परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के रथोत्सव के संदर्भ में हुई प्रकृति की अनुपम लीला !
१. वर्षा होते हुए भी महर्षि द्वारा बताए रथोत्सव की दिनांक आगे बढाने के विषय में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का पूछने के लिए कहना; परंतु उसके उपरांत ‘वैसा करना अर्थात महर्षि पर अविश्वास दिखाने समान होगा’, ऐसा लगने पर उनका महर्षि से त्रिवार क्षमा मांगना
१ अ. १८.५.२०२२ को ‘गोवा में अगले २ दिन बिजली की कडकडाहट के साथ वर्षा होगी’, ऐसा दैनिक में समाचार प्रकाशित होने से एवं उस अनुसार वर्षा होने से ‘२२ मई को महर्षिजी द्वारा बताए रथोत्सव की दिनांक आगे बढाई जा सकेगी क्या ?’, ऐसा पूछना चाहिए, इस प्रकार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मन में आना : ‘२२.५.२०२२ को मेरी जन्मतिथि थी । उस दिन मेरा रथोत्सव करें’, ऐसा महर्षिजी ने ‘सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका’ द्वारा पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से मुझे सूचित किया । १७.५.२०२२ को गोवा में बहुत वर्षा हुई । १८.५.२०२२ को दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में समाचार प्रकाशित हुआ था कि गोवा में अगले २ दिन बिजली की कडकडाहट के साथ वर्षा होगी और हवा भी तेज होगी !’ २०.५.२०२२ को गोवा में बहुत वर्षा हुई और तेज हवा चली । तब मेरे मन में विचार आया, ‘यदि २२ तारीख को ऐसा ही हुआ, तो जन्मोत्सव की रथयात्रा नहीं कर पाएंगे; इसलिए हम महर्षिजी से पूछेंगे कि रथोत्सव की दिनांक आगे बढा सकते हैं क्या ?’ उस अनुसार मैंने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को बताया ।
१ आ. ‘महर्षिजी के बताए अनुसार रथोत्सव की दिनांक आगे बढाने के विषय में पूछना, अर्थात उन पर अविश्वास दिखाना होगा’, ऐसा प्रतीत होकर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का महर्षि से त्रिवार क्षमा मांगना : तदुपरांत घंटे भर में मेरे मन में विचार आया, ‘इस प्रकार पूछना अर्थात ‘जो महर्षि हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए अब तक ७ वर्षाें से सतत मार्गदर्शन कर रहे हैं, उन पर विश्वास न होना ।’ उसकी अपेक्षा जो भी होगा, उसे साक्षिभाव से देखेंगे ।’ तब ऐसा लगा, ‘श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने उन्हें अब तक बता भी दिया होगा । तब मैंने महर्षिजी को यह बताने के लिए कहा कि ‘‘मैंने त्रिवार क्षमा मांगी है ।’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (२५.५.२०२२)
१. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी से सीखने मिला महर्षिजी के प्रति शिष्यभाव, आज्ञापालन का महत्त्व, उनकी अहंशून्यता एवं नम्रता !
उपरोक्त संदर्भ में मुझे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का चल-दूरभाष आया । उन्होंने कहा, ‘‘मुझसे एक बडी चूक हुई है । महर्षिजी से हमारा ऐसा पूछना कि ‘रथोत्सव की दिनांक आगे बढाएं क्या ?’, उन पर अविश्वास दिखाने समान है । अध्यात्म में आज्ञापालन का बहुत महत्त्व है । यहां तो साक्षात महर्षि हमें बता रहे हैं । हमें सदैव शिष्यभाव में ही रहना चाहिए । महर्षिजी को त्रिवार कहें, ‘क्षमा, क्षमा, क्षमा !’’
