संगीत चिकित्सा !


कैनेडा में मैकगिल विश्वविद्यालय के एक अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला है कि उदास संगीत सुनने से वेदना अल्‍प हो सकती है । इसका परिणाम यह हुआ कि रोगियों को वेदना का भान केवल १० प्रतिशत रह गया । मस्तिष्क ‘वेदना की अनुभूति से अधिक प्राथमिकता संगीत की अनुभूति को देता है । इसलिए, इसके पीछे का शास्त्र यह है कि भले ही शरीर को वेदना हो रही हो, किंतु मन को इसका भान करानेवाले संदेश प्रसारित नहीं होते हैं । किसी भी विकार में मानसिक भाग महत्त्वपूर्ण होता है । मन पर संगीत का गहन प्रभाव होता है । इसलिए संगीत सुनना अनेक विकारों में लाभदायक होता है । इस विषय पर भारत में प्राचीन काल से ही शोध होता रहा है तथा आज भी विविध स्‍तरों पर यह चल रहा है । १८ वीं सदी में पश्चिमी देशों में संगीत चिकित्‍सा का अध्ययन आरंभ हुआ तथा १९ वीं सदी में पहली बार अमेरिका में उसके प्रयोग किए गए । दूसरे महायुद्ध के पश्चात इन प्रयोगों की गति बढी । उपरोक्त प्रयोग उसी का एक भाग है । संगीत चिकित्सा के विषय में कोई मतभेद नहीं होगा; किंतु ‘उदास संगीत सुनने से शारीरिक वेदनाओं का अल्प होना, एक सीमा तक यह प्रयोग हो सकता है’ ।

प्राचीन भारतीय विज्ञान एवं उस पर आधारित वर्तमान शोध

सामवेद में ‘गंधर्ववेद चिकित्‍सा’ का उल्लेख मिलता है । यह संगीत चिकित्सा से ही संबंधित है । राग का कोमल स्‍वर मस्तिष्क को आराम देता है तथा नींद लाता है, जबकि शुद्ध स्‍वर ऊर्जा अथवा जागरूकता देता है । संगीत के ग्रंथों में कौन सी ध्‍वनियां कफ, पित्त, वात जैसे विकारों में उपयुक्त हो सकती हैं? इतना ही नहीं, अपितु किस समय ? कैसा क्रोध ? कब तक सुनना है? भारतीय ग्रंथों में इसका विस्तृत उल्लेख मिलता है । सवेरे सुनने के लिए मध्‍य अथवा मंद्र सप्‍तक की भूपाली है, तो ‘रात में सोते समय खर्ज अथवा मध्‍य सप्‍तक का संगीत सुनने’ को कहा जाता है । तानपुरा मन की एकाग्रता बढानेवाला है, जो ध्‍यान साधना के लिए भी उपयुक्त है । भारतीय शास्‍त्रीय संगीत के आध्‍यात्मिक स्‍तर का चैतन्‍य रोग प्रतिकार का मूल बीज है । उसके आध्‍यात्मिक भाग से ही चंचलता घटकर एकाग्रता बढती है तथा मन की यह एकाग्रता ही अनेक शारीरिक तथा मानसिक विकारों पर भी काम करती है ।

