श्रीमन्नारायण स्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के रथोत्सव में विविध पथकों की साधक-साधिकाओं ने श्रीविष्णु का गुणसंकीर्तन कर श्रीविष्णु तत्त्व का आवाहन किया । अत्यंत अलौकिक ऐसे इस रथोत्सव में भाव, भक्ति एवं चैतन्य के वर्षाव की अनुभूति साधकों को हुई ।
विशेष बात यह है कि अनेक साधकों को यह पता ही नहीं था कि उनके सामनेवाले रथ में परात्पर गुरु डॉक्टरजी का छायाचित्र नहीं, अपितु वे स्वयं उपस्थित हैं, तब भी उनकी भावजागृति हो रही थी । संपूर्ण वातावरण नारायणमय हो गया था । ‘नारायण नारायण गुरुवर नारायण’ यह मधुर धुन गाते हुए मार्गक्रमण करनेवाला रथोत्सव देखकर, वातावरण इतना भावमय हो गया था कि इससे अन्यों का भी भाव जागृत हो रहा था । एक प्रकार से यह रथोत्सव चित्तवृत्ति जागृत करनेवाला एवं अंतर्मुखता बढानेवाला सिद्ध हुआ !
श्रीमन्नारायण स्वरूप गुरुदेवजी का ‘न भूतो, न भविष्यति’ ऐसा दिव्य रथोत्सव !
अब तक महर्षि की आज्ञा से परात्पर गुरुदेवजी का दिव्यत्व उजागर करनेवाले विविध समारोह साधकों ने अनुभव किए; परंतु उन सभी समारोह में यह रथोत्सव अद्वितीय था !
वर्षभर मंदिर में रहनेवाले भगवान वार्षिक पालकी के उत्सव के समय स्वयं भक्तों से मिलने जाते हैं, उस समय भक्त एवं भगवान, दोनों को ही इस भेंट का अपार आनंद मिलता है । बिलकुल उसी प्रकार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं साधकों को एक-दूसरे से मिलकर अपरंपार आनंद मिला !