साधको, आध्यात्मिक प्रगति में प्रमुख अडचन के अहं युक्त विचारों से बाहर निकलने के लिए कठोर प्रयास करें !

साधना में स्वभावदोष एवं अहं के निर्मूलन की प्रक्रिया को अनन्यसाधारण महत्त्व है । ‘साधना में हमारे मन की विचारप्रक्रिया उचित दिशा में हो रही है न ?’, इसका अंतर्मुखता से चिंतन करना आवश्यक होता है ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी संबंधी ग्रंथमाला

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजीकी गुरुसे हुई भेंट एवं उनका गुरुसे सीखना’ इस ग्रंथ मे पढिये सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजीके प्रथम ग्रन्थ ‘अध्यात्मशास्त्र’ से अधिक चैतन्य प्रक्षेपित होता है, यह दर्शानेवाला वैज्ञानिक परीक्षण

परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के छायाचित्रों में दिखाई देनेवाली उनकी असामान्य आध्यात्मिक विशेषताएं और उनका शास्त्र !

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के वर्ष २००८ से २०२१ के ६ छायाचित्र आगे दिए हैं । इस छायाचित्र में उनका चेहरा एवं मान की त्वचा, आंखें, चेहरे के भाव आदि १ से २ मिनट तक देखें । इससे विशेषतापूर्ण अनुभव होता है क्या ?’, इसका अध्ययन करें । सभी छायाचित्र की एक समान विशेषताएं एवं प्रत्येक छायाचित्र के निरालेपन का भी अध्ययन करें ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कक्ष की दीवार पर प्रकाश के कारण दिख रहे सप्तरंग

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ‘विश्वगुरु’ हैं । इसलिए उनमें विश्व की समस्त दैवी शक्तियां और सप्तदेवताओं के तत्त्व आवश्यकता के अनुसार प्रकट होकर इच्छा, क्रिया और ज्ञान, इन तीन स्तरों पर कार्यरत होते हैं ।

साधको, ‘अनल संवत्सर’ अर्थात तीनों गुरुओं के प्रति ‘समर्पण’ एवं ‘शरणागति’ का वर्ष होने से इस अवधि में समर्पण भाव एवं शरणागत भाव बढाने के प्रयास करें !

‘अब आरंभ हुए अनल संवत्सर में गुरुभक्ति बढाने के लिए क्या प्रयास कर सकते हैं ?’, यह हम देखेंगे ।

साधना करने के लिए अध्यात्म की जानकारी होना आवश्यक !

‘अध्यात्म’ एवं ‘साधना’ एक सिक्के के दो पहलू समान हैं । अध्यात्म उचित ढंग से समझने पर, साधना अच्छी कर सकते हैं और साधना अच्छी समझ में आने पर आगे आध्यात्म समझ में आता है ।

सद्गुरु डॉ. वसंत बाळाजी आठवलेजी की पू. शिवाजी वटकर द्वारा ली भेंटवार्ता श्रीराम समान आदर्श एवं सर्वगुण संपन्न सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी !

सद्गुरु डॉ. वसंत बाळाजी आठवले (ती. अप्पाकाका, सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के बडे भाई) की पू. शिवाजी वटकर द्वारा ली भेंटवार्ता यहां प्रकाशित कर रहे हैं ।

देवद (पनवेल) के सनातन आश्रम की तत्त्वनिष्ठ और पूरे मन से सेवा करनेवाली पू. (सुश्री (कु.)) रत्नमाला दळवी (आयु ४४ वर्ष) के सम्मान समारोह का भाववृत्तांत !

संतपद घोषित किए जाने पर मुझे परात्पर गुरुदेवजी और श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदाजी सिंगबाळ के अस्तित्व का अनुभव हो रहा था । –  पू. (सुश्री (कु.)) रत्नमालाजी

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी द्वारा वर्ष २००२ से अध्यात्मप्रसार करने की अपेक्षा हिन्दू राष्ट्र के लिए कार्य करने के लिए प्रधानता देने का कारण !

साधकों को व्यष्टि साधना करते समय ‘मेरी आध्यात्मिक उन्नति हो रही है या नहीं ?’, इस विचार में संलिप्त होने की अपेक्षा यह विचार करना चाहिए कि ‘क्या मैं समष्टि साधना के लिए अधिकाधिक प्रयास कर रहा हूं न ?’

साधको, साधना के आनंद की तुलना किसी भी बाह्य सुख से नहीं हो सकती, इसलिए साधना के प्रयत्न लगन से करें एवं खरा आनंद अनुभव करें !

साधकों के मन में माया के विचारों की तीव्रता एवं बारंबारता अधिक हो, तो वे इसके लिए स्वसूचना लें । अनिष्ट शक्तियों के कष्ट के कारण ऐसे विचार बढने पर नामजपादि आध्यात्मिक उपचार बढाएं ।