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का चल-दूरभाष आने के उपरांत मेरी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी से बात हुई, ‘इससे ईश्वर हमें कुछ तो सिखा रहे हैं । गुरुदेव साक्षात श्रीमन्नारायण होते हुए भी वे महर्षिजी से क्षमा मांग रहे हैं, तो हममें कितनी नम्रता होनी चाहिए । कितनी गुरुदेवजी की अहंशून्यता ! इस प्रसंग से हमें यह सीखने के लिए मिला, ‘एक ओर गुरुदेवजी रथोत्सव के संदर्भ में समष्टि का भी विचार कर रहे हैं ओैर महर्षिजी का आज्ञापालन करना भी सिखा रहे हैं ।’ हमें आज्ञापालन के रूप में गुरुदेवजी का संदेश महर्षिजी तक पहुंचाना है एवं महर्षिजी एवं गुरुदेवजी, इन दोनों का ही आज्ञापालन करना है ।
२. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के बताए अनुसार सप्तर्षि को पूछने पर उनके द्वारा बताए सूत्र
२ अ. परात्पर गुरु डॉक्टरजी के मन में वर्षा का विचार आया, अर्थात ‘उस दिन वर्षा का संकट आनेवाला है’, ऐसा ही वे सुझा रहे हैं ! : ‘गुरुदेवजी के मन में आया विचार एवं गुरुदेवजी द्वारा महर्षिजी के श्रीचरणों में त्रिवार क्षमा मांगने के विषय में हमने ‘सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका’ के वाचक पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी को बताया । पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी ने तुरंत ही नाडीपट्टिका खोली एवं उसका वाचन किया । उसमें लिखा था कि ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी साक्षात नारायण ही हैं । उनके मन में आनेवाला विचार एवं प्रश्न, कल्याणकारी ही होता है । उनके मन में कोई भी निरर्थक विचार नहीं आता । उन्होंने सप्तर्षियों से क्षमायाचना की, अर्थात हम अवश्य ही कहीं न्यून पड रहे हैं । ‘श्रीमन्नारायण का यह रथोत्सव होना’ अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । गुरुदेवजी के मन में वर्षा का विचार आया, अर्थात ‘उस दिन वर्षा का संकट आनेवाला है’, ऐसा ही वे सुझा रहे थे ।
२ आ. ‘वर्षा न हो’, इसके लिए सभी आर्तता से श्रीमन्नारायण से ही प्रार्थना करेंगे ! : सप्तर्षि, सर्व संत एवं सभी साधक मिलकर गुरुदेवजी की शरण जाएंगे एवं उन श्रीमन्नारायण से ही प्रार्थना करेंगे । हम आर्तता से प्रार्थना कर श्रीमन्नारायण को पुकारेंगे । रथोत्सव का समय दोपहर ४ से सायं. ६.३० है; परंतु अब हम उस समय में परिवर्तन करेंगे । जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी रथोत्सव आरंभ करेंगे । हम सभी की प्रार्थना श्रीमन्नारायण अवश्य सुनेंगे ! रथोत्सव का आरंभ होने से पहले भी हम गुरुदेवजी से प्रार्थना करेंगे ।’
३. परात्पर गुरु डॉक्टरजी का सप्तर्षियों के सूत्र सुनकर ‘अच्छा हुआ !’, ऐसा कहना एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी का ‘इस प्रसंग से हमें बहुत कुछ सीखने के लिए मिला’, ऐसा कहना
अगले दिन मैंने गुरुदेवजी को सप्तर्षियों के बताए सूत्र सुनाए । उन्हें सुनकर गुरुदेवजी हंसे एवं बोले, ‘अच्छा हुआ !’ तब मैंने गुरुदेवजी से कहा, ‘‘इस प्रसंग से हमें बहुत कुछ सीखने के लिए मिला । ‘सप्तर्षि भगवान का मान कैसे रखते हैं और भगवान भी सप्तर्षि का मान कैसे रखते हैं ?’, यह हमें सप्तर्षि एवं गुरुदेवजी के संभाषण से सीखने के लिए मिला ।’’
४. ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव निमित्त आयोजित रथोत्सव के दिन वर्षा के संकेत होते हुए भी वर्षा न होना’, यह श्रीमन्नारायण की अद्भुत लीला !
