श्री गणेश चतुर्थी का महत्त्व

१९ सितंबर को गणेशोत्सव मनाया जाएगा, इस निमित्त…

विनाशकारक, तम-प्रधान यम तरंगें पृथ्वी पर अधिक मात्रा में आती हैं । इन १२० दिनों में उनकी तीव्रता अधिक होती है तथा इसी काल में अर्थात भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक, श्री गणेश तरंगों के पृथ्वी पर अधिक मात्रा में आने से, यमतरंगों की तीव्रता को घटाने में सहायता मिलती है ।

श्री गणेश चतुर्थी पर तथा गणेशोत्सव काल में नित्य की तुलना में पृथ्वी पर गणेशतत्त्व १,००० गुना कार्यरत रहता है । इस अवधि में श्री गणेश का नामजप, प्रार्थना एवं अन्य उपासना करने से गणेशतत्त्व का लाभ अधिकाधिक मिलता है । (संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘श्री गणपति’)

श्री गणेशजी का कार्य एवं विशेषताएं

१. विघ्नहर्ता : श्री गणपति विघ्नहर्ता हैं, इसलिए नौटंकी से लेकर विवाह एवं गृहप्रवेश जैसी समस्त विधियों के आरंभ में श्री गणेशपूजन किया जाता है ।

२. प्राणशक्ति बढानेवाला : मानवदेह के विविध कार्य विविध शक्तियों द्वारा होते रहते हैं । इन विविध शक्तियों की मूलभूत शक्ति को ‘प्राणशक्ति’ कहते हैं । श्री गणपति का नामजप प्राणशक्ति बढाता है ।

३.विद्यापति : १८ विद्याओं का अधिपति श्री गणेश हैं; इसलिए विद्याओं का अध्ययन आरम्भ करने से पहले अथवा विद्यार्न्तगत पाठ्यक्रम में श्री गणेशपूजन महत्त्वपूर्ण है ।

४. नादभाषा एवं प्रकाशभाषा का एक-दूसरे में रूपान्तरण करनेवाले : जो भाषा हम बोलते हैं, वह नादभाषा कहलाती है, जिसे श्री गणपति समझ सकते हैं । इसलिए वे एक ऐसे देवता हैं, जो शीघ्र प्रसन्न होते हैं । नादभाषा का प्रकाशभाषा में एवं प्रकाशभाषा का नादभाषा में रूपान्तर करनेवाले देवता हैं श्री गणपति । अन्य देवता अधिकांशतः प्रकाशभाषा ही समझ सकते हैं ।

श्री गणेशजी की पूजा कैसे करें ?

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