साधना के विषय में उपयुक्त दृष्टिकोण !

(पू.) संदीप आळशी

१. ‘असफलता का सामना करने का धैर्य रखनेवाला ही सफलता का स्वप्न देखे ।

२. केवल परिस्थिति को स्वीकार करना पर्याप्त नहीं, अपितु परिस्थिति पर विजय प्राप्त करने हेतु प्रयास करना आवश्यक है ।

३. ‘साधना के कारण आनंदप्राप्ति’ साध्य होने हेतु ‘साधना के प्रयास मन से करने’ को साधन बनाना पडता है ।

४. ‘मैं कौनसी सेवा करता हूं’, इसकी अपेक्षा ‘सेवा करते समय क्या मुझमें गुण अंतर्भूत हो रहे हैं ?’, यह अधिक महत्त्वपूर्ण है ।’

– (पू.) संदीप आळशी (१६.१.२०२४)

साक्षित्व

प.पू. गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी

‘साक्षित्व की अवस्था विलक्षण विलोभनीय है । यहां शुद्ध विश्राम है तथा परम विश्राम है । विभिन्न योनियों से भटककर परिश्रांत बना ऐसा जीव, जिस समय इस साक्षित्व की दशा को प्राप्त होता है, उस समय उसका संसार भ्रमण रुक जाता है । साक्षित्व का अर्थ है शिवत्व ! साक्षित्व का अर्थ है परम शांति ! यहां किसी प्रकार का विक्षेप एवं क्षुब्धता नहीं है ।

जन्म-जन्म से जर्जर बना जीव जब साक्षित्व तक पहुंचता है, उस समय वह परम विश्राम को प्राप्त होता है । अनेक जन्मों की पीडा, भ्रमण, हुडदंग ये सभी अस्त को पहुंच जाते हैं । साक्षित्व एक परम स्वतंत्रता है । यह है स्थितप्रज्ञता ! साक्षित्व जब रोम-रोम में समा जाता है तथा प्रत्येक सांस में समा जाता है, उस समय प्रपंच का भ्रम समाप्त हो जाता है । निःसंगता परम है, इसे वह जानता है, तो अब अपवित्रता उसे कैसे स्पर्श कर सकेगी ? अब पाप, विकार एवं अमंगल का भय ही नष्ट हो जाता है । अब वह जो बोलेगा, वह भगवान की वाणी होती है । परमेश्वर ही उसके माध्यम से सबकुछ करा लेते हैं; इसीलिए साक्षित्व ही शिवत्व है ।’
– प.पू. गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी

(साभार : मासिक ‘घनगर्जित’, अक्टूबर २०२३)

धर्म की शिक्षा न लेने से होनेवाले दुष्परिणाम !

श्री. चेतन राजहंस

अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चे पहली कक्षा से धार्मिक शिक्षा लेते हैं तथा बडे होनेतक धर्म का आचरण करने में कट्टर बन जाते हैं, जबकि दूसरी ओर हिन्दुओं के बच्चे पहली कक्षा से धर्म नहीं सीखते हैं; इसलिए महाविद्यालयीन शिक्षा पूर्ण होने तक वे नास्तिकतावादी बन चुके होते हैं । संविधान के द्वारा हिन्दुओं के साथ किया गया यह अन्याय है, इसे ध्यान में रखें ! – श्री. चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था