निर्धारित समय पर वर्षाऋतु आती है, इस कहावत के अनुसार देहली की ‘वायु’ प्रतिवर्ष के समान शीतकाल में अधिक प्रदूषित होना आरंभ हो गया है । ४ नवंबर को वायु की गुणवत्ता अत्यंत निम्न स्तर की पाई गई । वायु की गुणवत्ता निर्देशांक सर्वाधिक, अर्थात ७०० प्रविष्ट हुआ । निर्देशांक ७०० होना अत्यंत गंभीर स्थिती है । नगर में धुएं की विषैली वायु का स्तर फैलने से अनेक लोगों को सांस लेने में कठिनाई हो रही है, त्वचारोग हो रहे हैं, आंखों की जलन बढ रही है तथा गले की विविध समस्याएं भी बढ रही हैं । गत मास में, अर्थात २२ अक्तूबर को भी ऐसी ही स्थिती थी; किंतु उस समय हुई वर्षा ने देहली को बचा लिया था । परिस्थिति नियंत्रण के बाहर होने से देहली सरकार ने अभी ६ ठी से १० वीं तक के विद्यालय बंद रखने का निर्णय लिया है ।
देहली प्रशासन के ऊपरी उपाय !
देहली सरकार ने १३ से २० नवंबर की अवधि में मार्ग पर चलनेवाले वाहनों के लिए ‘सम-विषम’ संख्या का नियम लागू किया है । इससे गाडियां अल्प मात्रा में मार्ग पर आएंगी, ऐसा प्रशासन का अनुमान है । साथ ही देहली प्रशासन से प्रदूषण नियंत्रण मंडल के प्रमाणपत्र के बिना कोई भी वाहन वाहनतल पर खडा न होने देना, सामग्री ढोनेवाली आवश्यक गाडियों को ही नगर में आने देना, नगर में धूल अल्प करने के लिए नगर के मार्गाें पर पानी छिडकना, आदि के साथ अन्य उपाय युद्धस्तर पर किए जा रहे हैं, जो ‘प्यास लगने पर कुआं खोदने’ जैसी हैं । अक्तूबर २०२२ में इसी प्रकार बडी मात्रा में प्रदूषण बढने पर उपाहारगृह एवं भोजनालय में लकडी अथवा कोयले का प्रयोग न करना, अत्यावश्यक सेवा-सुविधाएं छोडकर विद्युत जनित्र (जेनरेटर) के प्रयोग पर बंदी, पटाखों की निर्मिति, संग्रह तथा जलाने पर पूर्णत: बंदी लगाई गई थी; किंतु वह अधिक समय तक नहीं रही ।
६ नवंबर को एक दिन में २ सहस्र २०० वाहन धारकों से प्रदूषण नियंत्रण मंडल का प्रमाणपत्र न होने से दंड लिया गया । यहां प्रश्न यह उपस्िथत होता है कि इस प्रकार की जांच ‘सिर के ऊपर तक पानी’ आ जाने पर ही क्यों की जाती है ? पूरे वर्ष इतनी कडाई से वाहनों की जांच क्यों नहीं की जाती ? प्रदूषण की स्थिति नि नियंत्रण में लाने के लिए कोरोना महामारी के समय जैसे सरकारी एवं निजी कार्यालयों में ५० प्रतिशत अधिकारियों एवं कर्मचारियों की उपस्िथति जैसे निर्णय लेने पर विचार किया जा रहा है । दूसरे शब्दों में कहें, तो देहली में एक प्रकार से ‘यातायातबंदी’ जैसी स्थितित हो गई है ।
वास्तव में दायित्व किसका ?
