अमेरिका के लेविस्टन शहर में ४० वर्षीय रॉबर्ट कार्ड ने अंधाधुंध गोलीबारी की, जिसमें २२ लोग मारे गए; जबकि सैकडों गंभीर रूप से घायल हुए । मृतकों की संख्या बढने की संभावना भी व्यक्त की जा रही है । रॉबर्ट एक कुशल निशानेबाज के रूप में जाना जाता है । वह समाचार लिखे जाने तक पुलिस के हत्थे नहीं चढा; परंतु उसके पास बंदूक अभी भी है । उसने यदि और कुछ किया, तो स्थिति भीषण बन सकती है । इसलिए पुलिस उसकी खोज कर रही है । गोलीबारी करनेवाला मनोरोगी है, तब पुलिस के हाथ नहीं लगा, क्या पुलिस प्रशासन की असफलता नहीं है ? कहा जाता है ‘कुछ दिन पूर्व रॉबर्ट चिकित्सा केंद्र में भर्ती था ।’ ऐसे में उसके पास हथियार क्यों था ? ‘एक मनोरोगी के पास पिस्तौल कहां से आई ?’, इसकी भी खोज होनी चाहिए । अमेरिका में ‘रॉबर्ट जैसे और कितने मनोरोगी हथियार रखते हैं ?’, इसकी भी तुरंत जांच होनी चाहिए । ‘एंड्रॉस्कोगिन काउंटी शेरीफ’ कार्यालय ने अपने फेसबुक खाते पर इस प्रकरण में संदिग्ध व्यक्ति के २ छायाचित्र प्रसारित किए हैं । इनमें वह कंधे पर हथियार रखकर गोलीबारी करता दिखाई दे रहा है । समाज के सभी स्तरों से यह मांग की जा रही है कि ‘पुलिस उसे शीघ्रातिशीघ्र पकडे ।’ रॉबर्ट अमेरिकी सेना के प्रशिक्षण केंद्र में ‘बंदूक प्रशिक्षक’ के रूप में कार्यरत था । कुछ दिन पूर्व उसे मानसिक चिकित्सा केंद्र में भी भर्ती किया गया था । उसने सैन्य शिविर पर गोलीबारी करने की धमकी दी थी । ‘एक प्रशिक्षित निशानेबाज मनोरोगी क्यों बन गया ?’, इस पर भी अमेरिकी सरकार को विचार करना चाहिए ।
सिक्के का दूसरा असफल पहलू !
‘अमेरिका एवं गोलीबारी’ यह समीकरण कोई नया नहीं है; क्योंकि वहां ऐसा कोई स्थान नहीं, जहां गोलीबारी नहीं होती । विद्यालय, खेल का प्रांगण, होटल अथवा मॉल जैसे अनेक स्थानों पर गोलीबारी होना सामान्य बात है । गोलीबारी की यह इस वर्ष की ५६५ वीं घटना है । पूरे वर्ष में हुई गोलीबारी की घटनाओं में १५ सहस्र लोगों की मृत्यु हुई है । इस कारण अमेरिकी नागरिक आतंक की छाया में जी रहे हैं । यह मात्र पढकर ही मन स्तब्ध हो जाता है । वास्तव में देखा जाए, तो अमेरिका सबसे शक्तिशाली राष्ट्र माना जाता है; परंतु वहां के जनमानस की इस प्रकार दुर्दशा होना, उस राष्ट्र के सामर्थ्य के लिए लज्जाजनक है । अमेरिका विकसित राष्ट्र है, इसलिए वहां किसी भी संकट का सामना करने की, हानि सहन कर भी उस पर विजय प्राप्त करने की तैयारी की गई है । किसी भी घटना में न्यूनतम जनहानि हो, इस दृष्टि से अमेरिका के प्रयास होते हैं । इसलिए अमेरिका में प्राकृतिक आपदाओं में मरनेवालों की संख्या अब कुछ अल्प हो रही है । यह हुआ सिक्के का एक पहलू; परंतु दूसरी ओर गोलीबारी में मरनेवालों की संख्या बढती जा रही है । इस पर अंकुश कौन लगाएगा ? इसे विकसित राष्ट्र अमेरिका की असफलता ही कहना होगा ।
