सद्गुरु डॉ. वसंत बाळाजी आठवलेजी की पू. शिवाजी वटकर द्वारा ली भेंटवार्ता श्रीराम समान आदर्श एवं सर्वगुण संपन्न सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी !

सद्गुरु डॉ. वसंत बाळाजी आठवले (ती. अप्पाकाका, सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के बडे भाई) की पू. शिवाजी वटकर द्वारा ली भेंटवार्ता यहां प्रकाशित कर रहे हैं ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

(यह भेंटवार्ता सद्गुरु डॉ. वसंत आठवलेजी एवं पू. शिवाजी वटकरजी के संत घोषित होने से पूर्व ली गई है, इसलिए इस लेखमाला में संतों के नाम में परिवर्तन नहीं किया है । – संपादक)

सद्गुरु (स्व.) डॉ. वसंत बाळाजी आठवले

१. आध्यात्मिक गुरु के रूप में प.पू. डॉक्टरजी की समझ में आई विशेषताएं

श्री. शिवाजी वटकर : आपके छोटे भाई प.पू. डॉक्टरजी की आध्यात्मिक गुरु के रूप में आपको जो विशेषताएं दिखाई दी हैं, उस संदर्भ में आप बताएं ।

ती. अप्पा काका :

१ अ. प.पू. भक्तराज महाराजजी से भेंट होने पर प.पू. डॉक्टरजी के द्वारा उन्हें तन, मन एवं धन अर्पण कर गुरु-इच्छा से आचरण कर केवल ४ – ५ वर्षाें में संतत्व तथा १० वर्षाें में गुरुपद प्राप्त कर लेना : प.पू. डॉक्टरजी आरंभ में परमेश्वर पर विचार नहीं करते थे । उनके पास चिकित्सा के लिए जो मनोरोगी आते थे, उनमें से कुछ रोगी सम्मोहन-चिकित्सा से स्वस्थ क्यों नहीं होते ? क्या भूतों का अस्तित्व होता है ? इत्यादि विषयों की जिज्ञासा के कारण वे सद्गुरु की खोज में थे । वर्ष १९८७ में प.पू. डॉक्टरजी की प.पू. भक्तराज महाराजजी से भेंट होने पर प.पू. डॉक्टरजी संपूर्ण रूप से उनकी शरण में चले गए । उन्होंने प.पू. भक्तराज महाराजजी को अपना तन, मन एवं धन अर्पण कर गुरु-इच्छा से आचरण कर केवल ४ – ५ वर्षाें में संतत्व तथा केवल १० वर्षाें में ही परात्पर गुरुपद प्राप्त कर लिया ।

१ आ. प.पू. डॉक्टरजी की तीव्र गति से आध्यात्मिक उन्नति करानेवाले ‘गुरुकृपायोग’ की निर्मिति करना तथा ‘ज्ञानयोग से भक्तियोग तथा भक्तियोग से गुरुकृपायोग श्रेष्ठ है’, इसे प्रमाणित करना : आध्यात्मिक प्रगति होने के लिए गुरु का महत्त्व अनन्य है, यह समझकर प.पू. डॉक्टरजी ने भक्तियोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग, ध्यानयोग एवं हठयोग की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ, अधिक सरल एवं सबसे तीव्र गति से आध्यात्मिक उन्नति करनेवाले ‘गुरुकृपायोग’ का शोध किया । उन्होंने ‘अध्यात्म में ज्ञानयोग से भक्तियोग तथा भक्तियोग से गुरुकृपायोग श्रेष्ठ है’, यह प्रमाणित किया ।

१ इ. प.पू. भक्तराज महाराजजी ने अध्यात्म का अध्ययन नहीं किया था; परंतु प.पू. डॉक्टरजी द्वारा उनसे पूछे गए प्रश्न का उन्होंने सहजता से उत्तर दिया : प.पू. भक्तराज महाराजजी ने अध्यात्म का अध्ययन नहीं किया था । वे गुरुचरित्र का पाठ करते थे । उनका पूर्वाश्रम का जीवन संपूर्णतया व्यावहारिक एवं किसी व्यवसायी की भांति होते हुए भी, जब वे सद्गुरु अनंतानंद साईशजी के सान्निध्य में आए, तब उन्होंने बहुत मन से एवं भावपूर्ण रूप से गुरु की अहर्निश (दिन-रात) सेवा कर केवल १८ महिनों में ही संतपद एवं गुरुपद प्राप्त कर लिया । प.पू. डॉक्टरजी जब उनसे कोई आध्यात्मिक प्रश्न पूछते, तब वे उसका सहजता से उचित उत्तर देते थे ।

