भूलकर देहभान रंग जाएं हरि के रंग । आनंद के सागर में उठी भक्ति की तरंग ।।

श्रीविष्णु स्वरूप सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की कृपा से संपन्न हुआ यह दिव्य एवं भव्य ‘ब्रह्मोत्सव’ इसी देह और इन्हीं नेत्रों से देखने का महत्भाग्य साधकों को मिला’, इसके लिए हे ईश्वर आपके चरणों में अनन्य भाव से कृतज्ञता ! कृतज्ञता !! कृतज्ञता !!!

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के चरणों में मान्यवरों द्वारा अर्पित कृतज्ञता सुमन !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ब्रह्मोत्सव में अनेक मान्यवर उपस्थित थे । समारोह में व्यक्त किए गए भावपूर्ण मनोगत ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के विषय में संतों द्वारा व्यक्त किए गए गौरवोद्गार

‘जो ब्रह्म को जानता है, वह स्वयं ही ब्रह्म बन जाता है’, वेदों में वर्णित यह वाक्य सार्थ करनेवाले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी ! – पू. डॉ. शिबनारायण सेन

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का ‘ब्रह्मोत्सव’ मनाने के विषय में सप्तर्षियों द्वारा पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से बताई गई महिमा !

‘२३.२.२०२३ को सप्तर्षि नाडीपट्टिका के वाचक पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से हुए नाडीवाचन क्रमांक २२२ में ‘वर्ष २०२३ में गुरुदेवजी का जन्मोत्सव किस प्रकार मनाया जाए ?’, इस विषय में सप्तर्षियों द्वारा बताई गई महिमा आगे दे रहे हैं ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ब्रह्मोत्सव में ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के साधकों ने नृत्यादि सेवाओं द्वारा श्रीविष्णु की भावपूर्ण आराधना की !

रथारूढ महाविष्णु का गायन, वादन एवं नृत्य द्वारा महिमा का गुणगान ही ब्रह्मोत्सव ! श्रीविष्णु रूप में रथ में विराजमान सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के श्रीचरणों में इस ब्रह्मोत्सव के उपलक्ष्य में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के साधकों द्वारा कला के माध्यम से भाव अर्पण किया ।

आनेवाले भक्तों का सर्व प्रकार से ध्यान रखनेवाला ब्रह्मोत्सव समारोह का प्रबंधन एवं सनातन के साधकों के स्व-अनुशासन के हुए दर्शन !

ब्रह्मोत्सव के लिए महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक आदि राज्यों के १० सहस्र से अधिक साधक आए थे । वाहनतल के साथ ही कुल १३ एकड क्षेत्र में संपूर्ण समारोह की व्यवस्था की गई थी । साधक भाव की स्थिति में एवं बिना किसी अडचन के ब्रह्मोत्सव अनुभव कर सकें, इसलिए ब्रह्मोत्सव स्थल पर साधकों की उत्तम व्यवस्था की गई थी ।

देह प्रारब्ध पर छोडकर चित्त को चैतन्य से जोडनेवाले श्री. सत्यनारायण रामअवतार तिवारी (आयु ७४ वर्ष) सनातन के १२४ वें संतपद पर विराजमान

पू. सत्यनारायण तिवारीजी गत २ वर्ष से बीमार हैं, इसलिए उन्हें सतत लेटे रहना पडता है । ऐसी स्थिति में भी उन्होंने आंतरिक साधना के बल पर सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की कृपा से संतपद प्राप्त किया ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी द्वारा विशद ‘अष्टांग साधना’, उसका क्रम एवं पंचमहाभूतों से संबंध

अष्टांग साधना में स्वभावदोष-निर्मूलन (एवं गुणसंवर्धन), अहं-निर्मूलन, नामजप, भावजागृति, सत्संग, सत्सेवा, त्याग एवं प्रीति यह ८ चरण हैं | यह साधना का क्रम सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने विशद किया है, वह विशेषतापूर्ण है

साधको, ‘प्रतिमा बनाए रखना’ इस अहं के पहलू के कारण स्वयं की चूकें छुपाकर भगवान के चरणों से दूर जाने की अपेक्षा प्रामाणिकता से चूकें स्वीकार कर ईश्वरप्राप्ति की दिशा में अग्रसर हों !

ईश्वर का हमारे प्रत्येक कृत्य की ओर ध्यान रहता है । ‘जो पापी स्वयं का पाप सारे विश्व को चीखकर बताता है, वही महात्मा बनने की योग्यता का होता है’, यह दृष्टिकोण रखकर साधकों द्वारा प्रयास होना अपेक्षित है ।

‘अनिष्ट शक्तियों के कष्टों से रक्षा हो’, इसलिए अस्पताल के रोगी, उसके सगे-संबंधी, डॉक्टर, परिचारिका आदि सभी अधिकाधिक नामजप करें !

नामजपका लाभ उपचार के लिए आए रोगियों को भी अपनेआप होगा । अस्पताल में अन्य रोगियों को भी नामजप का स्मरण करवाएं । नामस्मरण से मनोबल बढता है, मनःशांति मिलती है और जीवन आनंदी बनने में सहायता मिलती है ।