सनातन के संत पू. (श्रीमती) सुशीला मोदीजी एवं पू. नीलेश सिंगबाळजी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में उनके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !

निरंतर सेवारत और साधकों को आधार देनेवाली सनातन की ६३ वीं संत पू. (श्रीमती) सुशीला मोदीजी !

पू. श्रीमती सुशीला मोदी

     आश्विन कृष्ण सप्तमी (२८ सितंबर) को जोधपुर, राजस्थान की पू. (श्रीमती) सुशीला मोदीजी का जन्मदिन है । इस निमित्त उनके परिजन एवं राजस्थान के सोजत के साधकों को ध्यान में आई उनकी गुणविशेषताएं इस लेख में प्रस्तुत हैं ।

१. कठिन परिस्थिति स्थिर रहकर स्वीकारना

     ‘पिताजी के देहांत के उपरांत मां बहुत स्थिर थीं ।’ ‘पू. मां कोई भी कठिन परिस्थिति सहजता से स्वीकारती हैं व सकारात्मक रहकर उसका सामना करती हैं ।’- श्री. शीतल मोदी, डॉ. (श्रीमती) स्वाती मोदी (ज्येष्ठ पुत्र एवं बहू)

२. सेवा की लगन

२ अ. परिपूर्ण सेवा हेतु परिश्रम करना : ‘पू. मां कोई भी सेवा अधूरी नहीं छोडतीं । सेवा परिपूर्ण करने का प्रयास करती हैं ।’ – श्री. शीतल मोदी

२ आ. सेवा हेतु स्वयं वस्तुएं उठाना : ‘इस आयु में भी वे अखंड सेवारत रहती हैैं । आयु के अनुसार उनकी शारीरिक क्षमता न्यून (कम) होने पर भी प्रसार में जाते समय वे स्वयं का सामान स्वयं ही उठाती है ।’ – डॉ. (श्रीमती) स्वाती मोदी

२ इ. वृद्धावस्था में भी सोशल मीडिया की सेवा सीखकर धर्मसेवा करना : ‘पू. दादी में सीखने की तीव्र लगन है । इस आयु में भी उन्होंने व्हॉटस एप, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया के माध्यम से सेवा करना सीख लिया है । हिन्दू धर्म संबंधी चलाए गए ट्विटर ट्रेण्ड्स में वे हमेशा सहभागी होती हैं ।’ – कु. साक्षी मोदी (बडी पोती)

२ ई. अचानक आई सेवा स्वीकारकर भावपूर्ण एवं परिपूर्ण करना : ‘अचानक कुछ भी सेवा आने पर पू. दादी उसे स्वीकारकर उसका पूर्ण रूप से निरीक्षण, आंकलन और ‘यह सेवा गुरु का प्रसाद ही है’, ऐसा भाव रखकर तत्परता से वह सेवा निर्देशानुसार परिपूर्ण करती हैं ।

२ उ. सहसाधकों से पूछकर त्रुटिरहित सेवा करना : सेवा में चूक न हो इस हेतु पू. दादी सहसाधकों से पूछकर सेवा करती हैं । वे सदैव कहती हैं कि ‘‘धर्मकार्य में चूक होना गुरुदेवजी को अपेक्षित नहीं है ।’’ – कु. वेदिका मोदी (छोटी पोती)

३. समाज को धर्मशिक्षा देने की लगन

३ अ. ‘पिताजी के देहांत उपरांत अगले १२ दिन परिवार के ७०-८० सदस्य प्रतिदिन एकत्रित महाप्रसाद लेते थे । तब सभी को धर्मशिक्षा मिले, इस लगन से मां प्रतिदिन एक सत्संग का आयोजन करती थीं ।

३ आ. वे सामाजिक कार्यक्रमों में सहभागी होकर समाज को धर्मशिक्षा संबंधी जानकारी बताती हैं ।’

– श्री. शीतल मोदी

४. चूकें स्वीकार करना तथा स्वयं में परिवर्तन करने की लगन

     ‘स्वयं संत होते हुए भी दादी (पू. (श्रीमती) सुशीला मोदीजी किसी भी प्रसंग में अपनी चूक तत्काल स्वीकार करती हैं । – कु. साक्षी मोदी (बडी पोती)

