नांदीश्राद्ध (वृद्धिश्राद्ध) क्या है ? यह क्यों करते हैं ?

प्रत्येक मंगलकार्य के आरंभ में विघ्ननिवारणार्थ श्री गणपति पूजन करते हैं । उसी प्रकार पितर एवं पितर देवताओं का (नांदीमुख इत्यादि देवताओं का) नांदीश्राद्ध करते हैं ।

पितृपक्ष में महालय श्राद्ध कर पितरों का आशीर्वाद प्राप्‍त करें !

श्राद्धविधि करने से पितृदोष के कारण साधना में आनेवाली बाधाएं दूर होकर साधना में सहायता मिलती है । ‘सभी पूर्वज संतुष्‍ट हों और साधना के लिए उनके आशीर्वाद मिलें’, इसके लिए पितृपक्ष में महालय श्राद्ध करना चाहिए ।

रक्षाबंधन का आध्यात्मिक उद्देश्य !

रक्षाबंधन के दिन बहन भाई के हाथ में राखी का धागा बांधती है । चित्त में यदि शुद्ध एवं अच्छी भावनाएं न हों, तो राखी केवल एक धागा बनकर रह जाती है । यदि अच्छी पवित्र, दृढ एवं सुंदर भावना हो, तो वही कोमल धागा बडा चमत्कार करता है ।

वैश्‍विक हिन्दू राष्‍ट्र अधिवेशन का पांचवां दिन (२८ जून) – उद़्‍बोधन सत्र : मंदिर संस्‍कृति का पुनर्जीवन

मंदिर के पुरोहितों का धर्म केवल लोगों को तिलक लगाने तक ही मर्यादित नहीं है । हिन्दुओं को धर्म की शिक्षा देना भी उनसे अपेक्षित है । उससे हिन्दुओं का धर्माभिमान बढकर उनका मनोबल बढेगा औेर सभी संगठित होंगे ।

नागपंचमी पर नागपूजन का महत्त्व

नागपंचमी के दिन कुछ न काटें, न तलें, चूल्हे पर तवा न रखें इत्यादि संकेतों का पालन बताया गया है । इस दिन भूमिखनन न करें ।

चातुर्मास काल में साधना का महत्त्व

परमार्थ हेतु पोषक तथा ईश्वर के गुणों को स्वयं में अंतर्भूत करने हेतु नामजप, सत्संग, सत्सेवा, त्याग, प्रीति इत्यादि सभी कृत्य करना, साथ ही गृहस्थी एवं साधना के लिए मारक तत्त्वों का अर्थात षड्‌रिपुओं का निषेध करना, चातुर्मास के ये दो मुख्य उद्देश्य हैं ।

‘हिन्दू नववर्ष कैसे मनाएं ?’, इस विषय पर राजस्थान में हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा प्रबोधन !

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से यहां स्थानीय मंदिर में सामूहिक रूप से ब्रह्मध्वज का रोपण किया गया । प्रार्थना एवं मंत्रों के उच्चारण के साथ में प्रसाद वितरण कर यह कार्यक्रम उत्साहपूर्वक संपन्न हुआ ।

अक्षय तृतीया के अवसर पर उससे संबंधित धार्मिक कृत्य कैसे करें एवं उसका लाभ क्या है ?

हिन्दू धर्म के साढे तीन शुभमुहूर्ताें में से एक है वैशाख शुक्ल तृतीया । इसीलिए इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहते हैं । इस तिथि पर कोई भी समय शुभमुहूर्त ही होता है । इस वर्ष अक्षय तृतीया १० मई २०२४ को हैं ।

अक्षय तृतीया के पर्व पर ‘सत्पात्र दान’ देकर ‘अक्षय दान’ का फल प्राप्त करें !

‘अक्षय तृतीया’ हिन्दू धर्म के साढेतीन शुभमुहूर्ताें में से एक मुहूर्त है । इस दिन की कोई भी घटिका शुभमुहूर्त ही होती है । इस दिन किया जानेवाला दान और हवन का क्षय नहीं होता; जिसका अर्थ उनका फल मिलता ही है । इसलिए कई लोग इस दिन बडी मात्रा में दानधर्म करते हैं ।

धर्मप्रेम बढाएं और धर्माभिमानी बनें !

यह न भूलें कि ‘धर्म’ राष्ट्र का प्राण है । राष्ट्र को धर्म का अधिष्ठान हो, राजा तथा प्रजा दोनों धर्मपालक हों, तभी राष्ट्र सभी संकटों से मुक्त और सुखी बनता है !