‘हिन्दू राष्ट्र’ को आगे चलाने हतेु ईश्वर ने ‘दैवीय बालकों’ का प्रयोजन किया है । ये दैवीय जीव उच्च स्वर्गलोक से लेकर महर्लाेक जैसे उच्च लोकों से पृथ्वी पर जन्मे हैं, जबकि कुछ जीव जनलोक से इस भूतल पर जन्मे हैं । सनातन ने अभी तक १२०० से अधिक दैवीय जीवों की पहचान की है । इन बालसाधकों का आध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत से अधिक होता है । (दैवीय बालकों की आयु के अनुसार उनका वर्गीकरण ‘बालसमूह – जन्म से ५ वर्ष’, ‘कुमार समूह – ६ से १२ वर्ष’ तथा ‘किशोर समूह – १३ से १८ वर्ष’, इस प्रकार से किया गया है ।)
‘ऐसे दैवीय जीवों की आगे की आध्यात्मिक यात्रा के संदर्भ में शोधकार्य करना संभव हो’; इसके लिए उनमें आनेवाले आध्यात्मिक एवं मानसिक परिवर्तनों की प्रविष्टि रखना आवश्यक है । अतः दैवीय बालकों के अभिभावक प्रतिवर्ष अपने बच्चे के जन्मदिवस से १ माह पूर्वतक ‘अपने बच्चे में एक वर्ष में कौनसे परिवर्तन आए ?’, साथ ही ‘क्या उसकी कुछ भिन्न गुणविशेषताएं प्रतीत हो रही हैं’, इस विषय में जिले में स्थित ‘जिला समन्वयक’ को लेखन भेजें । अभिभावक इस लेखन को सीधे रामनाथी, गोवा के संकलन विभाग में न भेजें ।
१. अभिभावक दैवीय बालकों में आए परिवर्तन तथा गुणविशेषताओं को
निम्न सूत्रों के आधार पर लिखकर भेजें !
अ. एक वर्ष में बच्चे के बढे हुए अथवा न्यून हुए गुण तथा उनके स्वभावदोष दर्शानेवाले प्रसंग
आ. बच्चों के आध्यात्मिक कष्टों में आया परिवर्तन (इसका अर्थ पहले कष्ट था, जो अब न्यून हुआ अथवा बढ गया । कष्ट न्यून हुआ हो, तो कौनसे आध्यात्मिक स्तर के उपाय किए ?)
इ. बच्चे का साधना के प्रति झुकाव बढा अथवा न्यून हुआ, इसे दर्शानेवाले प्रसंग
ई. प्रतिदिन बच्चे के द्वारा होनेवाले साधना के प्रयास, उदा. नामजप, प्रार्थना, कृतज्ञता, भाववृद्धि हेतु किए जानेवाले प्रयास, चूकों का निरीक्षण, लेखन, क्षमायाचना इत्यादि
उ. अन्यों की चूकों का निरीक्षण, साथ ही अनुचित कृत्य न होने देने हेतु बच्चे के द्वारा किए जानेवाले प्रयास
ऊ. घर के काम में अथवा सेवा में परिजनों की सहायता करने की वृत्ति तथा जिला अथवा केंद्र की समष्टि सेवाओं में सम्मिलित होने में रुचि
ए. सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी के प्रति बच्चे का भाव अथवा श्रद्धा व्यक्त होनेवाले कुछ प्रसंग
ऐ. बच्चे के द्वारा की जानेवाली धर्माचरण की कृतियां, साथ ही धर्माभिमान दर्शानेवाले प्रसंग
ओ. बच्चे को प्राप्त विशेषतापूर्ण अनुभूतियां
२. अभिभावकों ने ‘अपने बच्चे की आध्यात्मिक प्रगति हेतु स्वयं कौनसे प्रयास किए ?’ तथा ‘प्रयास करने में वे कहां कम पडे ?’, इस विषय में भी ‘जिला समन्वयक’ को लेखन भेजें ।
३. दैवीय बालक १८ वर्ष का हो जाने तक प्रतिवर्ष इस प्रकार लेखन भेजें ।
४. छायाचित्र भेजना
अभिभावक उक्त सूत्रों के साथ ही बच्चे के आज के समय के (पिछले २ महिनों में खींचे गए) छायाचित्र भेजें । ये छायाचित्र सात्त्विक वेशभूषावाले तथा हंसमुख होने चाहिए ।
संक्षेप में बताना हो, तो यह लेखन उस दैवीय जीव की साधना का आलेख होगा !, जिससे ‘उसकी आध्यात्मिक प्रगति में आनेवाले उतार-चढाव तथा उनके लिए कारण घटक’, इनका अध्ययन किया जा सकेगा ।
टिप्पणी : इस लेखन का संग्रह केवल शोधकार्य हेतु (अध्ययन हेतु) ही किया जा रहा है; इसलिए यह लेखन प्रतिवर्ष उस बच्चे के जन्मदिवस पर दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में प्रकाशित नहीं किया जाएगा; परंतु यदि उसमें कोई विशेषतापूर्ण सूत्र होंगे, तो उसे अवश्य प्रकाशित किया जाएगा !’
– ग्रंथ संकलन विभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१९.७.२०२३)
बालसाधकों के अभिभावक, जिला समन्वयक तथा जिलासेवकों को सूचनाअभिभावक अपने दैवीय बालकों में समय-समय पर आनेवाले परिवर्तनों का अध्ययन करने हेतु, साथ ही जिला समन्वयक एवं जिलासेवक ‘क्या उक्त सूत्रों के अनुसार बालसाधकों के विषय में लेखन आ रहा है न ?’, यह देखने हेतु यहां दिए गए सभी सूत्र संग्रहित रखें । |