अमेरिका के संविधान ने स्वरक्षा तथा राज्य की सुरक्षा के लिए वहां के नागरिकों को हथियार रखने का अधिकार दिया है; परंतु इस अधिकार का दुरुपयोग अत्यंत गंभीर तथा भयावह है । इससे संविधान का मूल उद्देश्य ही असफल हो रहा है । कोई भी आता है तथा हाथ में बंदूक लेकर गोलीबारी करने लगता है । इस कारण इस हिंसा को एक प्रकार की महामारी का स्वरूप प्राप्त हो रहा है । इस पर नियंत्रण लाने के लिए भले ही प्रयास किए जा रहे हों; परंतु संविधान के उद्देश्य का कारण देते हुए उसका उतना ही विरोध भी किया जा रहा है । जब तक हथियारों की अनुमति देने पर नियंत्रण नहीं लगाया जाता अथवा उस विषय में संतोषजनक निर्णय लिया नहीं जाता; तब तक पूंजीवादी अमेरिका में पली-बढी बंदूक संस्कृति नष्ट नहीं होगी, यह भी उतना ही सत्य है ! अमेरिका में कानूनन हथियार रखने की अनुमति मिलने के कारण हिंसा करवाकर सामाजिक स्वास्थ्य बिगाडा जाता है । प्रत्येक व्यक्ति को लगता है कि इस पर अंकुश लगना चाहिए; परंतु उसके आगे कुछ नहीं होता । प्रत्येक व्यक्ति संविधान का कारण देकर मौन हो जाता है ।
आज समस्त विश्व में अमेरिका जैसे विकसित देश का अनुसरण किया जाता है । अमेरिका के पदचिन्हों पर चलने का प्रयास अनेक लोग ही नहीं देश भी करते हैं । इसलिए अमेरिका को अपने दायित्व तथा कर्तव्य का भान रखना चाहिए । आज अमेरिका में पल रही बंदूक संस्कृति (नहीं, विकृति) भविष्य में संपूर्ण विश्व में फैल गई, तो कितना बडा अनर्थ हो जाएगा ? क्या इसका अमेरिका को भान है ? वैसा हुआ तो संपूर्ण विश्व में हाहाकार मच जाएगा तथा उसपर नियंत्रण पाना कितना कठिन होगा, इसका अमेरिका को विचार करना चाहिए ।
दिशा विकास की; परंतु मिल रही है मानहानि !
सभी क्षेत्रों में विकास के कार्य होने के कारण अमेरिका को एक धनवान एवं सुरक्षित राष्ट्र के रूप में जाना जाता था; परंतु बंदूक संस्कृति ने इसे कलंकित कर दिया है । यही अमेरिका अब प्रतिदिन असुरक्षित होती जा रही है । ‘वह पुनः कब सुरक्षित होगी ?’, यह निश्चित रूप से बताया नहीं जा सकता । सुरक्षा के लिए हथियारों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना ही इसका एकमात्र उपाय है; परंतु उसका क्रियान्वयन होना कठिन है । अमेरिका में हथियार रखने का विरोध करनेवालों की संख्या अल्प तथा उसका समर्थन करनेवालों की संख्या अधिक है । हथियार रखने का विरोध करनेवालों को ही हथियार का शिकार बनना पडता है, इतनी भयावह स्थिति वहां उत्पन्न हुई है; परंतु तब भी प्रत्येक व्यक्ति मौन है । इसके कारण संपूर्ण विश्व में अमेरिका की असीम मानहानि हो रही है । बंदूक संस्कृति के राष्ट्रघाती परिणामों को ध्यान में रखकर अमेरिका को वहां बढ रही हिंसक संस्कृति पर नियंत्रण लाना चाहिए। किसी भी राष्ट्र का संतुलन सुरक्षा के बल पर खडा होता है, यह सत्य है; परंतु अमेरिका में यह नींव ही खोखली हो गई है । ऐसे में क्या वहां वास्तव में राष्ट्रनिर्माण हो सकेगा ? अमेरिका सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर भी इस समस्या पर व्यापक चिंतन होकर इसका तुरंत समाधान निकाला जाना चाहिए !