‘सनातन संस्था के माध्यम से सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी हैं सर्वत्र सदा !

इस पृथ्वी पर भटके हुए जीवों में से हम भी एक थे । हम इस माया के जगत में आनंद ढूंढ रहे थे । प्रत्येक व्यक्ति आनंद की खोज में रहता है; परंतु ‘मूल आनंद किसमें है ?’, इसका भान गुरुदेव सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी, आपने हमें सनातन संस्था के माध्यम से करवाया । आरंभ में सत्संग, अभ्यासवर्ग, सार्वजनिक प्रवचन द्वारा आपने साधकों को मनुष्य जीवन के उद्देश्य का भान करवाया तथा उसके उपरांत वे ईश्वरप्राप्ति अर्थात आनंदप्राप्ति की ओर अग्रसर हुए । आपने अध्यात्म को समाज तक पहुंचाने हेतु सनातन संस्था के माध्यम से कार्य आरंभ किया । समर्थ रामदासस्वामीजी द्वारा बताए गए ‘जो जो स्वयं को है ज्ञात, उसे अन्यों को बताएं’, इस वचन के अनुसार समाज को अध्यात्मशास्त्र बताने हेतु साधकों ने अपने-अपने क्षेत्रों में सत्संग आरंभ किए, साथ ही प्रवचन लिए । उसके साथ ही ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिक, अध्यात्म, धर्म, राष्ट्र आदि विषयों के सहस्रों ग्रंथों की निर्मिति, सनातन के आश्रम आदि के माध्यम से सनातन संस्था का अध्यात्मप्रसार का कार्य आरंभ हुआ । अध्यात्मप्रसार का यह कार्य अब इतना व्यापक बन चुका है कि उसे जानकर अनेक संतों ने भी यह उद्गार व्यक्त किए कि ‘ऐसा कार्य केवल अवतारी जीव ही कर सकता है ।’ उसके उपरांत जीवनाडी-पट्टिका के माध्यम से महर्षियों ने भी आपके अवतारत्व से साधकों को अवगत करवाया ।

श्रीसत्‌शक्‍ति (सौ.) बिंदा सिंगबाळ, सच्‍चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले आणि श्रीचित्‌शक्‍ति (सौ.) अंजली गाडगीळ

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी, आपने साधकों को ईश्वरीय राज्य की स्थापना अर्थात हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का लक्ष्य दिया । स्वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, नामजप, सत्संग, सेवा, त्याग, प्रीति से अंतर्भूत ‘गुरुकृपायोग’ को साधकों ने समाज के जिज्ञासुओं तक पहुंचाया । ‘सनातन संस्था’ नाम को अब इतना महत्त्व प्राप्त हो गया है कि ‘सनातन का साधक’ कहते ही समाज का व्यक्ति उसकी ओर सम्मान की दृष्टि से देखता है । साधकों का व्यवहार एवं चालचलन देखकर ही समाज सनातन के साधक को पहचान लेता है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी, यह चमत्कार आपका ही है ! सनातन संस्था की स्थापना कर आपने हम पर अपार कृपा की है । ‘आपको अपेक्षित आध्यात्मिक प्रगति करना’, यह एक ही लगन हमें लगे । इस घोर कलियुग में हम सनातन संस्था के संपर्क में आए तथा हमें साधना करने की सद्बुद्धि हुई, यह भी हम पर आप ही की कृपा है ।

‘सनातन संस्था’ सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी का ही एक रूप है । ‘अधिकाधिक जिज्ञासु सनातन संस्था से जुडें तथा उन्हें साधना करने की प्रेरणा मिले’, यह भगवान श्रीकृष्ण एवं सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के श्री चरणों में प्रार्थना है !

– सनातन संस्था के सभी सद्गुरुओं, संतों एवं साधकों की ओर से कृतज्ञतापूर्वक अर्पण