शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का संविधान में संशोधन का आह्वान !

प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) – धर्म शिक्षा हमारे बच्चों का मौलिक अधिकार है । यदि आवश्यक हो तो संविधान में संशोधन किया जाना चाहिए । धार्मिक शिक्षा हमारे जीवन का एक अनिवार्य भाग थी; किन्तु स्वतंत्रता के उपरांत संविधान के अनुच्छेद ३० से देश में बदलाव लाया गया । अल्पसंख्यकों को धार्मिक आधार पर शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार दिया गया; किन्तु बहुसंख्यक हिन्दू इस सुविधा से वंचित रहे । इसका परिणाम यह है कि आज ७५ वर्षों के उपरांत भी हिन्दू बच्चों को धार्मिक शिक्षा से पूरी तरह वंचित रखा जा रहा है और उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य किया जा रहा है, यह बात उत्तराखंड के जोशीमठ स्थित ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने महाकुंभ क्षेत्र में आयोजित धर्म संसद में कही ।
🙏🏻 Shankaracharya Swami Avimukteshwaranand Saraswati @jyotirmathah speaks out! 🕉️
“Hindus are denied the right to establish religious schools, while minorities have this privilege”. 🤔
He demands constitutional reforms to ensure Dharmik education is a fundamental right for… pic.twitter.com/QmbJCLOFMS
— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) February 7, 2025
शंकराचार्य ने आगे कहा, “सर्वोच्च धर्म परिषद इस सर्वोच्च आदेश के माध्यम से घोषणा करती है कि धर्म शिक्षा प्रत्येक हिन्दू बच्चे का मौलिक अधिकार है । यदि आवश्यक हो तो संविधान में संशोधन किया जाना चाहिए और प्रत्येक हिन्दू बच्चे को अपने धर्म की शिक्षा प्राप्त करने के लिए पर्याप्त व्यवस्था और वातावरण प्रदान किया जाना चाहिए । मानव जीवन के अनेक पहलू हैं, जिनमें धर्म का भी समावेश है ।
उन्होंने कहा, “चूंकि हमारा पूरा जीवन धर्म के अनुसार व्यतीत होता है, अत: जीवन के आरंभ से ही हम शिक्षा के माध्यम से धर्म के नियमों और विधानों के साथ-साथ उसके सार को भी समझते हैं ।” ऐसा माना जाता था कि ‘धर्मेण हीनः पशुभिः समानः’ अर्थात् धर्म के बिना जीवन ‘पशु जीवन’ है । शिक्षा पूर्ण करके गुरुकुल से घर लौटते समय हमारे गुरु दीक्षांत समारोह में अपने बेटे को निर्देश देते थे ‘’सत्यं वद् धर्मं चर’‘ यह सत्य अंगीकार कर धार्मिक जीवन जीने का आदेश था ।”