साधनाके तीन प्रकार

।। श्रीकृष्णाय नमः ।।

अध्यात्मविषयक बोधप्रद ज्ञानामृत…

पू. अनंत आठवले

     साधनाके तीन प्रकार पाये जाते हैं । क्रिया-आधारित, भाव-आधारित, बुद्धि-आधारित ।

१. क्रिया-आधारित

     जप, पूजा, आरती, भजन, स्तोत्रपठण आदि । ये सभी साधनाएं इंद्रियोंकी क्रियाओंसे संबद्ध हैं । भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं –

‘इंद्रियाणि पराण्याहुः ।’ – श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ३, श्लोक ४२

अर्थ : ‘इंद्रियां श्रेष्ठ कही गयी हैं ।’

     इंद्रियोंको श्रेष्ठ इसलिये कहा है कि हम सभी बाह्य क्रियाएं इंद्रियोंकी सहायतासे ही कर सकते हैं। किन्तु साधनामें ये क्रियाएं बार बार दोहरानी पडती हैं ।

     इन साधनाओंमें सीधे चित्तशुद्धिके प्रयास नहीं किये जाते, किंतु परिणामस्वरूप चित्तशुद्धि हो सकती है ।

२. भाव-आधारित

     ईश्वरके प्रति श्रद्धा, विश्वास, प्रेम आदि भाव मनके, मनमें होते हैं । भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं –

‘इंद्रियेभ्यः परं मनः ।’ – श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ३, श्लोक ४२

अर्थ : ‘इंद्रियोंसे मन श्रेष्ठ है ।’

     किन्तु भाव मनकी अवस्था होनेसे अनित्य होते हैं । भाव निरंतर नहीं रहते, तो आते जाते हैं । भाव घटते बढते रहते हैं । मन अविरत उत्कट भावावस्थामें नहीं रहता ।

     इन साधनाओंमें सीधे चित्तशुद्धिके प्रयास नहीं किये जाते, किंतु परिणामस्वरूप चित्तशुद्धि हो सकती है ।

३. बुद्धि-आधारित

     यह साधना विवेकपर आधारित है । इसमें नित्यानित्यवस्तुविवेक, वैराग्य, षट्संपत्ति (दम, शम, उपरति, तितिक्षा, श्रद्धा, समाधान) और मुमुक्षुत्व आता है । भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं –

‘मनसस्तु परा बुद्धिः ।’ – श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ३, श्लोक ४२

अर्थ : ‘मनसे बुद्धि श्रेष्ठ है ।’

     इस साधनामें इंद्रियोंकी क्रियाओंका अथवा मनके भावोंका आधार नहीं लेना पडता; ईश्वरकी प्रतिमा, नाम, गुण-रूप आदिके स्मरणका आधार नहीं लेना पडता । यह साधना बुद्धिपर आधारित है । चित्तशुद्धिकी आवश्यकता समझकर ज्ञानमार्गमें सीधे चित्तशुद्धिके प्रयास किये जाते हैं ।

३ अ. बोध : इस साधनाकी परिपूर्णता होनेपर उस नित्य तत्त्वकी प्रचीति होती है, अनुभूति होती है; अपनी आत्माके स्वरूपका, ब्रह्मस्वरूपका बोध होता है । भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं –

‘यो बुद्धे: परतस्तु स: ।’

अर्थ : ‘जो बुद्धिसे श्रेष्ठ है, वह आत्मा (ब्रह्म) है ।’

– श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ३, श्लोक ४२

     ‘इंद्रियाणि पराण्याहुः इंद्रियेभ्यः परं मनः ।
मनसस्तु परा बुद्धिः यो बुद्धेः परतस्तु सः ।।’

– श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ३, श्लोक ४२

अर्थ : ‘इंद्रियां श्रेष्ठ कही जाती हैं । इंद्रियोंसे मन श्रेष्ठ है । मनसे बुद्धि श्रेष्ठ है । जो बुद्धिसे श्रेष्ठ है, वह आत्मा (ब्रह्म) है ।’

– अनंत आठवले (२७.४.२०२१)

(संदर्भ : शीघ्र सनातन संस्था प्रकाशित करनेवाले ‘पू. अनंत आठवले लिखित ‘अध्यात्मशास्त्राच्या विविध अंगांचा बोध’ इस मराठी ग्रंथा से)

।। श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।।