४ अ. सप्तर्षि, संत एवं सर्व साधक का श्रीमन्नारायण से प्रार्थना करना एवं रथोत्सव के दिन वर्षा के बादल के स्थान पर सर्वत्र सुंदर सूर्यप्रकाश फैलना : २१ एवं २२ मई २०२२ को सभी साधकों ने श्रीमन्नारायण से प्रार्थना की, ‘प्रकृति अनुकूल रहने दें । रथोत्सव में वर्षा एवं वायु का कष्ट न होने दें ।’ रथोत्सव के अगले दिन देर रात तक वर्षा हो रही थी और दूसरी ओर रथोत्सव की तैयारियां भी उतने ही उत्साह से हो रही थीं । रथोत्सव के दिन सवेरे ६ बजे से आकाश स्वच्छ हो गया । सर्वत्र सूर्यप्रकाश फैला था ।
४ आ. ‘रथोत्सव समाप्त होने पर वर्षा होगी इसलिए सायं. ६ बजे से पहले रथोत्सव समाप्त कर रथ को रामनाथी आश्रम में वापस लाएं’, ऐसा सप्तर्षियों का कहना : दोपहर ३ बजे रथोत्सव आरंभ होनेवाला था । रथोत्सव के दिन सवेरे सप्तर्षियों का संदेश आया, ‘श्रीमन्नारायण स्वरूप गुरुदेवजी ने हम सभी की प्रार्थना सुन ली है । प्रकृति अनुकूल हो गई है । मेघ पूर्ण रूप से गए नहीं थे; गुरुदेवजी ने उन्हें साधकों की दृष्टि से दूर ले जाकर रखा था । रथोत्सव समाप्त होने पर ये मेघ पुन: बरसेंगे । हमें सायं. ६ बजे से पहले रथोत्सव समाप्त कर रथ को रामनाथी आश्रम में वापस लाना है ।’
४ इ. ऐसी अनुभव की श्रीमन्नारायण की निसर्गलीला !
४ इ १. रथोत्सव निर्विघ्न संपन्न होने एवं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के उनके कक्ष में जाने के पश्चात हलकी-सी वर्षा होना एवं सप्तर्षियों द्वारा बताया इसका कार्यकारण भाव : रथोत्सव के दिन आकाश स्वच्छ था । उस दिन पक्षियों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी । संपूर्ण रथोत्सव में वर्षा की एक बूंद भी नहीं गिरी । सर्वत्र धूप थी । सप्तर्षियों के बताए अनुसार रथोत्सव सायं. ६ से पहले पूर्ण हुआ । गुरुदेवजी के रथ से उतरने पर पुष्पार्चना हुई और वे अपने कक्ष में गए । गुरुदेवजी के कक्ष में जाने पर तुरंत ही आश्रम के परिसर में हलकी-सी वर्षा होनी आरंभ हुई । तब पुन: श्रीमन्नारायण की अपरंपार लीला के दर्शन हुए ।
इस विषय में सप्तर्षियों को बताने पर उन्होंने कहो, ‘जैसे बडे मैदान में कार्यक्रम के लिए आनेवाले लोगों को अपनी गाडियां कार्यक्रम स्थल से दूर रोकनी पडती हैं, उसी प्रकार श्रीमन्नारायण स्वरूप गुरुदेवजी ने मेघों को रथोत्सव के परिसर से दूर रोक रखा था । ‘रथोत्सव कब समाप्त होता है और हम कब बरसते हैं ?’, इसकी मानो मेघ प्रतीक्षा कर रहे थे । यह सब श्रीमन्नारायण की प्रकृतिलीला ही थी ।
४ इ २. इससे ध्यान में आया, ‘गुरुदेवजी का पंचमहाभूतों पर भी कितना नियंत्रण है । वे प्रकृति को भी नियंत्रित कर सकते हैं, इसीलिए वे श्रीमन्नारायण के अवतार हैं !’
– श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी (२४.५.२०२२)