मकर संक्रांति (१४ जनवरी)
इस दिन सूर्य का मकर राशि में संक्रमण होता है । सूर्यभ्रमण के कारण होनेवाले अंतर की पूर्ति करने हेतु प्रत्येक अस्सी वर्ष में संक्रांति का दिन एक दिन आगे बढ जाता है । आजकल संक्रांति १४ जनवरी को पडती है ।
इस दिन सूर्य का मकर राशि में संक्रमण होता है । सूर्यभ्रमण के कारण होनेवाले अंतर की पूर्ति करने हेतु प्रत्येक अस्सी वर्ष में संक्रांति का दिन एक दिन आगे बढ जाता है । आजकल संक्रांति १४ जनवरी को पडती है ।
चैत्र शुक्ल १ को आरंभ होनेवाला नए वर्ष का कालचक्र, विश्व के उत्पत्ति काल से संबंधित होने से सृष्टि में नवचेतना का संचार होता है । इसके विपरीत, ३१ दिसंबर की रात को १२ बजे आरंभ होनेवाले नए वर्ष का कालचक्र विश्व के लयकाल से संबंधित होता है ।
केवल सुन्दर दिखनेवाली रंगोलियोंकी अपेक्षा देवताओंके तत्त्व आकृष्ट एवं प्रक्षेपित करनेवाली रंगोलियां लाभदायक होती हैं । देवताओंकी उपासना हेतु तथा त्योहार, जन्मदिन आदि प्रसंगोंमें बनाई जानेवाली रंगोलियां इस लघुग्रन्थमें प्रस्तुत हैं ।
‘२.११.२०२१ को ‘धनतेरस’ है । ‘धन’ अर्थात शुद्ध लक्ष्मी ! इस दिन मनुष्य के पोषण हेतु सहायता करनेवाले धन (संपत्ति) की पूजा की जाती है । सत्कार्य हेतु धन अर्पण करना, यही श्री लक्ष्मी की खरी पूजा है ।’
गोवत्स द्वादशी के दिन श्रीविष्णु की आपतत्त्वात्मक तरंगें कार्यरत होकर ब्रह्मांड में आती हैं । विष्णुलोक की ‘वासवदत्ता’ नामक कामधेनु इस दिन ब्रह्मांड तक इन तरंगों का वहन करने हेतु अविरत कार्य करती है ।
छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाई जाती है । यह चार दिवसीय त्योहार होता है, जो चतुर्थी से सप्तमी तक मनाया जाता है । इसे कार्तिक छठ पूजा कहा जाता है । इसके अतिरिक्त चैत्र माह में भी यह पर्व मनाया जाता है, जिसे चैती छठ कहते हैं ।
सत्संग में घटस्थापना की विधि और अध्यात्मशास्त्र, नवरात्रि की विविध तिथियों का महत्त्व तथा जागरण करने का अध्यात्मशास्त्रीय आधार, देवीपूजन से संबंधित कुछ कृतियां और उनके लाभ, आदि विषयों पर अध्यात्मशास्त्रीय आधार पर जानकारी दी गई ।
दशहरे के ऐतिहासिक व आध्यात्मिक महत्त्व के बारे में उपस्थित लोगों का देहली की साधिका कु. टुपुर भट्टाचार्य ने मार्गदर्शन किया । इस समय मानस पूजा भी करवाई गई ।
कोजागरी पूर्णिमा का उत्सव आश्विन पूर्णिमा की तिथि को मनाया जाता है । श्रीमद्भागवत के कथनानुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने व्रजमंडल में रासोत्सव मनाया था ।
हिन्दू संस्कृति में पति को परमेश्वर की संज्ञा दी गई है । करवा चौथ पति एवं पत्नी दोनों के लिए नवप्रणय निवेदन तथा एक-दूसरे के लिए अपार प्रेम, त्याग, एवं उत्सर्ग की चेतना लेकर आता है ।