५. साधकों का आध्यात्मिक मार्गदर्शन कर आधार देना

५ अ. ‘जब भी मैं बीमार होती हूं, तब वे मेरी सेवा गुरुसेवा समझकर करती हैं ।’ – डॉ. (श्रीमती) स्वाती मोदी (बडी बहू)

५ आ. कोरोना से बाधित होकर मानसिक स्थिति बिगडने पर आध्यात्मिक मार्गदर्शन करना : ‘कोरोना काल में मुझे और मां (श्रीमती राखी मोदी) को कोरोना हुआ था । तब मेरी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी । उस समय पू. दादी ने मुझे बताया, ‘‘ईश्वर की कृपा से सब ठीक होगा । ईश्वर ने आपको नामजप करने का अवसर दिया है । गुरु आपकी आध्यात्मिक उन्नति करवा लेंगे ।’’ उनके मार्गदर्शन से मैं चिंता मुक्त हुई ।’ – कु. वेदिका मोदी (छोटी पोती)

५ इ. पू. (श्रीमती) मोदीजी के कारण साधनारत रह पाना : ‘पू. (श्रीमती) मोदीजी ने मुझे मां जैसा आधार दिया है । उनके कारण मैं आज साधनारत हूं ।’ – श्रीमती अर्चना लढ्ढा, सोजत, राजस्थान.

६. पू. (श्रीमती) मोदीजी के अस्तित्व से आध्यात्मिक उपचार होना

     ‘पू. मां के साथ रहते हुए कभी अचानक मेरे दोषों में वृद्धि होती है । उस समय लगता है कि वे मुझे कष्ट देनेवाली अनिष्ट शक्ति के साथ सूक्ष्म से लड रही हैं तथा मेरा प्रारब्ध नष्ट कर रही हैं । उनके अस्तित्व से अध्यात्मिक उपचार हो रहे हैं, ऐसा अनुभव होता है ।’ – डॉ. (श्रीमती) स्वाती मोदी (बडी बहू)

साधकों को उचित दिशादर्शन कर उनमें गुण निर्माण करनेवाले सनातन के ७२ वें संत पू. नीलेश सिंगबाळजी !

पू. नीलेश सिंगबाळ

     भाद्रपद पूर्णिमा (२० सितंबर) को वाराणसी के पू. नीलेश सिंगबाळजी का जन्मदिन है । इस निमित्त से ‘झारखंड राज्य के धनबाद और कतरास जिलों के साधकों को पू. नीलेश सिंगबाळजी से सिखने को मिले सूत्र इस लेख में प्रस्तुत हैं ।

१. साधकों में गुण निर्माण करना

१ अ. ‘पू. नीलेशजी ने साधकों को ‘प्रसार के लिए जाते समय कौन-सी सामग्री लेकर जाएं, साथ ही साधक और हिन्दुत्वनिष्ठों के छायाचित्र उचित पद्धति से कैसे खीचें ?’, इस विषय में बताया ।’ – श्रीमती सोम गुप्ता

१ आ. नियोजन कुशलता

१. ‘एक दिन में २ स्थानों पर प्रवचन, २ संपर्क और २ साधकों के घर जाने का नियोजन था । ‘उनका और नियतकालिक ‘सनातन प्रभात’ के वाचकों हेतु अलग स्थान पर कार्यक्रम और मार्गदर्शन का आयोजन करना, साधना के विषय में मार्गदर्शन करना’, यह सभी नियोजन कैसे परिपूर्ण कर सकते हैं ?’, यह पू. नीलेशजी से सीखने को मिला ।’ – श्रीमती रेणु सिंह, झारखंड

२. ‘अल्प समय में अधिक सेवा किस प्रकार करें ?’, यह उनसे सिखने को मिला’ – श्रीमती मीनू खेतान

१ इ. पू. नीलेशजी ने साधकों को निरपेक्ष भाव से व्यष्टि और समष्टि साधना करना सिखाया ।

