विगत कुछ दिनों से मराठा आरक्षण के लिए शांति से प्रदर्शन हो रहा था; किंतु बीड जनपद में ३० अक्तूबर को हुए हिंसक प्रदर्शन में ११ स्थानों पर आगजनी की घटनाएं हुई हैं । समाजकंटकों ने बीड जनपद के राष्ट्रवादी कांग्रेस के विधायक प्रकाश साळुंके एवं विधायक संदीप क्षीरसागर के घर जला दिए । माजलगांव नगर परिषद के भवन को भी आग लगाई । यवतमाळ, बीड तथा सोलापुर जैसे अनेक स्थानों पर एस.टी.पर पत्थर फेंक कर कांच फोडना तथा एस.टी. जलाना, जैसे प्रकरण भी हुए हैं । अकेले बीड जनपद में ६१ ‘एस.टी.’ बसों की तोडफोड की गई है । बीड नगर तथा माजलगांव में हुई हिंसा में ११ करोड रुपए की हानि हुई है । बीड के पुलिस अधीक्षक नंदकुमार ठाकुर ने कहा कि इस पूरी हानि की भरपाई इस प्रकरण के आरोपियों से वसूली जाएगी तथा यदि आरोपी यह भरपाई नहीं देंगे तो उनकी निजी संपत्ति नियंत्रण में लेकर भरपाई की जाएगी ।
देश के हिंसक प्रदर्शन !
देश के जनतंत्र में न्यायिक मांगों के लिए शांतिपूर्ण तथा वैध मार्ग से आंदोलन करने की अनुमति है; किंतु विगत कुछ वर्षाें में हिंसक आंदोलन कर समाज की संपत्ति की हानि करने के प्रकरणों में लक्षणीय वृद्धि हुई है । १ जनवरी २०१८ को पुणे जनपद के कोरेगांव-भीमा में हिंसक घटनाएं हुईं, तो दूसरी घटना फरवरी २०२० में पूर्वी देहली में हुई, उसी प्रकार १० वर्ष पूर्व मुंबई में भी आजाद मैदान में रजा अकादमी ने हिंसक आंदोलन कर सार्वजनिक संपत्ति की हानि की थी । इससे पूर्व स्वाभिमानी संगठन के नेता राजू शेट्टी द्वारा किए दूध एवं गन्ना आंदोलन में भी ट्रैक्टर तथा ट्रॉली जलाना, टैंकर का दूध मार्ग पर उंडेलना, ‘एस.टी.’ पर पत्थर फेंकना, ऐसी घटनाएं हुई हैं । जहां कोरेगांव-भीमा हिंसा का संबंध दलित प्रदर्शन से है, वहीं देहली की हिंसा नागरिकता अधिकार अधिनियम विरोधी (‘सीएए’) प्रदर्शन से संबंधित है ।
सरकार से हिंसा करनेवालों को अभय !
कोरेगांव-भीमा प्रकरण में तथा उसके उपरांत कोल्हापुर तथा पुणे में हुए हिंसक प्रदर्शन में बडी मात्रा में सार्वजनिक संपत्ति की हानि हुई थी । इस प्रकरण में अनेक लोगों पर अपराध प्रविष्ट कर उन्हें पकडा भी गया था; किंतु सरकार ने इन अपराधों को वापस ले लिया तथा घोषणा की कि संपत्ति की हानि की भरपाई सरकारी कोष से की जाएगी । एक ओर दिनरात कष्ट कर पुलिस हिंसक प्रदर्शनकारियों को पकडती है तो दूसरी ओर राजनीतिक लाभ के लिए इन अपराधों को वापस ले लिया जाता है तथा सरकारी कोष से हानि की भरपाई की जाती है । ऐसा केवल भारत में ही होता है और ऐसा कब तक चलता रहेगा ? यदि सरकार इसी तरह सभी अपराध वापस लेने लगे, तो कल कोई भी उठकर हाथ में कानून लेकर हिंसक प्रदर्शन आरंभ कर देगा ।
सामान्य जनता की रक्षा करना सरकार का सबसे महत्त्वपूर्ण काम है । हिंसा की घटनाओं में छोटे बच्चे, स्त्रियां तथा वरिष्ठ नागरिक त्रस्त होते हैं । वे मारपीट तथा आगजनी की बलि चढते हैं । हिंसक प्रदर्शनों के कारण सामान्य लोगों की सुरक्षा संकट में पडी है । उसमें अनेक करोड रुपए की हानि होती है । सरकारी संपत्ति, राज्य परिवहन मंडल की बसें, निजी वाहन एवं संपत्ति की हानि होती है । एस.टी. की हानि का सबसे बडा दुष्परिणाम सामान्य नागरिकों पर पडता है । राज्य के महत्त्वपूर्ण मार्गाें को रोक देने से अर्थव्यवस्था की बडी मात्रा में हानि होती है ।
हिंसक आंदोलन आतंकवाद का एक रूप है !
हिंसक प्रदर्शन आतंकवाद का ही एक रूप है । यदि देश के किसी समाज के साथ अन्याय हो रहा हो, तो उस अन्याय का उत्तर हिंसा नहीं है । भारतीय कानून हिंसा का समर्थन नहीं करता । यदि कोई समाज अथवा संगठन सरकार से कोई भी मांग मान्य कराना चाहता हो, तो उसे यह कार्य कानून के अनुसार ही करनी चाहिए । विगत कुछ समय में हुई हिंसा के लिए अनेक संगठन एवं राजनीतिक दल उत्तरदायी हैं ।
पुलिस, राजनीतिक दल एवं शासक में हिंसा का सामना करने की सामर्थ्य होनी चाहिए । हिंसा कौन कराता है, यह जानते हुए भी बैलेट बॉक्स की राजनीति के लिए उसे रोकने के प्रयास नहीं किए जाते । प्रदर्शनों की एक सीमा होनी चाहिए । लक्ष्मण रेखा पार हाे जाती है, जब प्रदर्शनकारी सार्वजनिक तथा निजी संपत्ति को नष्ट कर देते हैं, उस समय उन्हें रोकना पुलिस, राजनीतिक दल तथा सरकार आदि सभी का दायित्व है । मतपेटी के लिए सभी चुप रहते हैं । जहां प्रदर्शनकारी इकट्ठे होते हैं तथा हिंसा भडकाने के लिए उपकरण लेकर आते हैं । वहां पुलिस की संख्या न्यून सिद्ध होती है । इसलिए हिंसा नियंत्रित करने पर मर्यादाएं आती हैं । दंगाईयों पर नियंत्रण पाने के लिए पुलिस को आधुनिक तकनीक उपलब्ध कराने की आवश्यकता है । न्यायालय को प्रदर्शन करनेवालों के लिए, उनसे हुई हानि की भरपाई उन्हीं से कराना अनिवार्य करना चाहिए । इससे भविष्य में हिंसा तथा हानि रोकने में सहायता होगी । प्रदर्शनकारियों पर न्यायालय में फास्ट-ट्रैक (द्रुतगति) अभियोग चलाकर दंडित करना चाहिए जिससे उनमें कानून का भय होगा । समाज में हिंसा कर सार्वजनिक अथवा निजी संपत्ति को हानि पहुंचाने को आजीवन कारावास जैसा कठोर दण्ड देना चाहिए । राजनीतिक लाभ के लिए ऐसे अपराधियों को क्षमा नहीं करनी चाहिए ।
समाज में हिंसा कर सार्वजनिक अथवा निजी संपत्ति की हानि पहुचाने वालों को कठोर दण्ड देना चाहिए । |