जितने उत्साह से तथा भावूपर्ण श्री गणेशजी की स्थापना की जाती है उतने ही उत्साह व भक्तिभाव से गणेश जी का विसर्जन किया जाता है । श्री गणेशजी की मूर्ति का विसर्जन क्यों किया जाता है ? मूर्ति विसर्जित करने की उचित पद्धति क्या है ? यह हम जानकर लेंगे । धर्मशास्त्रानुसार श्री गणेश का विसर्जन करने से श्री गणेशजी की कृपा प्राप्त होती है । (Ganeshotsav, Ganesh Chaturthi, Ganapati)
१. पहले हम जानकर लेते हैं कि श्री गणेश मूर्ति का विसर्जन बहते पानी में ही क्यों करते हैं ?
श्री गणेश चतुर्थी के समय हम शास्त्रानुसार श्रीगणेश जी की विधिविधान से पूजा करते हैं । जिसके परिणामस्वरूप श्री गणेशजी की मूर्ति में अधिकाधिक श्री गणेश तत्त्व तथा चैतन्य आकर्षित होता है । जब वह मूर्ति हम बहते जल में प्रवाहित करते हैं तब उसका चैतन्य बहते जल के द्वारा दूर दूर तक पहुंचता है । उसी जल का जब वाष्पीकरण होता है तो वह चैतन्य वातावण में भी दूर दूर तक जाता है ।
परंतु आजकल धर्मद्रोही बडे स्तर पर आवाहन करते हैं कि मूर्ति को विसर्जित न करें, अथवा कृत्रिम टैंक (जलाशय) में उनका विसर्जन करें । धर्मद्रोहियों के ऐसे आवाहन की बलि चढ, विसर्जन न करने के महापाप से बचें ।
२. गणेश मूर्ति विसर्जन से प्रदूषण होता है ऐसा कहकर प्रदूषण रहित गणेश मूर्ति विसर्जन के नाम पर कुछ महापालिकाएं अनेक स्थानों पर कृत्रिम जलाशय बनाती हैं । ऐसे कृत्रिम जलाशयों में गणेश मूर्ति का विसर्जन करना क्यों अनुचित है; यह जानकर लेते हैं ।
अ. शास्त्र के अनुसार प्राणप्रतिष्ठा की हुई मूर्ति को बहते पानी में विसर्जित करना चाहिए । बहते पानी में मूर्ति का विसर्जन करने से पूजा के कारण मूर्ति में आया चैतन्य, पानी द्वारा दूर-दूर तक पहुंचता है । कृत्रिम जलाशय का पानी, बहता जल प्रवाह न होने से श्र्द्धालु उसके आध्यात्मिक लाभ से वंचित रह जाते हैं । (श्री गणेश मूर्ति जिसे विसर्जित किया जाता है, वह धर्म शास्त्रानुसार शाडू मिट्टी की ही बनानी चाहिए, जिससे पर्यावरण की रक्षा भी होगी और धर्माचरण करने से श्रीगणेश की कृपा भी होगी ।)
आ. श्री गणेश मूर्ति का विसर्जन कृत्रिम जलाशय में करने के उपरांत नगरपालिका के कर्मचारियों द्वारा श्री गणेशमूर्ति पानी में घुलने से पूर्व ही बाहर निकाल ली जाती है । ऐसा करना धर्मशास्त्र विरोधी है ।
इ. नगरपालिका के कर्मचारी कृत्रिम जलाशय में विसर्जित की गई मूर्तियों को कचरे की गाडी से ले जाते हैं तथा उन्हें कचरे के समान ही फेंकते हैं । बहुत बार तो वह मूर्ति खदान के गंदे पानी में फेंकते हैं ।
ई. नगरपालिका गणेश मूतिर्यों के विसर्जन के उपरांत, कृत्रिम जलाशय को समाप्त करने से पूर्व उस गणेश तत्त्व से प्रभारित हुए पानी को गटर में छोड देती है । यह श्री गणेशजी का अनादर ही है ।
३.‘इको फ्रेंडली’ गणेश मूर्तियों के बहकावे में न आएं !
आजकल ‘इको फ्रेंडली’ कहकर कागद की लुगदी से श्री गणेश मूर्ति बनाई जाती है । यह अशास्त्रीय है, साथ ही पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है; क्योंकि कागद की लुगदी पानी की प्राणवायु अवशोषित करती है और उससे जीव सृष्टि के लिए हानिकारक ‘मिथेन’ वायु निर्माण होती है । धर्मशास्त्रानुसार तथा पर्यावरण की दृष्टि से भी शाडू मिट्टी की मूर्ति बनाना ही उचित है ।
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४. धर्मशास्त्रानुसार शाडू की श्री गणेशजी की मूर्ति बनवाने के संदर्भ में कुछ लोगों की अनुचित विचारधारा :
अ. शाडू मिट्टी की मूर्ति का मूल्य अधिक लगना !
गणेशोत्सव पर प्रत्येक परिवार आधुनिक साज-सजावट, परिवार के लिए नए कपडे क्रय करना इत्यादि पर जितना व्यय करते हैं, उसकी तुलना में शाडू मिट्टी की श्रीगणेशजी की मूर्ति क्रय हेतु होनेवाला व्यय बहुत अल्प होता है । श्री गणेशजी की पूजा करने का उद्देश्य परिवार को मूर्ति से गणेश तत्त्व का लाभ प्रदान करना है । प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्ति से वह लाभ मिलना संभव नहीं है । यदि आपके सामने, मूर्ति के मूल्य का प्रश्न हो, तो छोटी मूर्ति लें; जो तुलनात्मक दृष्टि से कम मूल्य की होगी । परंतु प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्ति लाकर धर्मशास्त्र विरोधी आचरण न करें ।
आ. बच्चों के शौक के लिए कुछ परिवार प्रतिवर्ष अलग-अलग अशास्त्रीय मूर्ति रखते हैं । क्या बच्चों के शौक पूरे करना अनुचित है, ऐसा प्रश्न अविभावकों (माता-पिता) का होता है !
मूर्ति कोई खिलौना नहीं है कि उसमें प्रति वर्ष िवविधता होनी चाहिए । भक्तिभाव बढाना, ईश्वरीय चैतन्य ग्रहण करना आदि के लिए श्री गणेशजी की मूर्ति को घर लाकर पूजा जाता है । धर्मशास्त्र से कभी भी समझौता न करें । इसके विपरीत इस निमित्त बच्चों का प्रबोधन करें और उन्हें धर्म शिक्षा दें ।