सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी को अलिंगन देते हुए छायाचित्र देखकर भगवान श्रीराम एवं श्री हनुमान की भावभेंट का स्मरण होना

‘११.५.२०२३ के दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी को अलिंगन देता हुआ छायाचित्र प्रकाशित हुआ था । उसे देखकर ‘कलियुग में श्रीराम एवं श्री हनुमान एक-दूसरे को अलिंगन दे रहे हैं’, ऐसा मुझे लगा । उस समय मुझे प्रतीत हुई गुणविशेषताएं यहां दी हैं ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी से हुई प्रेममय भेंट

१. ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी हनुमानजी की भांति पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी को श्रीराम के रूप में अलिंगन दे रहे हैं’, ऐसा लगना

हनुमानजी की भांति सेवा करनेवाले पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी ने अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए लडाई लडी तथा उन्होंने वह लडाई जीती भी थी । ‘सनातन प्रभात’ में प्रकाशित उनकी (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी एवं पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी की) भेंट का छायाचित्र देखकर ‘हनुमानजी श्रीराम का कार्य पूर्ण कर आए हैं, साथ ही वे विजयी होकर आए हैं तथा सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी ने उन्हें श्रीराम के रूप में अलिंगन दिया है’, ऐसा मुझे लगा । गुरुदेवजी इतने प्रेम से उन्हें हृदय के पास ले रहे हैं, यह देखकर ‘गुरुदेवजी को पू. जैनजी में विजयी बने तथा भक्तिभाव से युक्त हनुमानजी ही दिखाई दिए होंगे’, ऐसा मुझे लगा ।

(‘प्रतिवर्ष वैश्विक हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में उपस्थित रहने से पू. जैनजी की सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के प्रति बहुत श्रद्धा एवं अनन्य भक्ति हैं । उन्हें लगता है कि ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी निरंतर उनके साथ हैं ।’ हिन्दू राष्ट्र के (रामराज्य के) उद्गाता सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का स्मरण कर तथा उनके प्रति श्रद्धा के बल पर पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी ने वह लडाई लडी तथा पू. जैनजी की यह श्रद्धा है कि वह लडाई स्थूल से उन्होंने लडी; परंतु उसका सूक्ष्म से संबंधित कार्य सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने किया ।’ – संकलनकर्ता)

श्रीमती वेदश्री हर्षद खानविलकर,

२. पू. हरि शंकर जैनजी के मन में परात्पर गुरु डॉक्टरजी के प्रति हनुमानजी की भांति उच्च कोटि का भक्तिभाव होना

हनुमानजी ने त्रेतायुग में भी श्रीराम का कार्य करने हेतु दिन-रात परिश्रम किए थे । उनके मन में भी श्रीराम के प्रति उच्च कोटि की भक्ति थी, उसके कारण ही वे प्रत्येक बार श्रीराम के कार्य में विजयी बने तथा उन्होंने प्रभु का मन जीत लिया । मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि पू. हरि शंकर जैनजी में गुरुदेवजी के प्रति उसी प्रकार का भाव  है ।’

३. हनुमानजी की दास्यभक्ति, निष्ठा, लगन एवं समर्पणभाव, इन सभी गुणों के कारण वे प्रभु का कार्य कुशलता से कर पाए । वैसा ही पू. जैनजी के विषय में भी प्रतीत होता है ।

४. पू. जैनजी द्वारा हनुमानजी की भांति श्रीराम जन्मभूमि की लडाई के कार्य में योगदान दिया जाना

महर्षियों के बताए अनुसार गुरुदेवजी वर्तमान कलियुग के श्रीविष्णु के जयंतावतार हैं । त्रेतायुग में हनुमानजी ने श्रीराम के कार्य में योगदान दिया था । उसी प्रकार गुरुदेवजी कलियुग में भी पू. जैनजी ने कठिन तथा लगभग असंभव लगनेवाली अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि की लडाई लडी तथा उसमें वे सफल रहे

५.  पू. जैनजी के मन में श्रीरामस्वरूप सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के प्रति अनन्यभाव होना 

यह कार्य तो केवल श्रीराम की अखंड कृपा, आशीर्वाद, ईश्वर के प्रति भक्ति से युक्त व्यक्ति ही कर सकता है । पू. जैनजी के मन में श्रीरामस्वरूप गुरुदेवजी के प्रति अनन्यभाव है । उसके कारण ही वे विजयी बने तथा उसके कारण ही आज पूरे विश्व को यह स्वर्णिम दिन देखना संभव हो रहा है ।’

– श्रीमती वेदश्री हर्षद खानविलकर, फोंडा, गोवा.