ग्रंथमाला : आचारधर्म (हिन्दू आचारोंका अध्यात्मशास्त्र)

आनंदमय जीवन व्यतीत करते हुए मनुष्य ईश्वरप्राप्ति की दिशा में आगे बढे, इसके लिए हिन्दू धर्म में विविध आचार बताए गए हैं। काल के प्रवाह में हिन्दू इन आचारों को भूल गए, इसलिए उनका अध:पतन हो रहा है। इस अध:पतन को रोकने हेतु यह ग्रंथमाला पढें।

दैनिक जीवन में धर्माचरण की विशेषताएं एवं अध्यात्मशास्त्र

कलियुग में मनुष्य देवधर्म से कोसों दूर चला गया है । इसलिए टोपी या फेटा जैसे बाह्य माध्यमों की आवश्यकता लगने लगी, जिससे उसमें अपने कर्म के प्रति भाव तथा गंभीरता व आगे इसी माध्यम से ईश्वरप्राप्ति की रुचि उत्पन्न हो । इसीसे फेटा या टोपी धारण करने की पद्धति निर्मित हुई ।

पोंछा लगाने के संदर्भ में आचार

यंत्र से भूमि पोंछते हुए शरीर अधिकांशतः झुका हुआ नहीं होता, हम खडे-खडे ही भूमि स्वच्छ करते हैं । ऐसे में शरीर की विशिष्ट मुद्रा के अभाव के कारण सूर्यनाडी जागृत नहीं होती । परिणामस्वरूप यंत्र से भूमि पोंछने के कृत्य द्वारा निर्मित कष्टदायक तरंगों से देहमंडलकी भी रक्षा नहीं हो पाती ।

मथुरा में हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा ‘आनन्दमय जीवन हेतु साधना’ विषय पर मार्गदर्शन

मथुरा के श्रीजी शिवाशा एस्टेट के मंदिर परिसर में हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ चारुदत्त पिंगळेजी ने ‘आनन्दमय जीवन हेतु साधना’ विषय पर मार्गदर्शन किया ।

ग्रंथमाला : देवताओंकी उपासना एवं उसका अध्यात्मशास्त्र

देवताकी विशेषताएं एवं कार्य पता चलनेपर देवताकी महिमा समझमें आती है । देवताकी उपासनाका शास्त्र समझमें आनेपर देवताकी उपासनासम्बन्धी श्रद्धा बढती है । श्रद्धासे उपासना भावपूर्ण होती है एवं भावपूर्ण उपासना ही अधिक फलदायी होती है ।

शृंगदर्शन के लाभ

शृंगदर्शन करने से व्यक्ति का भाव जागृत होता है । वह शिवपिंडी के प्रत्यक्ष दर्शन करता है, उस समय उसकी आत्मशक्ति (कुछ क्षणोंके लिए) जागृत होती है तथा उसका ध्यान भी लगता है ।

महाशिवरात्रि

शिवरात्रि के दिन रात्रि के चार प्रहर चार पूजा करने का विधान है । उन्हें ‘यामपूजा’ कहते हैं । प्रत्येक यामपूजा में भगवान शिव को अभ्यंगस्नान करवाएं, अनुलेपन करें तथा धतूरा, आम एवं बेल के पत्ते चढाएं । चावल के आटे के २६ दीप जलाकर उनकी आरती उतारें । पूजा के दिन १०८ दीपों का दान दें ।

आध्यात्मिक स्तर घोषित होने पर स्तरानुसार जीव पर होनेवाले परिणाम और उसका अध्यात्मशास्त्र

आध्यात्मिक स्तर घोषित करने का महत्त्व, आध्यात्मिक स्तर घोषित नहीं किया गया, तो जीव में अप्रकट रूप में शक्ति का कार्यरत रहना, आध्यात्मिक स्तर घोषित करने पर आकाशतत्त्व के कारण शक्ति की जागृति होना

काल के अनुसार आवश्यक सप्तदेवताओं के नामजप सनातन संस्था के जालस्थल (वेबसाइट) एवं ‘सनातन चैतन्यवाणी’ एप पर उपलब्ध !

भावपूर्ण और लगन के किए गए नामजप के कारण व्यक्ति को हो रहे अनिष्ट शक्तियों के कष्ट का निवारण हो सकता है; परंतु यह बात कई लोगों को ज्ञात न होने से वे अनिष्ट शक्तियों के निवारण हेतु तांत्रिकों के पास जाते हैं । तांत्रिक द्वारा किए जानेवाले उपाय तात्कालिक होते हैं ।

देहली के साधक दंपति श्री. संजीव कुमार (आयु ७० वर्ष) एवं श्रीमती माला कुमार (आयु ६७ वर्ष) सनातन के ११५ वें और ११६ वें समष्टि संतपद पर विराजमान !

इस दंपति ने एकत्रित रूप से साधना का आरंभ किया । वर्ष २०१७ में एक ही दिन इन दोनों का आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत हुआ और आज के इस मंगल दिवस पर इन दोनों ने ७१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर एक ही दिन संतपद भी प्राप्त कर लिया है ।