साधकों को संतों के सत्संग में कुछ न बोलना हो, तब भी सत्संग से होनेवाले लाभ प्राप्त करने के लिए उन्हें सत्संग में बैठना चाहिए !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी

‘संत अर्थात ईश्वर का सगुण रूप ! ‘उनका सत्संग मिलना’ साधकों का अहोभाग्य ही है । संतों के सत्संग में रहने पर उनमें विद्यमान ईश्वरीय चैतन्य का साधकों को लाभ मिलता रहता है । संतों की वाणी में चैतन्य होने से उनके द्वारा बताए गए साधना के सूत्र साधकों के अंतर्मन पर अंकित होते हैं तथा उससे साधकों को साधना हेतु प्रेरणा मिलती है । ‘सत्संग के अन्य साधकों द्वारा संतों से साधना के विषय में पूछे गए प्रश्नों तथा संतों द्वारा उनके दिए उत्तर; साथ ही अन्य साधकों द्वारा साधना के किए जा रहे प्रयास’, इससे साधकों को सीखने के लिए मिलता है । संतों के सत्संग में साधकों पर आया अनिष्ट शक्ति का आवरण दूर होकर उन्हें चैतन्य मिलकर आध्यात्मिक स्तर पर लाभ मिलता है । इसलिए साधकों को संतों के सत्संग में कुछ न बोलना हो, तब भी सत्संग से होनेवाले उक्त लाभ प्राप्त करने हेतु उन्हें सत्संग में बैठना चाहिए !’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले (२९.२.२०२४) 

साधको, अपनेआप होनेवाला नामजप न कर आध्यात्मिक कष्ट न्यून होने हेतु उपचारस्वरूप बताया गया नामजप करें !

‘कभी-कभी साधकों का आध्यात्मिक कष्ट घटाने के लिए संत अथवा उत्तरदायी साधक उपचार स्वरूप उन्हें कोई विशिष्ट नामजप करने के लिए कहते हैं । कुछ दिन उपरांत साधक कहते हैं कि उनसे उपचार के लिए बताया गया नामजप नहीं होता । उनका ‘प.पू. डॉक्टर’ अथवा ‘सच्चिदानंद परब्रह्म’, यह नामजप अपनेआप होता है; इसलिए वे वह नामजप करते हैं ।’

यहां साधकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि उपचार के लिए उन्हें बताया गया नामजप उनका आध्यात्मिक कष्ट घटाने के लिए आवश्यक होता है । अतः वे अपनेआप होनेवाला नामजप न कर उपचार हेतु बताया गया नामजप ही करें ।’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले (६.२.२०२४) 

साधको, ‘सेवाओं के लिए साधकसंख्या अल्प है’, यह विचार न कर ‘भगवान ने मुझे तैयार होने का बडा अवसर दिया है’, यह विचार कर अधिकाधिक सेवाएं सीख लें !

‘सनातन का अध्यात्म एवं धर्म का प्रसारकार्य सभी अंगों से विस्तारित हो रहा है; परंतु लगन तथा संपूर्ण समर्पित होकर कार्य करनेवाले साधक एवं कार्यकर्ता गिने-चुने हैं । अतः ‘सेवाएं अधिक; परंतु उन्हें करनेवाले अल्प’, ऐसा सदैव ही होता रहता है । भगवान अगले-अगले स्तर की साधना सिखाते हैं; इसलिए प्रत्येक सेवा की व्याप्ति भी बढ गई है तथा आगे जाकर वह अधिक बढनेवाली है ।

साधक आत्मसात की हुई सेवा की कुशलता तथा स्वयं की क्षमता का संपूर्ण उपयोग करें, तो भगवान की सहायता मिलकर वह शीघ्र गति से होने लगेगी । साधकों की आध्यात्मिक क्षमता बढने पर अल्प साधकों में भी प्रभावकारी सेवाएं एवं साधना होकर फलोत्पत्ति बढेगी ! आगे जाकर हमें हिन्दू राष्ट्र चलाना है; इसलिए ईश्वर साधकों को अधिकाधिक सेवा का अवसर दे रहे हैं । अतः साधक ‘सेवाओं के लिए साधकसंख्या अल्प हैं’, यह विचार न कर ‘भगवान ने मुझे तैयार होने के लिए यह
बडा अवसर दिया है’, यह विचार कर अधिकाधिक सेवाएं सीख लें !’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले (७.२.२०२४)