प्रदूषण नियंत्रण; परंतु अपनी सुविधा के अनुसार !

सर्वोच्च न्यायालय ने देहली की प्रदूषण संबंधी याचिका की सुनवाई के समय देहली एवं पंजाब सरकार को ‘हम लोगों को प्रदूषण से मरने नहीं देंगे’, इन शब्दों में फटकार लगाई । सर्वाेच्च न्यायालय ने प्रदूषण के विषय पर गंभीर टिप्पणी की, उसी समय महाराष्ट्र में मुंबई उच्च न्यायालय ने भी प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए मुंबई सहित आसपास के परिसर में पटाखे चलाने के समय में १ घंटे की कटौती करने का आदेश दिया । कुल मिलाकर भारत में प्रदूषण की समस्या गंभीर है । इस पर समय रहते ही उपाय नहीं किए गए, तो यह समस्या नियंत्रण से बाहर हो जाएगी । प्रदूषण की समस्या जितनी गंभीर है, उस गंभीरता से प्रशासन एवं सरकार उसे नियंत्रण में लाने के लिए प्रयास करती दिखाई नहीं देती । देश में वाहनों से निकलनेवाला कार्बन प्रदूषण का प्रमुख कारण है । उस पर उपाय के रूप में भारत ने इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग की नीति अपनाई है । अन्य राज्यों के साथ महाराष्ट्र में भी उस पर गति से कार्यवाही हो रही है, इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता; परंतु वायु प्रदूषण रोकने के इतने प्रयास पर्याप्त नहीं हैं । महाराष्ट्र सरकार ने ‘प्रदूषणमुक्त दीपावली’ मनाने की घोषणा की । प्रदूषण नियंत्रण विभाग ने इससे संबंधित एक औपचारिक कार्यक्रम भी किया । ‘प्रदूषणमुक्त दीपावली’ का अर्थ ‘पटाखों की आतिशबाजी पर नियंत्रण’ है ! केवल दीपावली ही नहीं, अपितु सभी त्योहार-उत्सव प्रदूषणमुक्त मनाए जाने चाहिए तथा प्रदूषण की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए इस पर कठोरता से कार्यवाही होनी चाहिए । यदि ऐसा है, तो राजनीतिक कार्यक्रमों तथा शोभायात्राओं में ही सर्वाधिक पटाखे चलाए जाते हैं; इसलिए प्रदूषणमुक्त दीपावली की घोषणा करते समय सभी मंत्रियों तथा राजनेताओं को पहले स्वयं ही आतिशबाजी पर नियंत्रण रखने का नियम बना लेना चाहिए । राजनीतिक दलों के प्रत्याशी जब अपनी विजय की शोभायात्राओं में अपने कार्यकर्ताओं से पटाखे न चलाने का आवाहन करेंगे, तभी उन्हें जनता को उपदेश देने का अधिकार मिलेगा । इसका अर्थ प्रभावीरूप से कार्यवाही हो पाएगी ।

प्रदूषण नियंत्रण विभाग क्या करता है ?

प्रदूषण नियंत्रण विभाग ‘गणेशोत्सव में प्रदूषण रोकें’, ‘प्रदूषणमुक्त दीपावली मनाएं’, ‘होली में प्रदूषण टालें’, जैसे सुझाव देता है; परंतु ‘यह विभाग पूरे वर्ष प्रदूषण रोकने के लिए क्या करता है ?’, यह प्रश्न उठता है । यह वही प्रदूषण नियंत्रण विभाग है, जिसने कुछ महीने पूर्व मनाए गए गणेशोत्सव के समय मंत्रालय के प्रांगण में ‘प्रदूषणमुक्त गणेशोत्सव’ का आवाहन करने के लिए पर्यावरणपूरक श्री गणेशमूर्तियों की प्रदर्शनी लगाई तथा वहां प्रदूषणकारी कागद की लुगदी से बनी श्री गणेशमूर्तियों को रखने की अनुमति दी । प्रदूषणमुक्ति का आवाहन करनेवाले इस विभाग ने कभी भी कागद की लुगदी से बनाई जानेवाली मूर्तियां पर्यावरण के लिए हानिकारक होने के संबंध में जनजागरण नहीं किया । महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण विभाग के जालस्थल पर वर्ष २०१४ से वार्षिक ब्योरे दिए गए हैं । इन ब्योरों में गणेशोत्सव एवं दीपावली के त्योहारों के समय राज्य के विभिन्न स्थानों पर ध्वनि की गणना के आंकडे दिए गए हैं । वर्ष में केवल एक बार आनेवाले त्योहारों के समय ही प्रदूषण की गणना करनेवाले तथा स्मरणपूर्वक उसे प्रकाशित करनेवाले इस विभाग ने ३६५ दिन मस्जिदों पर चलाए जानेवाले भोंपुओं की ध्वनि के स्तर की कभी गणना नहीं की तथा अपने वार्षिक ब्योरों में कभी भी उसके आंकडे प्रकाशित नहीं किए । इसलिए सामान्य लोगों के मन में यही प्रश्न उठता है कि ‘प्रदूषण नियंत्रण विभाग का कार्य क्या केवल वार्षिक ब्योरे के पन्ने भरना है ?’