१ ई. साधकों को प्राणशक्ति प्रणाली उपचार पद्धति द्वारा नामजप ढूंढना सिखाना : ‘पू. नीलेश सिंगबाळजी ने हमें प्राणशक्ति प्रणाली पद्धति द्वारा नामजप ढूंढना सिखाया । इससे पहले हमें प्राणशक्ति प्रणाली पद्धति द्वारा नामजप ढूंढने की कृति बताई गई थी; परंतु मुझसे प्रयास नहीं होते थे । पू. नीलेशजी ने हमें यह प्रक्रिया बहुत अच्छे से सिखाई । इसलिए अब मुझसे नामजप ढूंढने के नियमित प्रयास होते है ।

१ उ. ‘पू. नीलेशजी ने हमें बताया कि ‘परात्पर गुरुदेवजी के प्रति श्रद्धा रख समष्टि सेवा का नियोजन करने से सेवा का आनंद दुगुना होता है और स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया का क्रियान्वन सहजता से कैसे करें ?’

२. लगन

२ अ. ‘प्रत्येक जीव की साधना हो’, ऐसी लगन रखना : ‘पू. नीलेशजी में समाज के हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों से जुडे धर्मप्रेमियों की भी व्यष्टि और समष्टि साधना हो’, ऐसी लगन रहती है । उन्हें लगता है कि ‘प्रत्येक जीव की साधना हो’ । ‘प्रत्येक जीव को साधना में अगले स्तर पर ले जाने के लिए कैसे प्रयास कर सकते हैं ?’, यह मुझे पू. नीलेशजी से सीखने के लिए मिला ।’ – श्रीमती रेणू सिंह

२ आ. बीमार होते हुए भी सेवा को प्रधानता देना : ‘एक बार पू. नीलेशजी बीमार थे, पू. नीलेशजी बीमार होते हुए भी २ दिन कार्यशाला में उपस्थित रहें ।’ – श्रीमती सुगंधा सिन्हा

३. ‘प.पू. गुरुदेवजी साधकों के मन की छोटी इच्छा भी पूर्ण करते हैं’, इसकी हुई प्रतीति

     ‘जब पू. नीलेश सिंगबाळजी धनबाद और कतरास आए, तब मेरी इच्छा थी कि ‘मेरे घर भी पू. नीलेशजी का नियोजन हो ।’ उस कालावधि में मुझे कुछ कारणवश बाहर जाना पडा, तब भी मेरी अनुपस्थिति में मेरे घर पर पू. नीलेशजी की सेवा का नियोजन हुआ । इससे मुझे अत्यधिक आनंद हुआ । ‘प.पू. गुरुदेवजी साधकों के मन की छोटी सी इच्छा भी पूर्ण करते हैं’, इसकी मुझे अनुभूति हुई ।’ – श्रीमती मीनू खेतान

‘संत २४ घंटे ईश्वर के आंतरिक सान्निध्य में होने के कारण उनसे ईश्वर को अपेक्षित कृति होती है’, ससकी साधक को हुई प्रतीति !

     ‘पू. नीलेश सिंगबाळजी के साथ सेवा करते समय उन्होंने मुझे बताया, ‘‘अच्छा हुआ, मैं मेरा बिहार राज्य का दौरा अधूरा छोडकर सेवाकेंद्र में आ गया । मेरे पटना (बिहार) से निकलने पर २ दिन उपरांत वहां के कोरोना से संक्रमित रोगी बडी मात्रा में मिले ।

     यह सब सुनकर मुझे सीखने के लिए मिला, ‘संत २४ घंटे ईश्वर के आंतरिक सान्निध्य में रहते हैं और बता सकते हैं कि ‘ईश्वर को क्या अपेक्षित हैं ?’ आरंभ में हमें किसी प्रसंग में संतों द्वारा बताए सूत्रों का कारण न भी समझ में आए, तब भी हम १०० प्रतिशत श्रद्धा रख आज्ञापालन करें, तो हमारी प्रगति अवश्य होगी ।’

– श्री. विश्वनाथ कुलकर्णी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश. (८.८.२०२०)