साधकों को संतों के सत्संग में कुछ न बोलना हो, तब भी सत्संग से होनेवाले लाभ प्राप्त करने के लिए उन्हें सत्संग में बैठना चाहिए !
‘संत अर्थात ईश्वर का सगुण रूप ! ‘उनका सत्संग मिलना’ साधकों का अहोभाग्य ही है । संतों के सत्संग में रहने पर उनमें विद्यमान ईश्वरीय चैतन्य का साधकों को लाभ मिलता रहता है ।