सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी द्वारा संकलित ग्रंथों में समाहित लेखन के प्रकार ‘मेरे द्वारा संकलित ग्रंथों में निम्न ३ प्रकार का लेखन है –

१. सूक्ष्म से प्राप्त ज्ञान

साधना आरंभ करने पर ‘ध्यान से उत्तर मिल सकते हैं’, यह ज्ञात होने पर मैं मेरी अधिकतर शंकाओं के उत्तर ध्यान से प्राप्त करता था । उसके कारण सूक्ष्म स्तर का वह ज्ञान पृथ्वी पर उपलब्ध किसी भी ग्रंथ में नहीं है । अब ईश्वर की कृपा से सनातन के कुछ साधकों को भी इस प्रकार ज्ञान मिलने लगा है । सनातन के ग्रंथों में इस अलौकिक ज्ञान का अधिक मात्रा में समावेश है ।

२. अन्य ग्रंथों से प्राप्त ज्ञान

सूक्ष्म से मिलनेवाला ज्ञान सर्वसामान्य लोगों की समझ में आने के लिए कठिन होता है । उन्हें मानसिक स्तर पर अध्यात्म सिखाना आवश्यक है, इसे ध्यान में लेकर मैं अन्य लेखकों द्वारा लिखी गई पुस्तकें पढकर उनमें समाहित अच्छा लेखन संग्रहित करने लगा ।

३. मन में आनेवाला विचार

साधना में ‘काल के अनुसार साधना’ का पहलू महत्त्वपूर्ण होता है । उसके कारण काल के अनुसार समष्टि की (समाज की) साधना होने हेतु विश्वमन एवं विश्वबुद्धि की ओर से मिलनेवाले विचारों को मैं समय-समय पर लिखकर रखने लगा । वह संबंधित काल में सनातन के नियतकालिकों के माध्यम से समाज तक पहुंचता था । ये विचार साधना करनेवालों हेतु सदैव ही मार्गदर्शक होने के कारण संबंधित ग्रंथों में उन्हें भी अंतर्भूत किया गया है ।’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले