१. शिवजी की पिंडी से प्रक्षेपित तेज सह पाना
‘शिवजी की पिंडी से प्रक्षेपित तेज सर्वसामान्य व्यक्ति सहसा नहीं सह पाता । नंदी के सींगों से प्रक्षेपित शिवतत्त्व की सगुण मारक तरंगों के कारण व्यक्ति के शरीर में विद्यमान रज-तम कणों का विघटन होता है तथा उसकी सात्त्विकता बढने में सहायता होती है । इस कारण व्यक्ति शिवजी की पिंडी से निकलनेवाली शक्तिशाली तरंगें सह पाता है । नंदी के सींगों के दर्शन किए बिना शिवजी के दर्शन करने पर तेज की तरंगों के आघात से शरीर में उष्णता निर्माण होना, सिर बधीर (सुन्न) होना, शरीर अचानक कांपना आदि कष्ट हो सकते हैं ।’
२. ‘शिवपिंडी से प्रक्षेपित शक्ति का प्रवाह अधिक कार्यरत होना
दाहिने हाथ की तर्जनी एवं अंगूठे को नंदीदेव के सींगों पर टिकाने से निर्मित मुद्रा से श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक स्तर पर अधिक लाभ होता है । नली से वायु प्रक्षेपित करने पर उसका वेग एवं तीव्रता अधिक होती है, इसके विपरीत पंखे की वायु सर्वत्र फैलती है । ऐसा प्रतीत होता है कि उपरोक्त मुद्रा के कारण नलीसमान कार्य होता है । इस मुद्रा के कारण शिवपिंडी से प्रक्षेपित शक्ति का प्रवाह अधिक मात्रा में कार्य करता है । इस प्रकार से की गई मुद्रा के कारण शक्ति के स्पंदन संपूर्ण शरीर में फैलते हैं ।’
शृंगदर्शन के सूक्ष्म स्तरीय लाभ दर्शानेवाला चित्र
सूक्ष्म चित्र का विश्लेषण
१. नंदी के शृंगों में शिवजी की अप्रकट क्रियाशक्ति समाई रहती है ।
२. शृंगदर्शन करते समय व्यक्ति की देहपर विद्यमान काली शक्ति का विघटन होता है । मनके अनुचित विचार नष्ट होते हैं, साथ ही उसकी बुद्धि भी शुद्ध होती है ।
३. शिवजी की पिंडी से प्रक्षेपित स्पंदन सामान्य व्यक्ति को सहनेयोग्य नहीं होते हैं । शृंगदर्शन करने से वे सहजता से ग्रहण हो पाते हैं ।
४. शृंगदर्शन करने से व्यक्ति का भाव जागृत होता है । वह शिवपिंडी के प्रत्यक्ष दर्शन करता है, उस समय उसकी आत्मशक्ति (कुछ क्षणोंके लिए) जागृत होती है तथा उसका ध्यान भी लगता है ।’
– श्रीमती प्रियांका सुयश गाडगीळ, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा.