त्याग और चैतन्य की प्रतीक हाथ में कमंडलु लिए दत्त की त्रिमुखी मूर्ति  !

१४ दिसंबर, दत्तात्रेय जयंती के उपलक्ष्य में…

सनातन निर्मित भगवान दत्त का सात्विक चित्र

१. अर्थ

‘भगवान की निर्गुण तरंगों को स्वयं में समा लेनेवाला तथा अनिष्ट शक्तियों को दूर करने के लिए एक ही पल में पूरे त्रिलोक को एक ही मंडल में खींचने की क्षमता से युक्त जल जिस कुंड में है, वह कुंड है भगवान दत्तात्रेय के हाथ में पकडा कमंडलु ।’

– एक विद्वान (श्रीचित्‌शक्ति [श्रीमती] अंजली मुकुल गाडगीळजी ‘एक विद्वान’ के नाम से भाष्य लिखती हैं, ८.५.२००५)

२. विशेषता

‘भगवान दत्तात्रेय के हाथ में पकडे कमंडलु का जल सबसे पवित्र होता है ।’ – कु. मधुरा भोसले (११.५.२००५)

कमंडलु

३. किस बात का प्रतीक ?

कमंडलु और दंड संन्यासी के साथ रहते हैं । साधु वैरागी होता है । कमंडलु त्याग का प्रतीक है; क्योंकि कमंडलु ही उनका सांसारिक धन है । भगवान दत्तात्रेय के हाथ का कमंडलु निर्गुण रूपी सुप्त मारक चैतन्य का प्रतीक है ।

४. दिशा के अनुसार कमंडलु का कार्य

जिस दिशा में कमंडलु झुकता है उस दिशा की अनिष्ट शक्तियों का विनाश : भगवान दत्तात्रेय के हाथ का कमंडलु आवश्यकतानुसार अनिष्ट शक्तियों के निर्दालन के लिए झुकी हुई अवस्था में सभी दिशाओं में भ्रमण करता है, और उस स्थान पर निर्गुण रूपी मारक चैतन्य का प्रवाही स्रोत प्रक्षेपित करता है । विनाश के समय, कमंडलु पूरी तरह से पाताल की ओर उल्टा जाता है और पाताल में सभी प्रकार की अनिष्ट शक्तियों को नष्ट कर, शिव की लय शक्ति की सहायता करता है । आकाश की ओर कमंडलु की स्थिर स्थिति ब्रह्मांड की संतुलन स्थिति को दर्शाती है ।’

– एक विद्वान (श्रीचित्‌शक्ति [श्रीमती] अंजली मुकुल गाडगीळजी ‘एक विद्वान’ के नाम से भाष्य करती हैं, ८.५.२००५)

  • बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्तियों से हो रही पीडा के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपचार वेदादि धर्मग्रंथों में वर्णित हैं ।
  • सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रिय हैं । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है ।
  • सूक्ष्म परीक्षण : कुछ घटना अथवा प्रक्रिया के विषय में चित्त को (अंतर्मन को) जो अनुभव होता है, उसे ‘सूक्ष्म परीक्षण’ कहते हैं ।