प्रभु श्रीराम का वनवास तथा भारतीय मूल्यों की पुनर्स्थापना !

श्रीरामायण का ‘वनवास पर्व’ विश्व के अंत तक देता रहेगा। वनवास पर्व जीवन के संघर्ष का स्वीकार कर उसपर विजय पाना सिखाता है। श्रीराम नवमी (६.४.२०२५) निमित्त श्रीराम के वनवास मार्ग की जानकारी दे रहे हैं ।

विभिन्न युगों के धर्मयुद्ध में अलिप्त रहकर धर्म की रक्षा करनेवाले हनुमानजी !

त्रेतायुग के राम-रावण के धर्मयुद्ध में वानरसेना की रक्षा करने वाले , द्वापरयुग के कौरव-पांडव के मध्य हुए महाभारत युद्ध में पांडवों की रक्षा करने वाले और कलियुग के संतों के इष्टदेवता श्री हनुमान

अक्षय तृतीया के पर्व पर ‘सत्पात्र को दान’ देकर ‘अक्षय दान’ का फल प्राप्त करें !

‘३०.४.२०२५ को ‘अक्षय तृतीया’ है । ‘अक्षय तृतीया’ हिन्दू धर्म के साढे तीन शुभमुहूर्ताें में से एक मुहूर्त है । इस दिन किया जानेवाला दान और हवन का क्षय नहीं होता; जिसका अर्थ उनका फल मिलता ही है । इसलिए कई लोग इस दिन बडी मात्रा में दानधर्म करते हैं ।

हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से नोएडा में होली उपक्रम संपन्न !

यह उपक्रम जिज्ञासुओं को धर्मशास्त्र के अनुसार होली मनाने के महत्व के बारे में जागरूक करने के लिए किया गया था ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी द्वारा श्रीरामरक्षास्तोत्र का पाठ करने पर उनमें विद्यमान समष्टि भक्तिभाव के कारण श्रीराम के चित्र में विद्यमान समष्टि के कल्याण हेतु देवतातत्त्व कार्यरत होना

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी स्वयं के स्वास्थ्य-लाभ हेतु एक संत के बताए अनुसार प्रतिदिन श्रीरामरक्षास्तोत्र का पाठ करते हैं। ‘श्रीरामरक्षास्तोत्र का पाठ करने से सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी पर क्या परिणाम होता है ?’, इसका अध्ययन करने हेतु एक परीक्षण किया गया।

हिन्दू राष्ट्र के उद्गाता सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का जन्म एवं शैक्षिक जीवन

सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की ८३ वीं जयंती के अवसर पर गोवा में ‘सनातन राष्ट्र शंखनाद महोत्सव’ का आयोजन किया है । इस उपलक्ष्य में उनके जीवन चरित्र के विषय में यह लेखमाला आरंभ कर रहे हैं ।

विद्यार्थी संगठनों में सक्रियता दर्शानेवाले पत्रक

‘प्रमुख संगठक’ के रूप में प.पू. डॉ. आठवलेजी का नाम दर्शाता शिवसेना की ‘भारतीय विद्यार्थी सेना’ का पत्रक

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का इंग्लैंड प्रस्थान, नौकरी एवं शोधकार्य

मुंबई के विविध चिकित्सालयों में ५ वर्ष नौकरी करने के उपरांत  डॉ. आठवलेजी ने ४.७.१९७१ को मनोविकारों के लिए सम्मोहन उपचार-पद्धतियों के विषय में अधिक शोध करने हेतु इंग्लैंड प्रस्थान किया । उन्होंने वर्ष १९७१ से वर्ष १९७८ की कालावधि में ब्रिटेन में वास्तव्य किया ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी को अलिंगन देते हुए छायाचित्र देखकर भगवान श्रीराम एवं श्री हनुमान की भावभेंट का स्मरण होना

पू. हरि शंकर जैनजी के मन में परात्पर गुरु डॉक्टरजी के प्रति हनुमानजी की भांति उच्च कोटि का भक्तिभाव होना

समष्टि साधना का महत्त्व एवं उसके संदर्भ में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का मार्गदर्शन

ईश्‍वर स्वयं एक ही समय सूक्ष्मातिसूक्ष्म एवं सर्वव्यापी भी होने के कारण, साधक की व्यष्टि अथवा समष्टि साधना मार्गाें के अनुसार वे उसे वैसी अनुभूति प्रदान करते हैं । ईश्‍वर से एकरूप होने के इच्छुक साधक को भी यदि ये दोनों अनुभूतियां हों, तो वह ईश्‍वर से शीघ्र एकरूप होता है ।