सांसदों की नैतिकता पर प्रश्नचिह्न !

संपादकीय

झारखंड के सांसद निशिकांत दुबे और तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा

झारखंड के गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने सदन में प्रश्न पूछने के लिए मुंबई के एक व्यवसायी से उपहार एवं नकद पैसे लिए थे । सांसद मोइत्रा पर ‘अदानी समूह’ को अडचन में डालने के लिए पैसे लेकर अदानी समूह के विरुद्ध जानबूझकर प्रश्न पूछने का आरोप है । इस संदर्भ में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिडला ने लोकसभा की आचार (आचरण समिति) समिति को यह आपत्ति भेज दी है । इस संबंध में मोइत्रा को २० अक्टूबर तक उत्तर देने कहा गया है, समिति २६ अक्टूबर को सुनवाई करेगी । सांसद महुआ मोइत्रा ने इन सभी आरोपों को अस्वीकार किया तथा कहा है, ‘जब तक कोयला घोटाले में अदानी समूह का भ्रष्टाचार सामने नहीं आ जाता, तब तक मैं शांत नहीं बैठूंगी’ ।

पैसे लेकर संसद में प्रश्न पूछना, अब तक अनेक बार इस प्रकार के आरोप लगाए जा चुके हैं । वर्ष १९५१ में कांग्रेस के तत्कालीन सांसद एच.जी. मुद्गल पर ५ सहस्र रुपए लेकर प्रश्न पूछने का आरोप लगा था । इस आरोप की जांच करने के लिए एक विशेष समिति बनाई गई थी । इसके उपरांत जब संसद में मुद्गल को संसद से निष्कासित करने की चर्चा होने लगी, तब उन्होंने त्यागपत्र दे दिया । इसके उपरांत भी मध्यावधि में अनेक सांसदों पर पैसे लेने के आरोप लगे; वास्तव में एकाध बार ही यह सच सिद्ध हुआ । वर्ष २००५ में हुए एक प्रकरण में भारतीय जनता पार्टी के ६, बहुजन समाज पर्टी के ३, तथा कांग्रेस एवं राष्ट्रीय जनता दल के एक एक सांसद, सब मिलाकर ११ सांसद संसद में प्रश्न पूछने के लिए नकद पैसे लेते पाए गए थे । उस समय उन्हें निलंबित किया गया था । इस निलंबन को सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष २००७ में यथावत रखा था ।

संसद, जो लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था है, जहां सामान्य नागरिकों के हित के लिए प्रश्न पूछे जाने, राष्ट्रहित के सूत्रों पर चर्चा करने तथा विविध समस्याओं को प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जाती है, वहां यह प्रश्न होना गंभीर है । व्यवसायियों, व्यापारियों तथा मद्य विक्रेताओं से पैसे लेकर उनके हित के प्रश्न पूछे जाते हों, तो यह गंभीर है । इससे ध्यान में आता है कि भ्रष्टाचार का स्तर कितना नीचे चला गया है । संसद लोकतंत्र का सर्वोच्च मंच है तथा जनता द्वारा बडी आस्था से चुने गए जन प्रतिनिधियों के लिए यह आवश्यक है कि वे वहां जनता की ओर से प्रश्न पूछें, सरकार एवं व्यवस्था को तीखे प्रश्नों के घेरे में रखें । जन प्रतिनिधियों को लोगों की समस्याएं सुलझाने, आवश्यक विधिनियम बनाने एवं नीति-निर्माण के लिए सक्रिय रहना आवश्यक है ।

इसलिए यदि प्रश्न पूछने के लिए भी पैसे लिए जाते हों, तो वैसा करनेवालों को नियम के अनुसार दण्ड मिलना ही चाहिए । दुर्भाग्य से कुप्रशासन, न्यायिक कदाचार तथा सभी राजनीतिक दलों की ओर से अपने सांसदों को दंडित करने की सामूहिक इच्छाशक्ति के अभाव के कारण ऐसे प्रकरणों में दण्ड होने के प्रकरण हाथ की उंगलियों पर गिनने जैसे ही हैं । यदि उन्हें दण्ड मिलेगा, तभी संसद, जिसे हम ‘लोकतंत्र का मंदिर’ कहते हैं, उसकी विश्वसनीयता अक्षुण्ण रहेगी । इसलिए सांसद मोइत्रा जैसे जो भी आरोपी हैं, समय सीमा निश्चित कर ही उनकी जांच की जानी चाहिए । यदि ऐसा हुआ तो अयोग्य कृति करनेवाल अन्य लोगों को पकडने में सहायता होगी ।