केवल हिन्दुओं के त्योहारों के समय ही प्रदूषण का ढिंढोरा पीटनेवाला यह विभाग अन्य धर्मियों के त्योहारों के समय मौन रहता है । हिन्दुओं के त्योहारों के समय ‘प्रदूषण टालें’, ऐसा बोलनेवाला यह विभाग पूरे वर्ष पटाखों के कारण होनेवाले प्रदूषण के विषय में उद्बोधन नहीं करता । इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि कोई यह कह दे कि ‘प्रदूषण नियंत्रण विभाग का कार्य पक्षपातपूर्ण है ।’ प्रदूषण नियंत्रण विभाग एवं पर्यावरण विभाग विद्यालयों-महाविद्यालयों के छात्रों को प्रदूषणकारी पटाखों का उपयोग न करने का आवाहन कर सकता है; परंतु यह विभाग इतना करने का भी कष्ट नहीं उठाता ।

पटाखों पर नियंत्रण क्यों नहीं ?

एक ओर सरकार एवं प्रशासन प्रदूषण टालने का आवाहन करते हैं; परंतु दूसरी ओर पटाखों की दुकानों को अनुमति देते हैं । आज शहरों में ही नहीं, गांव-गांव तथा गली-मुहल्लों में पटाखों की दुकानें लगाई गई हैं । बडे शहरों में तो सडकें पटाखों की दुकानों से भरी हुई दिखाई देती हैं । किसी गांव अथवा शहर में पटाखों की कितनी दुकानें होनी चाहिए ?, इस पर कोई नियंत्रण होना चाहिए; परंतु इस पर किसी का भी नियंत्रण नहीं है । पटाखों की ये दुकानें अधिकतर राजनीतिक दलों के नेताओं तथा उनके शुभचिंतकों की ही होती हैं । पटाखों की बिक्री से मिलनेवाले आर्थिक लाभ पर आंखें गडाए बैठे इन लोगों को उस समय प्रदूषण का स्मरण नहीं होता; इसलिए प्रश्न यह उठता है कि ‘प्रदूषण नियंत्रण विभाग, प्रशासन तथा नेता भी प्रदूषण नियंत्रण के प्रति कितने गंभीर हैं ?’ त्योहार-उत्सव, चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों न हो; परंतु उससे यदि प्रदूषण होता हो, तो उसे रोकने के लिए प्रदूषण नियंत्रण विभाग एवं सरकार का शुद्ध उद्देश्य होना चाहिए । केवल हिन्दू त्योहारों के समय ही प्रदूषण का ढिंढोरा पीटना तथा पूरे वर्ष में होनेवाले प्रदूषण की अनदेखी करना, इससे प्रदूषण नहीं रुकेगा । प्रदूषण नियंत्रण करना कोई एक दिन का अथवा किसी विशिष्ट अवधि में करने का कार्य नहीं है । प्रदूषण नियंत्रण करना सरकार एवं प्रदूषण नियंत्रण विभाग के साथ ही नागरिकों का भी सामूहिक दायित्व है तथा इसके प्रति गंभीरता उत्पन्न करने का दायित्व सरकार एवं संबंधित व्यवस्था का है ।