पंचकर्म चिकित्सा

संभाजीनगर के एक डॉक्टर अतुल मुरुगकर को पंचकर्म के समय कुछ निर्धारित रागदारी संगीत बजाने के प्रयोग लाभदायक सिद्ध हुए हैं । जमशेदपुर के ‘टाटा कैंसर सेंटर’ में भी कैंसर के रोगियों का मानसिक धैर्य बढाने के लिए उन्हें प्रत्‍यक्ष संगीत सुनाया जाता है । परिणाम स्वरूप उनका मन से सुदृढ होना ध्यान में आया । प्रसिद्ध बांसुरी वादक सचिन जगताप ने संगीत चिकित्‍सा पर शोध कर विविध व्‍याधियों के ४३७ रोगी ठीक किए हैं । शरीर में उष्‍णता (तेजतत्त्व) बढने पर आकाश तत्त्व से संबंधित राग ‘केदार एवं मालकंस’ तथा आपतत्त्व से संबंधित राग ‘मेघमल्‍हार’ सुनने पर उष्‍णता अल्प होकर शीतलता बढती है । सोरायसिस (एक त्‍वचारोग)पर राग ‘मधुवंती’, पित्त पर वृंदावनी सारंग, अस्थमा पर ‘मिया मल्‍हार’, पीठ दर्द पर ‘मारू बिहाग’, आधा सिर दुखने पर ‘दरबारी कानडा’ तथा उच्‍च रक्तचाप पर ‘बागेश्री’ एवं ‘गोरख कल्‍याण’ राग उपयुक्त हैं इस कला पर महर्षि अध्‍यात्‍म विश्वविद्यालय ने वैज्ञानिक शोध किए हैं । आम्‍लपित्त, दाह, उष्‍णता एवं पित्त पर ‘काफी’, ‘खमाज’, ‘मारवा’, ‘कलावती’ राग सुनने से अंतर आता है । रोगियों को निराशा से बाहर निकालने के लिए ‘ओडव’, ‘हंसध्‍वनि’, ‘दुर्गा’, ‘भूप’ रागों का संगीत, तो निद्रा के अभाव पर ‘यमन कल्‍याण’, ‘बागेश्री’ एवं ‘भैरवी’ राग सुनाए जाते हैं । ग्रीवा के तनाव पर ‘अहीर भैरव’ तथा ‘पुरिया’, संताप पर ‘मधुवंती’, ‘मधुकंस’ एवं ‘मारूबिहाग’ राग उपयुक्त सिद्ध होते हैं । हृदय विकार के लिए ‘भैरवी’ एवं ‘शिवरंजनी’ राग सुनाए जाते हैं । बांसुरी, संतूर तथा जलतरंग का वादन भी उत्‍साहवर्धक होता है । सारंगी, सरोद एवं सितार आदि वाद्यों का कंपन हृदय तक पहुंचता है । भूलने की व्याधि के रोगियों को विशेष ताल सुनाए जाते हैं । संगीत एवं मनोरोग विशेषज्ञों के परामर्श से उपचार लेने से अनेक रोगों पर संगीत चिकित्‍सा भी प्रभावी सिद्ध होती है । संगीत चिकित्सा का शास्‍त्र यह है कि मस्तिष्क में ‘डोपामाइन’ हार्मोन के स्राव को उत्तेजित करता है तथा चिंता एवं निराशा दूर करने में सहायता कर सकता है । संगीत से सहनशक्ति भी बढती है । कोरोना महामारी के समय कुछ कोविड केंद्रों में कुछ विशेष प्रकार का संगीत बजाया जाता था । इससे वहां के रोगियों का मनोबल बढ गया । आजकल मानसिकता को सकारात्मक रखने एवं कार्य क्षमता बढाने के लिए निजी प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों द्वारा संगीत चिकित्‍सा की जाती है । अब औषधोपचार के साथ पूरक के रूप में संगीत चिकित्सा की पद्धति आम होती जा रही है । हृदयरोग जैसे कुछ प्रमुख विकार के आरंभिक लक्षण मानसिक होते हैं, इसलिए आरंभ में ही उस पर संगीत चिकित्सा चालू करने से बडे विकारों से बचा जा सकता है । मानसिक व्‍याधि में संगीत चिकित्सा विशेष रूप से प्रभावी है । संतुलित जीवनशैली के लिए संगीत चिकित्सा भी सकारात्‍मक ऊर्जा ला सकती है । भारतीय जीवनशैली में संगीत का अीद्वतीय महत्त्व हैे; वास्तव में इसने इस पर नियंत्रण कर लिया है ।

संगीत की उत्पत्ति देवताओं से हुई है । हमारे धार्मिक कार्य, त्योहार, उत्‍सव, व्रत संगीत के बिना पूर्ण नहीं होते । संक्षेप में, पश्चिमी लोग चाहे कितना भी अधिक शोध कर लें, अभी भी उन्हें पूर्णता के बिंदु तक पहुंचने में अभी भी समय लगेगा; किंतु ऋषि-मुनियों लाखों वर्ष पूर्व ही इस पर गहन शोध करके संपूर्ण मानव जाति के लिए निर्धारित किया था तथा भारत में पीढियों से वह चलता आ रहा है, इसका उचित सम्मान होना चाहिए !