प्रत्येक बार देहली में प्रदूषण बढने पर पंजाब एवं हरियाणा, इन २ राज्यों पर उंगली उठाई जाती है । वहां खेतों में सूखी घास तथा पराली जलाने के कारण होनेवाले धुएं से हमारे राज्य में प्रदूषण बढता है’, देहली सरकार सदा यही कहती है । दूसरी ओर देहली के बढे प्रदूषण पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए किसी भी निर्देश का देहली सरकार तथा प्रशासन द्वारा पालन नहीं किया जाता। नगर में ७० प्रतिशत प्रदूषण धूल एवं वाहनों के कारण होता है तथा उस पर नियंत्रण पाने में देहली की सरकार सदैव असफल रहती है । अनेक वायु विशेषज्ञों ने भी चेतावी दी है कि देहली में वायु प्रदूषण की ओर समय पर ध्यान न देने के कारण औद्योगिक क्षेत्र में स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी तथा कुछ परिवहन व्यवस्था को बंद भी करना पडेगा । केवल देहली ही नहीं, अपितु मुंबई, कर्णावती, चेन्नई एवं पुणे जैसे बडे नगरों की वायु भी बहुत प्रदूषित है । देहली के पश्चात मुंबई में ‘पटाखे फोडने से बचने’ तथा ‘मास्क’ का प्रयोग करने की चेतावनी दी गई है ।
कोरोना संक्रमण के समय अल्प हुए प्रदूषण में पुन: वृद्धि !
कोरोना संक्रमण की अवधि में अनेक नगरों का प्रदूषण घटा था, नदियों का पानी स्वच्छ हुआ था, हिमालय की पर्वतमालाएं भी स्पष्ट दिख रही थीं; किंतु २ वर्षाें के अंदर स्थिति ‘जैसी थी’ वैसी ही हो गई है, अपितु उदाहरण के साथ कह सकते हैं कि प्रदूषण अनेक गुना बढ गया है । स्पष्ट है कि जब कोरोना महामारी की समयावधि में प्रदूषण घटा, तो बढते प्रदूषण के लिए मानवीय त्रुटियां एवं कारक उत्तरदायी हैं । विकास एवं बडे स्तर पर हो रहा व्यवसायीकरण एवं औद्योगीकरण के नाम पर मानव ने प्रकृति पर अतिक्रमण करने का कोई भी अवसर नहीं छोडा है, अनगिनत पेडों की कटाई, पहाडों को तोडकर घर बनाना, सडकों को चार-लेन तथा आठ-लेन बनाना तथा पुन: पेडों को काटना आदि ।
मार्ग चौडा करने के लिए अनेक नगरों में वृक्ष काटे गए । बनाए जा रहे मार्ग मुख्यत: सिमेंट के ही होने से निर्माण के कारण होनेवाली धूल वातावरण में फैलती है । विगत कुछ वर्षाें में वाहनाें की संख्या में अमर्यादित वृद्धि होने से १५ वर्षाें से अधिक पुरानी गाडियों पर बंदी के निर्णय अनेक वर्षाें से केवल हवा में (कागद पर ) ही हैं ।
कठोर कदम उठाने की आवश्यकता !
देहली का प्रदूषण नियंत्रण में लाने के लिए कठोर कदम उठाने की आवश्यकता होने से नागरिकों को आरंभ में कडवे लगनेवाले निर्णय भी लेने पडेंगे । सप्ताह के कुछ दिन नागरिकों को सार्वजनिक आवागमन का प्रयोग करने की बाध्यता, ‘सी.एन.जी.’, तथा ‘इलेक्ट्रिक गाडियों की संख्या बढाना, नए पेड लगाने के लिए व्यापक अभियान चलाना, वाहनों से ले कर कारखानों तक प्रदूषण फैलानेवाले प्रत्येक घटक पर कठोर कार्यवाही कर आवश्यकता पडने पर उन्हें बंद करवाना, जनजागृति करना तथा साथ ही अन्य कदम भी उठाने पडेंगे । ऐसा किया गया, तभी कुछ मात्रा में प्रदूषण की समस्या अल्प होगी, अन्यथा चीन तथा लंदन जैसी स्थिति ‘दिन में सूर्य नहीं दिखता’, होने में देर नहीं होगी !