आपातकाल में गुरु का प्रीतिमय कृपाछत्र अनुभव करने के लिए शिष्य बनें !

आपातकाल में रक्षा होने के लिए अनन्य भाव से श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुरु डॉक्टरजी की शरण लें और उनका खरा शिष्य बनने के लिए साधना हेतु पराकाष्ठा के प्रयत्न करें ।’ – श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ, सनातन आश्रम, रामनाथी. (२८.४.२०२१)

धर्मसंस्थापना के दैवी कार्य में सम्मिलित होकर जीवन का कल्याण करें !

भगवान श्रीकृष्ण ने दुष्ट कौरवों को पराजित कर धर्मराज्य स्थापित किया । कलियुग में भी श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने धर्मसंस्थापना का महान कार्य आरंभ किया है । जिस प्रकार श्रीराम के कार्य में सहभागी होकर वानरसेना ने स्वयं का उद्धार किया, उसी प्रकार परात्पर गुरु डॉक्टरजी के धर्मस्थापक दैवीय कार्य में सहभागी होकर जीवन का कल्याण कर लें !’

‘ऑनलाइन’ गुरुपूर्णिमा महोत्सव २०२१

गुरुपूर्णिमा पर १,००० गुना सक्रिय रहनेवाले गुरुतत्त्व का लाभ सभी को मिले, इसलिए ‘ऑनलाइन’ गुरुपूर्णिमा महोत्सव का आयोजन कर रहे हैं । सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा ‘ऑनलाइन’ गुरुपूर्णिमा महोत्सव हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती, मराठी, कन्नड, तमिल, तेलुगु, मलयालम, बांग्ला, पंजाबी, ओडिया, इन ११ भाषाओं में है ।

अर्पणदाताओे, गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में धर्मकार्यार्थ धन अर्पण कर गुरुतत्त्व का लाभ लें !

गुरुपूर्णिमा पर गुरुतत्त्व एक सहस्र गुना कार्यरत होता है । इसलिए गुरुपूर्णिमा के निमित्त गुरुकार्य के लिए त्याग करना साधना की दृष्टि से एक हजार गुना लाभदायक सिद्ध होता है ।

गुरु-शिष्य परंपरा का संवर्धन करें !

गुरुपूर्णिमा के दिन सदा की तुलना में गुरुतत्त्व (ईश्वरीय तत्त्व) १ सहस्र गुना कार्यरत होता है । इसलिए गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में की गई सेवा एवं त्याग (सत् के लिए अर्पण) का अन्य दिनों की तुलना में १ सहस्र गुना लाभ होता है ।

‘मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं ।’, के अनुसार जिनका प्रत्येक वाक्य और शब्द मंत्र की भांति कार्य करता है’, ऐसे सनातन के साधकों के लिए संजीवनी बने ३ महान गुरु !

आजकल कोरोना विषाणु के कारण भारत एवं विश्व के सभी देशों में हाहाकार मचा हुआ है । मनुष्य का शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन बाधित हो गया है । एक विषाणु ने विज्ञान में प्रगत मनुष्य को असहाय बना दिया है

साधना का महत्त्व

‘साधना करने से हिन्दू धर्म का महत्त्व समझ में आता है तथा हिन्दू धर्म समझ में आने पर ही वास्तव में समाज, राष्ट्र तथा धर्म का कल्याण करने हेतु प्रयत्न हो पाते हैं ।’

गुरुपूर्णिमा पर वर्णसुमन रचित अभिनंदन !

श्री : श्री हैं आप, श्रीहरि के सगुण अवतार हैं आप श्रीमन्,
श्री : श्रेष्ठतम साधना का उपहार दिया है हमें आपने श्रीमन्,

प.पू. भक्‍तराज महाराजजी के १०१ वें जन्‍मोत्‍सव के उपलक्ष्य में उनके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !

प.पू. भक्‍तराज महाराजजी का मूल नाम श्री. दिनकर सखाराम कसरेकर था । गुरुप्राप्‍ति के उपरांत श्रीगुरु ने अर्थात प.पू. श्री अनंतानंद साईशजी ने उनकी भक्‍ति देखकर उनका नामकरण ‘भक्‍तराज’ किया ।