पूर्वजों के कष्ट दूर होने हेतु पितृपक्ष में नामजप, प्रार्थना और श्राद्धविधि करें !

आजकल अनेक साधकों को अनिष्ट शक्तियों के कष्ट हो रहे हैं । पितृपक्ष के काल में (२१ सितंबर से ६ अक्टूबर २०२० की अवधि में) इन कष्टों में वृद्धि होने से इस कालावधि में प्रतिदिन न्यूनतम १ घंटा ‘ॐ ॐ श्री गुरुदेव दत्त ॐ ॐ’ नामजप करें ।

साधनाके तीन प्रकार

‘इंद्रियां श्रेष्ठ कही जाती हैं । इंद्रियोंसे मन श्रेष्ठ है । मनसे बुद्धि श्रेष्ठ है । जो बुद्धिसे श्रेष्ठ है, वह आत्मा (ब्रह्म) है ।’

सनातन में ‘मैंने किया’, ऐसा कुछ भी न होना – परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

‘कुछ आध्यात्मिक संस्थाएं अथवा संप्रदाय कोई अभियान अथवा कार्यक्रम करने पर ‘हमने यह किया, हमने वह किया’, ऐसा बताते हुए दिखाई देते हैं; परंतु सनातन में सभी कार्य महर्षि, संत आदि के अर्थात भगवान के मार्गदर्शन अनुसार किया जाता है ।

सनातन के संत पू. (श्रीमती) सुशीला मोदीजी एवं पू. नीलेश सिंगबाळजी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में उनके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !

भाद्रपद पूर्णिमा (२० सितंबर) को वाराणसी के पू. नीलेश सिंगबाळजी का जन्मदिन है । इस निमित्त से ‘झारखंड राज्य के धनबाद और कतरास जिलों के साधकों को पू. नीलेश सिंगबाळजी से सिखने को मिले सूत्र इस लेख में प्रस्तुत हैं ।

षट् सम्पत्ति

समाधान का अर्थ है शंकाओंका निरसन । अध्यात्मशास्त्रका अध्ययन करते समय नाना प्रकारके विकल्प और शंकाएं मनमें आती हैं । सभी प्रश्नोंके उत्तर मिलकर सभी शंकाओंका निरसन होनेपर प्राप्त होनेवाली शांति ।

गुरुदेवजी पर अपार श्रद्धा रखनेवाली डॉ. (श्रीमती) शरदिनी कोरे (आयु ७८ वर्ष) १०९ वें संतपद पर विराजमान !

सनातन के इतिहास में एक ही समय मां के संत और पुत्री के जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होने की अभूतपूर्व घटना !

सप्तर्षि द्वारा वर्ष २०२१ की गुरुपूर्णिमा के गुरुपूजन हेतु निर्मित चित्र की विशेषताएं

उपरोक्त चित्र के ऊपरी भाग, मध्यभाग एवं निचले भाग को स्पर्श कर क्या अनुभव होता है ?, इसकी अनुभूति लें ।

सप्तर्षियों के बताए अनुसार वर्ष २०२० और २०२१ की गुरुपूर्णिमा में पूजन किए गए चित्रों के संदर्भ में सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी को हुई अनुभूति !

वर्ष २०२१ की गुरुपूर्णिमा में सप्तर्षियों के बताए अनुसार चित्र बनाकर उसका पूजन रामनाथी आश्रम में किया गया । उस चित्र की ओर देखकर मुझे हुई अनुभूति इस लेख में दी है ।

सनातन की गुरुपरंपरा !

कुलार्णवतन्त्र, उल्लास १४, श्लोक ३७ के अनुसार मादा कछुआ केवल मन में चिंतन कर भूमि के नीचे रखें अंडों को उष्मा देती है, बच्चों को बडा करती है और उनका पोषण करती है, उसी प्रकार गुरु केवल संकल्प द्वारा शिष्य की शक्ति जागृत करते हैं तथा उसमें शक्ति का संचार करते हैं ।

‘आपातकाल’ भी भगवान की एक लीला होने के कारण परात्पर गुरु डॉक्टरजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के चरणों में शरणागत होकर आपातकाल का सामना करें !

वर्तमान आपातकाल में साधक अनेक स्तरों पर संघर्ष कर रहे हैं । कोई पारिवारिक, कोई सामाजिक, कोई आर्थिक, कोई शारीरिक, कोई मानसिक, तो कोई बौद्धिक संघर्ष कर रहा है !