‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का ८२ वां जन्मोत्सव’ विशेषांक

इस माह के अंतिम सप्ताह में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का ८२ वां जन्मोत्सव मनाया जानेवाला है । इस निमित्त पिछले वर्ष के जन्मोत्सव के कुछ अविस्मरणीय क्षण हम इस विशेषांक में अनुभव करेंगे ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा हिन्दुत्वनिष्ठों को किया गया अमूल्य मार्गदर्शन 

हिन्दू जनजागृति समिति का मूल उद्देश्य हिन्दुओं को धर्म की शिक्षा देना, राष्ट्र एवं धर्म पर मंडरा रहे विभिन्न संकटों के प्रति हिन्दुओं को जागृत करना तथा हिन्दुओं का संगठन करना है ।

भीषण आपातकाल में टिके रहने हेतु प्रत्येक व्यक्ति को नामजप करना आवश्यक !

अब आपातकाल चल रहा है; इसलिए नामजप करना आवश्यक है । वाहन चलाते समय हमारा नामजप होना चाहिए । उससे हमारे साथ होनेवाली दुर्घटना अथवा कष्ट की तीव्रता अल्प होगी अथवा वह टल सकेगी ।

साधको, दास्यभाव के प्रतीक रामभक्त हनुमानजी की भांति अंतर में सेवकभाव उत्पन्न कर स्वयं में विद्यमान अहं का निर्मूलन करने का प्रयास करें !

साधको, प्रभु श्रीरामचंद्रजी के रामराज्य के कार्य से संपूर्ण रूप से एकरूप हनुमानजी का आदर्श अपने सामने रखें तथा परात्पर गुरु डॉक्टरजी के हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य में स्वयं को समर्पित करें !

साधको, स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन की प्रक्रिया लगन से कर मानव जीवन का ध्येय ‘आनंदप्राप्ति’ साध्य कर लें !

साधक आनंदप्राप्ति हेतु साधना कर रहे हैं । जीवन आनंदमय होने हेतु चित्त पर स्थित जन्म-जन्म के संस्कार नष्ट होने चाहिए तथा उसके लिए स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन की प्रक्रिया गंभीरता से अपनाई जानी चाहिए ।

GlobalSpiritualityMahotsav : बाह्य एवं अंतर्गत प्रदूषण दूर करने के लिए आधुनिक चिकित्सा-शास्त्र को अध्यात्मशास्त्र से जोडें !

‘विज्ञान स्थूल सूत्रों पर कार्यरत है, जबकि अध्यात्म सूक्ष्म स्तर पर, अर्थात मन-बुद्धि-चित्त इन चरणों पर कार्य करता है । विज्ञान भी धीरे धीरे सूक्ष्म स्तर पर कार्य करने लगा है; परंतु उसी समय अध्यात्म उससे भी आगे जाकर सूक्ष्मतर एवं सूक्ष्मतम स्तर तक कार्य करता है ।

कोरोना महामारी के संघर्षमय काल में जिज्ञासुओं के लिए संजीवनी प्रमाणित हुआ सनातन संस्था का ‘ऑनलाइन साधना सत्संग’ !

आध्यात्मिक साधना के अभाव में अधिकतर लोगों को जीवन में आनेवाले तनावों का सामना करते समय मनोबल एवं आत्मबल अल्प पडता है । तनाव, निराशा, नकारात्मकता, चिडचिडाहट; ऐसी अनेक लोगों की स्थिति होती है ।

सूक्ष्म आयाम को समझने की क्षमता रखना – सनातन संस्था के साधकों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता !

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने अपने गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी के आशीर्वाद से १.८.१९९१ को ‘सनातन भारतीय संस्कृति संस्था’ की स्थापना की । उसके उपरांत उन्होंने संस्था का नाम सरल करने हेतु २३.३.१९९९ को ‘सनातन संस्था’ की स्थापना की । अब मार्च २०२४ में सनातन संस्था के २५ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं । इस … Read more

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की कृपा से ‘सनातन के साधक आनंद में रहनेवाले जीव हैं, इसकी प्रतीति लेनेवाले समाज के विभिन्न व्यक्ति !

‘‘सनातन के साधक सदैव आनंद में रहते हैं । हमारे यहां संप्रदाय जैसी विशिष्ट वेशभूषा नहीं होती; परंतु ‘चेहरे पर दिखाई देनेवाला आनंद’ ही हमारे साधकों की पहचान है ।