१. पोंछा लगाने के लिए उपयोग किए जानेवाले पानी में चुटकीभर विभूति डालें ।
२. अध्यात्मशास्त्र : विभूति में सात्त्विक शक्ति होती है । विभूति युक्त जलसे पोंछा करने से, भूमि पर अनिष्ट शक्तियों के कारण आई कष्टदायक शक्ति की परत नष्ट होने में सहायता मिलती है ।
३. जलदेवता से प्रार्थना : पोंछा लगाने से पूर्व जलदेवता से प्रार्थना करें, ‘अनिष्ट शक्तियों के कारण भूमि पर आया कष्टदायक शक्ति का आवरण पानी के चैतन्य द्वारा नष्ट होने दें ।’
४. दाहिने हाथ से (पटिया पर घुटने टिकाए बिना, उकडूं बैठकर) गीले कपडे से पोंछा लगाएं । : भूमि पोंछने के उपरांत अगरबत्ती जलाकर घर में निर्मित सात्त्विकता बनी रहे, इसके लिए वास्तुदेवता से प्रार्थना करें ।
५. यंत्र की सहायता से भूमि पोंछने से संभावित हानि
६. वास्तु दूषित होना : ‘यंत्र की सहायता से भूमि पोंछने पर संलग्न घर्षणात्मक नाद की ओर पाताल की कष्टदायक तरंगें तीव्र गति से आकृष्ट होती हैं । ये तरंगें जल में स्थित आपतत्त्व की सहायता से भूमि पर प्रसारित होती हैं । इस कारण यांत्रिक पद्धति से भूमि पोंछने से कष्टदायक तरंगों का आवरण भूमि पर निर्मित होता है तथा भूमि इन तरंगों को स्वयं में घनीभूत करने के लिए तैयार होती है । इससे वास्तु दूषित होती है ।
७. अस्थि एवं स्नायुरोग होना : यांत्रिक पद्धति से भूमि पोंछने से निर्मित होनेवाली कष्टदायक तरंगों के कारण पैर में स्नायुरोग, अस्थिरोग, अस्थिक्षय, जोडों में वेदना इत्यादि कष्ट हो सकते हैं ।
८. अनिष्ट शक्तियों से अधिक कष्ट की आशं का होना : यंत्र से भूमि पोंछते हुए शरीर अधिकांशतः झुका हुआ नहीं होता, हम खडे-खडे ही भूमि स्वच्छ करते हैं । ऐसे में शरीर की विशिष्ट मुद्रा के अभाव के कारण सूर्यनाडी जागृत नहीं होती । परिणामस्वरूप यंत्र से भूमि पोंछने के कृत्य द्वारा निर्मित कष्टदायक तरंगों से देहमंडलकी भी रक्षा नहीं हो पाती । इस कारण जीव को अनिष्ट शक्तियों से कष्ट अधिक हो सकता है । इसलिए झुककर यंत्र रहित अर्थात दाहिने हाथ से भूमि पोंछना अधिक लाभदायक है ।’
– एक विद्वान (श्रीचित्शक्ति [श्रीमती] अंजली मुकुल गाडगीळजी के माध्यम से, २५.१२.२००७, सायं. ७.३२)