सप्तर्षियों के बताए अनुसार वर्ष २०२० और २०२१ की गुरुपूर्णिमा में पूजन किए गए चित्रों के संदर्भ में सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी को हुई अनुभूति !

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सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळ

१. सप्तर्षियों के बताए अनुसार वर्ष २०२१ की गुरुपूर्णिमा में पूजन किए गए चित्र के संदर्भ में सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी को हुई अनुभूति

     ‘वर्ष २०२१ की गुरुपूर्णिमा में सप्तर्षियों के बताए अनुसार चित्र बनाकर उसका पूजन रामनाथी आश्रम में किया गया । उस चित्र की ओर देखकर मुझे हुई अनुभूति इस लेख में दी है ।

१ अ. चित्र देखते ही मुझे अत्यधिक शीतलता एवं आनंद अनुभव हुआ ।

१ आ. प्रारंभ में मेरी चंद्रनाडी कार्यरत थी । चित्र देखते ही तत्काल मेरी सुषुम्ना नाडी कार्यरत हुई ।

१ इ. मेरे सहस्रारचक्र पर स्पंदन अनुभव होने लगे ।

१ ई १. चित्र की ओर देखना

अ. इस चित्र की ओर देखते ही मेरी दृष्टि केवल परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की ओर आकर्षित हुई ।

आ. ऐसा लगा कि ‘श्रीराम और श्रीकृष्ण ने अपने तत्त्व परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी में पूर्णतः कार्यरत किए है ।’ इसलिए देवताओं की ओर दृष्टि न जाते हुए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की ओर ही दृष्टि आकर्षित हुई ।

इ. चित्र से अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा प्राप्त हुई । ऐसा लगा कि ‘ईश्वरीय राज्य की स्थापना करने के लिए मैं ऊर्जा से पूर्णत: भारित हो गया हूं ।’

ई. ‘ईश्वरीय राज्य का सुप्रभात शीघ्र ही होगा’, इस विचार से मन अत्यधिक आनंदित हुआ ।

उ. उत्साह अनुभव हुआ । ऐसा लगा कि इस चित्र की ओर देखते ही रहें ।

१ ई २. चित्र को स्पर्श करना

अ. चित्र में दर्शाए श्रीकृष्ण और श्रीराम के भाग को स्पर्श करना : सकारात्मक शक्ति अनुभव हुई और सुषुम्ना नाडी कार्यरत हुई । ईश्वरीय राज्य की स्थापना हेतु देवताओं से आध्यात्मिक बल प्रक्षेपित होने के कारण शक्ति के स्पंदन अनुभव हुए ।

आ. चित्र में दर्शाए आसनस्थ श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के भाग को स्पर्श करना : सकारात्मक शक्ति अनुभव हुई; परंतु शक्ति की मात्रा बहुत अधिक थी । मेरी सुषुम्ना नाडी कार्यरत हुई । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ईश्वरीय राज्य की स्थापना हेतु वास्तव में कार्यरत होने के कारण अधिक मात्रा में शक्ति अनुभव हुई ।

इ. चित्र में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के भाग को स्पर्श करना : अत्यंत शीतलता अनुभव हुई । रिक्ति (खोखल) अनुभव हुई और मेरी सुषुम्ना नाडी कार्यरत हुई । ईश्वरीय राज्य की स्थापना के लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी में व्याप्त गुरुतत्त्व मार्गदर्शन के स्तर पर कार्यरत होने के कारण और निर्गुण स्तर पर अधिक मात्रा में कार्यरत होने के कारण शीतलता तथा रिक्ति (खोखल) अनुभव हुई ।

     संक्षेप में, पूर्ण चित्र चैतन्य के स्तर पर कार्यरत होने से चित्र में कहीं भी स्पर्श करने पर सुषुम्ना नाडी कार्यरत होती है ।

१ उ. चित्र से प्रक्षेपित स्पंदन

२. वर्ष २०२० की गुरुपूर्णिमा में पूजन किए गए और इस वर्ष पूजन किए गए चित्र में अनुभव हुए भेद

सप्तर्षियों की आज्ञानुसार वर्ष २०२० की गुरुपूर्णिमा में निम्नांकित छायाचित्र का पूजन किया गया ।

गुरु डॉ. आठवलेजी और उनके चरणों में अर्जुन के समान शरणागत भाव से प्रार्थना करतीं श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी

     विगत वर्ष (वर्ष २०२० में) गुरुपूर्णिमा हेतु सप्तर्षियों के बताए अनुसार ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी श्रीकृष्ण के रूप में कुरुक्षेत्र (युद्धक्षेत्र) पर उपस्थित हैं तथा उनकी दोनों उत्तराधिकारिणी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी उनसे अर्जुन के समान प्रार्थना कर रही हैं तथा श्रीकृष्ण रूप में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी उन्हें आशीर्वाद दे रहे हैं ।, ऐसा चित्र बनाया गया था । वर्ष २०२० की गुरुपूर्णिमा का चित्र और वर्तमान वर्ष २०२१ की गुरुपूर्णिमा के चित्र में निम्नांकित भेद अनुभव हुए ।

     इन दोनों चित्रों से ध्यान में आता है कि ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, देवता और सप्तर्षियों की कृपा से ईश्वरीय राज्य की स्थापना हेतु साधकों द्वारा किए जा रहे संघर्ष के कारण प्रतिवर्ष उनका मार्गक्रमण विजय की दिशा में हो रहा है !’

– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२६.७.२०२१)

  • सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रिय हैं । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है ।
  • सूक्ष्म ज्ञान संबंधी चित्र : कुछ साधकों को किसी विषय से संबंधित जो अनुभव होता है तथा अंतर्दृष्टि से जो दिखाई देता है, उसके रेखांकन को (कागज पर बनाए चित्र को) ‘सूक्ष्म ज्ञान संबंधी चित्र’ कहते हैं ।
  • इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्‍ति अनुसार साधकों की व्‍यक्‍तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्‍यक नहीं है । – संपादक