सनातन की साधिका कु. सिमरन सचदेवा की १० वीं में सफलता
सनातन संस्था की दिेहली की साधिका अधि. अमिता सचदेवा की पुत्री कु. सिमरन सचदेवा ने १० वीं की परीक्षा (CBSE) में ९४ प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं ।
सनातन संस्था की दिेहली की साधिका अधि. अमिता सचदेवा की पुत्री कु. सिमरन सचदेवा ने १० वीं की परीक्षा (CBSE) में ९४ प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं ।
इस वर्ष गुरुदेव का उत्तराषाढ़ा जन्मनक्षत्र २७.५.२०२४ को प्रातः १०.१४ बजे प्रारंभ होगा तथा गुरुदेव की जन्म तिथि वैशाख कृष्ण सप्तमी ३०.५.२०२४ को पूर्ण होगी । इसलिए गुरुदेव का जन्मदिन इस वर्ष २७ से ३०.५.२०२४ तक मनाया जाना चाहिए।
नेत्र तृप्त हो जाते, मधुर वचन संतुष्टि प्रदान करते ।
सान्निध्य के क्षण सभी के मन-मंदिर में बस जाते ।।
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के इर्द-गिर्द प्रकाशमान वृत्त प्रतीत होने पर ‘उनमें आध्यात्मिक शक्ति वास कर रही है’, ऐसा ध्यान में आया
‘गोवा स्थित सनातन संस्था के संस्थापक प.पू. डॉ. जयंत आठवलेजी मानवीय रूप में दैवीय अवतार हैं । वे अपनी मातृभूमि पर अर्थात भारत पर असीम प्रेम करते हैं । सनातन संस्था का मुख्यालय भले ही गोवा में है; परंतु प.पू. डॉ. आठवलेजी का अध्यात्मप्रसार एवं धर्मरक्षा का कार्य संपूर्ण विश्व में फैल गया है ।
‘जिस प्रकार किसी मंदिर के रथ को वहां के सेवक खींचते हैं, उसी प्रकार साधकों ने श्रीमन्नारायण का रथ खींचे’, सप्तर्षि की इस आज्ञा के अनुसार साधकों ने साक्षात भगवान का यह रथ खींचा ।
सप्तर्षि की आज्ञा से सनातन के साधकों ने शिवमोग्गा (कर्नाटक) के पंचशिल्पी पू. काशीनाथ कवटेकर गुरुजी (आयु ८५ वर्ष) के मार्गदर्शन में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के लिए लकडी का रथ बनाया ।
‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी जब रथ में बैठे, उस समय रथ का रहा-सहा अस्तित्व भी नष्ट हो गया । वहां केवल परात्पर गुरु डॉक्टरजी का ही तत्त्व है’, ऐसा मुझे प्रतीत हो रहा था ।
इस दिव्य रथ को साकार करते समय अनेक शुभचिंतकों ने भी स्वयंप्रेरणा से सहायता की । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने भी समय-समय पर मार्गदर्शन किया ।
‘वास्तव में देखा जाए, तो ‘साधकों के हाथों से रथ बनना’ ही एक बडी अनुभूति है । हम में से किसी को भी रथ बनाने के संदर्भ में बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था । महर्षिजी एवं सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी की कृपा एवं पू. कवटेकर गुरुजी के मार्गदर्शन के कारण ही यह संभव हुआ ।