शृंगदर्शन के लाभ

शृंगदर्शन करने से व्यक्ति का भाव जागृत होता है । वह शिवपिंडी के प्रत्यक्ष दर्शन करता है, उस समय उसकी आत्मशक्ति (कुछ क्षणोंके लिए) जागृत होती है तथा उसका ध्यान भी लगता है ।

महाशिवरात्रि

शिवरात्रि के दिन रात्रि के चार प्रहर चार पूजा करने का विधान है । उन्हें ‘यामपूजा’ कहते हैं । प्रत्येक यामपूजा में भगवान शिव को अभ्यंगस्नान करवाएं, अनुलेपन करें तथा धतूरा, आम एवं बेल के पत्ते चढाएं । चावल के आटे के २६ दीप जलाकर उनकी आरती उतारें । पूजा के दिन १०८ दीपों का दान दें ।

महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर अभिषेक करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ होना

महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी की तिथि पर आता है । महाशिवरात्रि पर शिवतत्त्व सदैव की तुलना में १ सहस्र गुना कार्यरत होता है । महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की उपासना, अभिषेक, पूजा एवं जागरण करने की परंपरा है ।

मधुर वाणी की दैवी प्रतिभा प्राप्त और गायन के प्रति भाव रखनेवाली स्वरसम्राज्ञी भारतरत्न स्व. लता मंगेशकर (आयु ९२ वर्ष) !

गाना शब्द सुनते ही गानसम्राज्ञी लता मंगेशकर का रूप आंखों के सामने आता है । लतादीदी का अर्थ गाना ! संगीत के साथ उनका ऐसा समीकरण जुडा हुआ था, ऐसा कहना अनुचित नहीं होगा ।

क्या बुद्धि शिक्षा का विधि विधान निश्चय कर सकती है ?

आजकल मनोराज्य का अधिक बोल-बाला है । मनुष्य का अंतर्मन समझता है कि उसका ही विचार ठीक है । मनुष्य अपनी वासनाओं के विषयों (रूप, रस, गंध, श्रवण और स्पर्श) एवं ज्ञान का मनोनुकूल भोग चाहता है। ऐसी स्थिति में विविध निर्णयों या क्रिया-कलापों के विषय में वाद-विवादों का होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है ।

परात्पर गुरु डॉक्टरजी का राष्ट्र व साधना के विषय में मार्गदर्शन !

अनेक राजनेताओं को जब उनके राजनीतिक दल प्रत्याशी नेता नहीं बनाते, तब वे उस राजनीतिक दल को छोडकर प्रत्याशी बनानेवाले अन्य राजनीतिक दल में चले जाते हैं । जिन नेताओं में पक्ष के प्रति निष्ठा नहीं है, उनमें देश के प्रति कितनी निष्ठा होगी ? और ऐसे स्वार्थी राजनेता जनता का भी क्या भला करेंगे ?

सीधे ईश्वर से चैतन्य और मार्गदर्शन ग्रहण करने की क्षमता होने से, आगामी ईश्वरीय राज्य का संचालन करनेवाले सनातन संस्था के दैवी बालक !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के संकल्प अनुसार कुछ वर्षाें में ही ईश्वरीय राज्य की स्थापना होनेवाली है । अनेकों के मन में यह प्रश्न उठता है कि ‘यह राष्ट्र कौन चलाएगा ?’ इसके लिए ईश्वर ने उच्च लोकों से दैवीय बालकों को पृथ्वी पर भेजा है ।

साधकों, ‘छवि बचाना’ के साथ ही अन्य स्वभावदोषों की बलि न चढ, अधिकाधिक लोगों से संपर्क करें !’ – सद्गुरु (सुश्री) स्वाती खाडयेजी, धर्मप्रचारक, सनातन संस्था

उपक्रमों के उपलक्ष्य में समाज के लोगों से संपर्क करने पर ऐसा ध्यान में आया है कि वे हमारी प्रतीक्षा ही कर रहे हैं । इसके विपरीत साधक समाज में जाकर अर्पण मांगने एवं प्रायोजक ढूंढने की सेवा के प्रति उदासीन हैं । साधकों में ‘प्रतिमा संजोना’, अहं का यह पहलू प्रबल होने से वे समाज में जाकर अर्पण मांगने में हिचकिचाते हैं ।

सनातन के ज्ञान-प्राप्तकर्ता साधकों को मिलनेवाला समझने में कठिन; परंतु अपूर्व ज्ञान !

विष्णुस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के धर्मसंस्थापना के कार्य को ज्ञानशक्ति का समर्थन मिलने के लिए ईश्वर सनातन संस्था की ओर ज्ञानशक्ति का प्रवाह भेज रहे हैं । इस प्रवाह में ज्ञानशक्ति से ओतप्रोत चैतन्यदायी सूक्ष्म विचार ब्रह्मांड की रिक्ति से पृथ्वी की दिशा में प्रक्षेपित हो रहा है ।

देहली, झारखंड, बंगाल तथा पूर्वाेत्तर भारत में वसंत पंचमी निमित्त ‘ऑनलाइन’ सत्संग

देहली एवं एन सी आर में सनातन संस्था द्वारा वसंत पंचमी के उपलक्ष्य में ‘ऑनलाइन विशेष सत्संग एवं सामूहिक नामजप’ का आयोजन किया गया । वसंत पंचमी का महत्त्व, मां सरस्वती की पूजा के साथ ही रथसप्तमी के विषय में जिज्ञासुओं को जानकारी बताई गई ।