हनुमान जयंती १२ अप्रैल को है, इस निमित्त…

१. त्रेतायुग के राम-रावण के धर्मयुद्ध में वानरसेना की रक्षा करना !
त्रेतायुग में लंका में हुए धर्मयुद्ध में रावणसेना में स्थित शक्तिसंपन्न तथा मायावी शक्तिसंपन्न अतिकाय, नरांतक, देवांतक, प्रहस्त, इंद्रजीत जैसे महाबलशाली राक्षसवीरों ने, साथ ही सुग्रीव, अंगद, बिभीषण, लक्ष्मण इत्यादि धर्मयोद्धाओं पर अनेक विध्वंसकारी एवं प्राणघातक शस्त्रों की मार लगाई; परंतु हनुमानजी ने इन सभी शस्त्रों को वानरसेना तक पहुंचने से पूर्व स्वयं पर झेलकर उन्हें निष्फल किया ।
२. द्वापरयुग के कौरव-पांडव के मध्य हुए महाभारत युद्ध में पांडवों की रक्षा करना !
महाभारत के धर्मयुद्ध का आरंभ होने से पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने हनुमानजी को अर्जुन के रथ पर सूक्ष्मरूप से उपस्थित रहने के लिए कहा। इस प्रकार हनुमानजी अर्जुन के कपिध्वज पर सूक्ष्मरूप से स्थानापन्न हुए। महाभारत के धर्मयुद्ध में भीष्माचार्य, द्रोणाचार्य, कर्ण एवं अश्वत्थामा जैसे महारथियों ने अर्जुन पर प्राणघातक, साथ ही सृष्टिविध्वंसक दिव्यास्त्र छोडे थे; परंतु भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से अर्जुन को कोई हानि नहीं पहुंची । रथ पर सूक्ष्मरूप से विराजमान हनुमानजी ने कुछ समय के लिए सभी दिव्यास्त्रों को रोककर रखा । १८ दिन का युद्ध समाप्त होने पर जब श्रीकृष्ण एवं अर्जुन रथ से नीचे उतरे तथा श्रीकृष्ण की आज्ञा से जब हनुमानजी रथ छोडकर अर्जुन के सामने प्रकट हुए, उस समय हनुमानजी ने रोककर रखे दिव्यास्त्रों को मुक्त किया । उस समय अर्जुन के रथ में बडा विस्फोट हुआ तथा उसमें रथ के टुकडे हुए ।
३. कलियुग के संतों के इष्टदेवता !
अ. समर्थ रामदासस्वामी : छत्रपति शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज्य को आध्यात्मिक स्तर पर बल मिलने हेतु समर्थ रामदासस्वामीजी ने ११ हनुमान की स्थापना की थी ।
आ. संत तुलसीदास : संत तुलसीदासजी ने भी हनुमानजी की उपासना की थी । हनुमानजी की कृपा से ही संत तुलसीदासजी को ३ बार प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण एवं सीतामाता के प्रत्यक्ष दर्शन हुए । काशी के कुछ पंडित संत तुलसीदासजी के विरोधी थे । उन्होंने तुलसीदासजी को मारने हेतु एक तांत्रिक की सहायता से कृत्य को (अघोरी शक्ति को) भेजा था; परंतु हनुमानजी की कृपा से संत तुलसीदासजी की रक्षा हुई ।
इ. राष्ट्रसंत विद्यारण्यस्वामी : सम्राट हक्कराय एवं बुक्कराय को तैयार करनेवाले राष्ट्रसंत विद्यारण्यस्वामीजी ने भी हनुमानजी का गुणगान कर उनके पंचमुखी रूप की महिमा विशद की है ।
हनुमानजी की अन्य गुणविशेषताएं
१. संगीत के जानकार : हनुमानजी को नारदमुनि से संगीत का ज्ञान प्राप्त हुआ था । वे वीणावादन भी जानते थे । वे करताल बजाकर श्रीराम का भावपूर्ण भजन करते थे ।
२. संस्कृत भाषा एवं व्याकरण पर प्रभुत्व होना : हनुमानजी अत्यंत प्रतिभाशाली हैं तथा उन्हें संस्कृत भाषा के व्याकरण का गहन ज्ञान है । ऋष्यमुख पर्वत की तलहटी के पास के पंपा सरोवर के पास जब श्रीराम एवं लक्ष्मण से हनुमानजी की पहली भेंट हुई, तब उन्होंने राजपुरोहित का रूप धारण किया था । उस समय उन्होंने श्रीराम एवं लक्ष्मण से संस्कृत भाषा में उत्स्फूर्त वार्तालाप किया । इससे संस्कृत भाषा पर उनका प्रभुत्व दिखाई देता है ।
३. अष्टमहासिद्धियों के स्वामी : हनुमानजी गरिमा, लघिमा, महिमा आदि अष्टमहासिद्धियों के स्वामी हैं ।
– सुश्री (कु.) मधुरा भोसले (आध्यात्मिक स्तर ६५ प्रतिशत), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.