भूलकर देहभान रंग जाएं हरि के रंग । आनंद के सागर में उठी भक्ति की तरंग ।।
श्रीविष्णु स्वरूप सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की कृपा से संपन्न हुआ यह दिव्य एवं भव्य ‘ब्रह्मोत्सव’ इसी देह और इन्हीं नेत्रों से देखने का महत्भाग्य साधकों को मिला’, इसके लिए हे ईश्वर आपके चरणों में अनन्य भाव से कृतज्ञता ! कृतज्ञता !! कृतज्ञता !!!