‘वर्तमान में सनातन संस्था की ओर से देशभर में ज्ञानशक्ति (ग्रंथ) प्रसार अभियान, अनाज अर्पण अभियान, मकर संक्रांति के निमित्त से धर्मप्रसार का कार्य अविरत करनेवाले सनातन के आश्रमों को धर्मदान करना, इसके साथ ही अगले शैक्षणिक वर्ष के लिए बहियों की मांग लेना, नवसंवत्सरारंभ (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) शुभकामना पत्र की मांग लेना, ऐसे अनेक उपक्रम एक ही समय पर चल रहे हैं । इन उपक्रमों को समाज से अति उत्तम प्रतिसाद मिल रहा है ।
इन उपक्रमों के उपलक्ष्य में समाज के लोगों से संपर्क करने पर ऐसा ध्यान में आया है कि वे हमारी प्रतीक्षा ही कर रहे हैं । इसके विपरीत साधक समाज में जाकर अर्पण मांगने एवं प्रायोजक ढूंढने की सेवा के प्रति उदासीन हैं । साधकों में ‘प्रतिमा संजोना’, अहं का यह पहलू प्रबल होने से वे समाज में जाकर अर्पण मांगने में हिचकिचाते हैं ।
साधकों को प्रमुख रूप से यह ध्यान में रखना चाहिए कि हम समाज के लोगों को कुछ देने जा रहे हैं । समाज के जो लोग धर्मकार्य के लिए अर्पण देते हैं, उन्हें उस अर्पण के माध्यम से स्वयं का उद्धार करने का अवसर भगवान ने ही दिया है । इसलिए विविध उपक्रमों के माध्यम से धर्मकार्य में सम्मिलित होने से समाज के लोगों को लाभ ही होता है । भगवान बिना कुछ किए नि:शुल्क किसी से न कुछ लेता है और न ही कुछ देता है । भगवान श्रीकृष्ण हमें बहुत कुछ दे रहे हैं, इसलिए साधकों ‘छवि बचाना’, अथवा अन्य किसी भी दोष की बलि न चढते हुए लोगों से संपर्क कर, ‘वे धर्मकार्य में अधिकाधिक सहभागी कैसे होंगे ?’, इसके लिए प्रयत्न करना अपेक्षित है ।’
– सद्गुरु (सुश्री) स्वाती खाडयेजी, धर्मप्रचारक, सनातन संस्था