पूजोपचार के विषय में नवीनतापूर्ण शोध करनेवाला महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय
‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से ‘यूएएस (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण द्वारा किया गया वैज्ञानिक परीक्षण
‘महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी की तिथि पर आता है । महाशिवरात्रि पर शिवतत्त्व सदैव की तुलना में १ सहस्र गुना कार्यरत होता है । महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की उपासना, अभिषेक, पूजा एवं जागरण करने की परंपरा है । महाशिवरात्रि पर (२१.२.२०२० के दिन) सनातन के कुछ साधकों ने धामसे (गोवा) स्थित पू. भैयाजी के आश्रम में शिवलिंग पर अभिषेक किया । ‘महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर अभिषेक करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक दृष्टि से क्या लाभ होता है ?’, विज्ञान द्वारा इसका अध्ययन करने के लिए ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की ओर से ‘यूएएस (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण द्वारा एक जांच की गई । परीक्षण के निरीक्षणों का विवेचन एवं अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण आगे दिया है ।
१. परीक्षण के निरीक्षणों का विवेचन
१ अ. नकारात्मक एवं सकारात्मक ऊर्जा के संदर्भ में निरीक्षणों का विश्लेषण – शिवलिंग पर अभिषेक करने से साधकों पर सकारात्मक परिणाम होना : यह आगे दी गई सारणी से ध्यान में आता है ।
टिप्पणी – आध्यात्मिक कष्ट : आध्यात्मिक कष्ट होना, अर्थात व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन होना । व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन ५० प्रतिशत अथवा उससे भी अधिक मात्रा में होना, अर्थात तीव्र कष्ट, नकारात्मक स्पंदन ३० से ४९ प्रतिशत होना, अर्थात मध्यम कष्ट एवं ३० प्रतिशत से भी अल्प होना, अर्थात मंद आध्यात्मिक कष्ट ! आध्यात्मिक कष्ट, यह प्रारब्ध, पूर्वजों के कष्ट आदि आध्यात्मिक स्तर के कारणवश होता है । आध्यात्मिक कष्ट का निदान संत अथवा सूक्ष्म स्पंदन जाननेवाले साधक कर सकते हैं ।
उपरोक्त सारणी से आगे दिए गए तथ्य ध्यान में आते हैं ।
१. अभिषेक के उपरांत आध्यात्मिक कष्ट से पीडित साधक की नकारात्मक ऊर्जा न्यून हो गई ।
२. अभिषेक के उपरांत आध्यात्मिक कष्ट से रहित साधक की सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि हुई ।
२. परीक्षण के निरीक्षणों का अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण
२ अ. महाशिवरात्रि पर शिवजी की उपासना करने से अनिष्ट शक्तियों का दबाव न्यून होना : ‘भगवान शिव फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को रात्रि के चार प्रहरों में से एक प्रहर विश्राम लेते हैं । (महाशिवरात्रि पर शिवपूजन का समय उत्तररात्रि १२ से १.३० के मध्य होता है । यह काल सामान्यत: डेढ घंटे का है ।) महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की उपासना करने का आधारभूत शास्त्र आगे दिए अनुसार है : ‘भगवान शिव के विश्राम के समय शिवतत्त्व का कार्य रुक जाता है, अर्थात उस समय भगवान शिव ध्यानावस्था से समाधि-अवस्था में जाते हैं । भगवान शिव की समाधि अवस्था अर्थात भगवान शिव द्वारा अपनी साधना करने का काल ! इसलिए विश्व का अथवा ब्रह्मांड का तमोगुण अथवा हलाहल उस समय शिवतत्त्व नहीं स्वीकारता । इससे ब्रह्मांड में हलाहल की भारी मात्रा में वृद्धि होती है अथवा अनिष्ट शक्तियों का दबाव अत्यधिक बढ जाता है । उसका परिणाम हम पर न हो, इसलिए अधिकाधिक शिवतत्त्व आकृष्ट करनेवाले बिल्वपत्र, सफेद फूल, रुद्राक्ष की माला शिवलिंग पर अर्पण करते हैं अथवा अभिषेक करके वातावरण का शिवतत्त्व आकृष्ट किया जाता है । इससे अनिष्ट शक्तियों के बढते दबाव का परिणाम उतना प्रतीत नहीं होता ।’ (संदर्भ : सनातन के जालस्थल – https://www.sanatan.org/hindi/a/32282.html)
२ आ. अभिषेक के उपरांत आध्यात्मिक कष्ट से पीडित साधक की नकारात्मक ऊर्जा न्यून होने के कारण : ‘इन्फ्रारेड’ नकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के सर्व ओर कष्टदायक आवरण (नकारात्मक स्पंदन) दर्शाती है, जबकि ‘अल्ट्रावॉयलेट’ नकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति की देह में अनिष्ट शक्ति द्वारा निर्माण किए गए स्थान की कष्टदायक शक्ति (कष्टदायक स्पंदन) दर्शाती है । इस साधक को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट होने से उसमें अभिषेक से पूर्व ‘इन्फ्रारेड’ एवं ‘अल्ट्रावॉयलेट’ ये दोनों प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा पाई गई । शिवलिंग पर अभिषेक करनेपर उससे प्रक्षेपित चैतन्य (शिवतत्त्व) साधक ने अपनी क्षमता के अनुसार ग्रहण किया । इससे उसकी देह में बने कष्टदायक शक्ति के स्थानों की कष्टदायक शक्ति, इसके साथ ही उसके सर्व ओर छाया कष्टदायक आवरण न्यून हुआ । इससे उसमें विद्यमान दोनों प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा न्यून हो गईं ।
२ इ. अभिषेक के उपरांत आध्यात्मिक कष्ट से रहित साधक की सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होने का कारण : इस साधक में नकारात्मक ऊर्जा न होकर सकारात्मक ऊर्जा थी । शिवलिंग पर अभिषेक करने पर उससे प्रक्षेपित चैतन्य (शिवतत्त्व) साधक ने ग्रहण किया । इससे उसकी सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि हुई ।’
– श्रीमती स्वाती वसंत सणस, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (३.८.२०२०)
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