विभाग एवं सरकार का शुद्ध उद्देश्य होना चाहिए । केवल हिन्दू त्योहारों के समय ही प्रदूषण का ढिंढोरा पीटना तथा पूरे वर्ष में होनेवाले प्रदूषण की अनदेखी करना, इससे प्रदूषण नहीं रुकेगा ।
क्या देश के प्रत्येक मदरसे में हिन्दू बच्चों को प्रवेश दिया गया है ? यह शीघ्रातिशीघ्र ढूंढकर उन्हें योग्य विद्यालय में भेजना चाहिए !
समाज में हिंसा कर सार्वजनिक अथवा निजी संपत्ति की हानि पहुचाने वालों को कठोर दण्ड देना चाहिए ।
पश्चिमी लोग चाहे कितना भी अधिक शोध कर लें, अभी भी उन्हें पूर्णता के बिंदु तक पहुंचने में अभी भी समय लगेगा; किंतु ऋषि-मुनियों लाखों वर्ष पूर्व ही इस पर गहन शोध करके संपूर्ण मानव जाति के लिए निर्धारित किया था तथा भारत में पीढियों से वह चलता आ रहा है, इसका उचित सम्मान होना चाहिए !
भारत में मादक पदार्थाें का व्यापार अल्प करने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाने चाहिए ! राष्ट्र को विकास एवं विश्वगुरु के स्तर पर ले जाने में जो अनेक चुनौतियां हैं, उनमें यह भी एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है ।
यदि प्रश्न पूछने के लिए भी पैसे लिए जाते हों, तो वैसा करनेवालों को नियम के अनुसार दण्ड मिलना ही चाहिए । यदि उन्हें दण्ड मिलेगा, तभी संसद, जिसे हम ‘लोकतंत्र का मंदिर’ कहते हैं, उसकी विश्वसनीयता अक्षुण्ण रहेगी ।
आज अमेरिका में पल रही बंदूक संस्कृति (नहीं, विकृति) भविष्य में संपूर्ण विश्व में फैल गई, तो कितना बडा अनर्थ हो जाएगा ? क्या इसका अमेरिका को भान है ?