‘कोरोना’ विषाणु के फैलाव से उत्‍पन्‍न आपातकालीन स्‍थिति में ‘नागपंचमी’ की पूजा कैसे करें ?

‘नागों से हमारे परिजनों की सदैव रक्षा हो तथा नागदेवता की कृपा हो’, इस हेतु प्रति वर्ष श्रावण शुक्‍ल पंचमी अर्थात नागपंचमी को नागदेवता की पूजा की जाती है । इस वर्ष नागपंचमी २५.७.२०२० को है ।

ज्ञान, भक्ति और कर्म मार्ग से साधना करने की क्षमता रखनेवाले एकमेवाद्वितीय सनातन के सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी !

संत प्राय: किसी एक योगमार्ग से साधना करते हैं; किंतु सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग, इन तीनों मार्गों से साधना करते हैं ! उनकी शीघ्र प्रगति का मुख्य कारण यह है कि अध्यात्म की जो बातें समझीं, उनका उन्होंने तुरंत पालन किया ।

ढलती आयु में भी नई बातें सीखने की लगन और प्रत्येक बात का श्रेय गुरुदेवजी को देनेवाले पू. भगवंत कुमार मेनरायजी !

रामनाथी आश्रम में कुछ साधकों को एरोमाथेरेपी सिखाई जा रही थी । पू. मेनरायजी उस विषय में जिज्ञासा से प्रश्‍न पूछते हैं और मुझे भी यह थेरेपी सीखनी है, ऐसा कहते हैं । वे हिन्दी भाषी हैं तथा उन्हें मराठी नहीं आती । अधिकतर साधक मराठी भाषी हैं; इसलिए उनके साथ मराठी मेें बात करने के लिए वे मराठी सीख रहे हैं ।

देहली की श्रीमती ज्‍योति राणे (आयु ७३ वर्ष) ने प्राप्‍त किया ६३ प्रतिशत आध्‍यात्मिक स्‍तर !

देहली – यहां २ जुलाई को ‘ऑनलाइन’ सत्‍संग में सद़्‍गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने घोषित किया, ‘‘सनातन की साधिका श्रीमती ज्‍योति राणे ने ६३ प्रतिशत आध्‍यात्मिक स्‍तर प्राप्‍त किया है । इससे वे जन्‍म-मृत्‍यु के चक्र से मुक्‍त हो गई हैं ।’’

श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचितशक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का गुरुपूर्णिमा निमित्त संदेश

ईश्‍वर की भक्ति अथवा साधना करने से ईश्‍वर की कृपा तो होती ही है; और मनुष्यजन्म का भी कल्याण ही होता है । इसलिए इस गुरुपूर्णिमा से प्रतिदिन साधना करने का निश्‍चय करें । – (श्रीचित्शक्ति) श्रीमती अंजली गाडगीळ

श्रीगुरु के प्रति श्रद्धा बढानेवाले सनातन के ग्रंथ !

गुरु, पिता से भी अधिक श्रेष्ठ क्यों हैं ? गुरु, सद्गुरु एवं परात्पर गुरु में क्या अंतर है ? साधक पर गुरुकृपा शनैः-शनैः कैसे होती रहती है ?

गुरुपूर्णिमा का महत्त्व

गुरुपूर्णिमा पर अन्य किसी भी दिन की तुलना में गुरुतत्त्व (ईश्‍वरीय तत्त्व) १ सहस्र गुना अधिक कार्यरत रहता है । इसलिए गुरुपूर्णिमा के आयोजन हेतु अथक परिश्रम (सेवा) व त्याग (सत् हेतु अर्पण) का व्यक्ति को अन्य दिनों की तुलना में १ सहस्र गुना अधिक लाभ होता है ।

सनातन पर अखंड कृपावर्षा करनेवाले कृपावत्सल प.पू. भक्तराज महाराज !

प्रत्यक्ष में १.८.१९९१ को प.पू. भक्तराज महाराजजी की कृपा से ‘सनातन भारतीय संस्कृति संस्था’ की स्थापना हुई । तत्पश्‍चात प.पू. डॉक्टरजी द्वारा लिए अभ्यासवर्ग, गुरुपूर्णिमा महोत्सव तथा वर्ष १९९६ से वर्ष १९९८ की अवधि में ली गई सैकडों सभाओं से सहस्त्रों जिज्ञासु और साधक संस्था से जुड गए ।

साधकों को नामजपादि उपचार रूपी आध्यात्मिक संजीवनी देनेवाले पूज्य (डॉ.) मुकुल गाडगीळजी सद्गुरु पद पर विराजमान !

सद्गुरुपद पर विराजमान होने की वार्ता सुनकर आनंद हुआ । श्रीसत्शक्ति श्रीमती बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्शक्ति श्रीमती अंजली गाडगीळजी समान मेरी भी हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के लिए कार्य करने की इच्छा है । मैं प्रार्थना करता हूं कि ‘ईश्‍वर मुझसे वैसे प्रयत्न करवाकर लें ।’

ग्रंथमाला ‘गुरुकृपायोगानुसार साधना’

गुरुकृपायोग की महिमा गुरुकृपा के माध्यम से जीव को ईश्‍वरप्राप्ति होना, इसे ‘गुरुकृपायोग’ कहते हैं । इस ग्रंथ में ‘गुरुकृपायोगानुसार साधना’ के सिद्धांत, चरण इत्यादि की अभिनव जानकारी दी गई है ।