सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के निवास-कक्ष में प्रकाश आनेवाली दीवार पर सप्तरंग दिखाई देने का अध्यात्मशास्त्र !
‘रामनाथी (गोवा) स्थित सनातन आश्रम में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी जिस कक्ष में निवास करते थे, उस कक्ष के छज्जे पर स्थित द्वार के झरोखे से पश्चिमी दीवार पर प्रकाश आता है । इस प्रकाश के कारण दीवार पर सप्तरंग दिखाई देते हैं । दिनांक २४.३.२०२१ को उसके छायाचित्र खींचे गए । दीवार पर सप्तरंग दिखाई देने का अध्यात्मशास्त्र आगे दिए अनुसार है ।
१. सप्तदेवताओं के तत्त्व परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के माध्यम से कार्यरत होना
१ अ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का विश्वव्यापी कार्य करने के लिए सप्तदेवताओं के तत्त्व इच्छा, क्रिया और ज्ञान, इन तीन स्तरों पर कार्यरत होना : परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ‘विश्वगुरु’ हैं । इसलिए उनमें विश्व की समस्त दैवी शक्तियां और सप्तदेवताओं के तत्त्व आवश्यकता के अनुसार प्रकट होकर इच्छा, क्रिया और ज्ञान, इन तीन स्तरों पर कार्यरत होते हैं ।
१ अ १. विविध प्रकार की शक्तियों से संबंधित रंगछटा
१ आ. सप्तदेवताओं के तत्त्व श्रीविष्णु भगवान के धर्मसंस्थापना के कार्य को सहायता करने के लिए विविध प्रकार के तेज के रूप में प्रकट होकर कार्यरत होना : परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ‘धर्मगुरु’ हैं । पृथ्वी पर स्थूल एवं सूक्ष्म हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने के लिए उनके माध्यम से भगवान श्रीविष्णु का अवतारी तत्त्व कार्यरत होता है । इस अवतारी कार्य की पूर्ति करने के लिए सनातन संस्था और उससे संलग्न संस्थाओं के साधकों को सप्तदेवताओं के कृपाशीर्वाद मिलते हैं । इसलिए धर्मप्रसार और धर्मसंस्थापना आदि कार्य करते समय विष्णुस्वरूप परात्पर गुरुदेवजी को सप्तदेवताओं का समर्थन मिलता है और उनकी तत्त्वतरंगें सनातन के आश्रम, सेवाकेंद्र और जहां-जहां धर्मकार्य चलता है, वहां-वहां आशीर्वाद स्वरूप में कार्यरत होती हैं । देवताओं की तत्त्वतरंगें परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी में आवश्यकता के अनुसार विविध प्रकार के तेज के रूप में प्रकट होकर कार्यरत होती हैं ।
१ आ १. विविध प्रकार के तेज का रंग
१ इ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के माध्यम से विविध योगमार्गाें के अनुसार साधना करनेवाले साधकों को मार्गदर्शन करने के लिए सप्तदेवताओं के तत्त्व कार्यरत होना : परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी मोक्षगुरु हैं । इसलिए वे साधकों को उनके योगमार्ग के अनुसार व्यष्टि और समष्टि स्तर की साधना करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं । तब परात्पर गुरुदेवजी के माध्यम से सप्तदेवताओं की तत्त्वतरंगें कार्यरत होकर साधकों की विशिष्ट योगमार्ग के अनुसार आध्यात्मिक उन्नति होने के लिए सहायता करती हैं ।
१ इ १. विविध योगमार्गाें से संबंधित देवता और उनका सूक्ष्म रंग
१ ई. सनातन संस्था और उससे संबंधित संस्थाओं के साधक धर्मसंस्थापना के कार्य में सम्मिलित होने के कारण साधक एवं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की अनिष्ट शक्तियों से रक्षा करने हेतु सप्तदेवताओं के तत्त्व कार्यरत होना : सनातन संस्था और उससे संबंधित संस्थाओं के साधक धर्मसंस्थापना के कार्य में सम्मिलित होने के कारण साधक और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के स्तर पर पाताल की बडी अनिष्ट शक्तियां सूक्ष्म आक्रमण करती हैं । उनकी अनिष्ट शक्तियों से रक्षा करने के लिए सप्तदेवताओं के तत्त्व पृथ्वी पर स्थित विविध आश्रम, सेवाकेंद्र और साधकों के घरों में कार्यरत होते हैं तथा उनसे प्रक्षेपित मारक शक्ति के कारण अनिष्ट शक्तियों का नाश होकर साधकों की रक्षा होती है ।
१ उ. १४ विद्या, ६४ कला और ६ शास्त्रों के संदर्भ में मार्गदर्शन करने के लिए सप्तदेवताओं के तत्त्व परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के माध्यम से कार्यरत होना : सनातन संस्था और उससे संबंधित संस्थाओं के साधकों को १४ विद्या, ६४ कला और ६ शास्त्रों के संदर्भ में मार्गदर्शन करने के लिए सप्तदेवताओं के तत्त्व परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के माध्यम से कार्यरत हुए
हैं । इसलिए विविध कलाओं और विद्या की रक्षा होकर कलाकार साधकों की कला के माध्यम से साधना होकर उनका मार्गक्रमण ईश्वरप्राप्ित की दिशा में हो रहा है ।
२. सप्तरंगों से संबंधित सप्तदेवताओं के तत्त्व, उनका आविष्कार और उनका सूक्ष्म स्तर पर होनेवाला कार्य
जब सप्तदेवताओं की तत्त्वतरंगें परात्पर गुरुदेवजी की देह में कार्यरत होती हैं, तब उनकी देह की त्वचा, केश एवं नखों में दैवी परिवर्तन होकर उनपर विविध रंगों की छटाएं आती हैं । उसी प्रकार जब देवताओं की तत्त्वतरंगें परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कक्ष में कार्यरत होती हैं, तब उनके कक्ष की दीवार पर विविध रंगों की छटाएं दिखाई देती हैं । जब ब्रह्मांड से परात्पर गुरुदेवजी के कक्ष में विविध देवताओं की तरंगें आती हैं, तब उनके कक्ष में विविध रंगों की प्रकाशकिरणें आती दिखाई देती हैं । सप्तरंगों में तांबिया, नारंगी, पीला, हरा, नीला, गहरा नीला और जामुनी, ये सात रंग कार्यरत होते हैं । इन सप्तरंगों से संबंधित देवताओं के तत्त्व आगे दिए अनुसार हैं ।
२ अ. सप्तरंगों की छटाओं के माध्यम से कार्यरत सप्तदेवताओं के तत्त्व
कृतज्ञता
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कक्ष में सप्तदेवताओं की तत्त्वतरंगें कार्यरत होने के कारण उनके कक्ष में आनेवाले प्रकाश में पश्चिमी दीवार पर सप्तरंग दिखाई देते हैं । इससे परात्पर गुरुदेवजी का कार्य कितना अवतारी एवं दिव्य स्वरूप का है एवं इस कार्य को ब्रह्मांड की समस्त दैवी शक्तियां सहायता करती हैं, इसकी प्रतीति होती है । इसके लिए श्री गुरुदेवजी के चरणों में कोटिशः कृतज्ञ हूं ।’
– कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्म से प्राप्त ज्ञान) (आध्यात्मिक स्तर ६४ प्रतिशत), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२३.५.२०२२)
बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं । अनिष्ट शक्ति के कष्ट के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपाय वेदादी धर्मग्रंथों में वर्णित हैं । सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रिय हैैं । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है । |