१ ई. गुरुकृपायोग के अनुसार साधना बताकर सामान्य जीवों की तीव्र गति से आध्यात्मिक उन्नति करा लेना

अ. जनमानस पर साधना का अर्थात समाज, राष्ट्र एवं धर्म के लिए निष्काम सत्कार्य करने का महत्त्व अंकित करनेवाले प.पू. डॉक्टरजी प्रथम ही परात्पर गुरु हैं । ‘समष्टि साधना के साथ प्रत्येक साधक की व्यक्तिगत साधना तथा उसकी आध्यात्मिक उन्नति उचित पद्धति से हो रही है न’, इसकी ओर प.पू. डॉक्टरजी का निरंतर ध्यान होता है ।

१ उ. धर्म एवं ईश्वरीय राज्य की स्थापना के लिए महर्लाेक के उन्नत जीव सनातन के साधकों के यहां जन्म ले रहे हैं । (‘२०.७.२०२२ तक २०७ बालसाधक महर्लाेक से पृथ्वी पर जन्मे हैं ।’- संकलनकर्ता)

१ ऊ. आनेवाले कुछ वर्षाें में जन एवं तप लोकों से और अधिक उन्नत जीव जन्म लेकर ईश्वरीय राज्य की स्थापना कर उसका दायित्व संभालेंगे । (बालसंत  ‘पू. भार्गवराम भरत प्रभु (आयु ५ वर्ष) एवं पू. वामन अनिरुद्ध राजंदेकर (आयु ४ वर्ष) जनलोक से पृथ्वी पर जन्मे हैं ।’ – संकलनकर्ता)

पू. शिवाजी वटकर

२. श्रीराम समान आदर्श एवं सर्वगुण संपन्न प.पू. डॉक्टरजी !

श्री. शिवाजी वटकर : अनेक साधकों को प.पू. डॉक्टरजी में श्रीराम एवं श्रीकृष्ण के दर्शन होते हैं । इस विषय में आपको क्या कहना है ?

ती. अप्पा काका :

२ अ. आदर्श पुत्र : प.पू. डॉक्टरजी ने ती. दादा (पिता, वर्तमान में प.पू. [स्व.] बाळाजी आठवले) एवं ती. ताई (माता, वर्तमान में पू. [स्व.] श्रीमती नलिनी आठवले) को अंतिम १० – १५ वर्ष मुंबई में अपने घर पर रखकर उनकी स्वयं सेवा की । कुछ समय पश्चात सनातन संस्था का कार्य बढने पर संस्था के साधकों द्वारा ताई-दादा की सेवा करवा ली ।

२ आ. आदर्श बंधु : मैं और मेरा भाई अनंत (वर्तमान में पू. अनंत बाळाजी आठवले) एवं उनकी पत्नी श्रीमती सुनीती (मेरी भाभी) गोवा के रामनाथी आश्रम में वास्तव्य के समय ‘हमारी सभी व्यवस्था ठीक से हो रही है न ?’, इस ओर प.पू. डॉक्टरजी का पूरा ध्यान रहता था । दोपहर और रात को हम एक साथ भोजन करते थे । उस समय प्रत्येक की रुचि-अरुचि पर उनका पूरा ध्यान रहता था । मेरे छोटे भाई (स्व.) डॉ. सुहास एवं डॉ. विलास का भी उन्होंने बडे भाई समान ध्यान रखा । प.पू. डॉक्टरजी से मैं १० वर्ष और मेरे छोटे भाई अनंत (वर्तमान में पू. अनंत बाळाजी आठवले) ७ वर्ष बडे होते हुए भी प.पू. डॉक्टरजी ने हमारा बडे भाई समान ध्यान रखा ।

२ इ. आदर्श पिता : प.पू. डॉक्टरजी के अपने बच्चे नहीं हैं, तब भी उन्हें उनके गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी ने आशीर्वाद दिया था कि ‘तुम्हारे अनेक बच्चे होंगे ।’ आज सनातन के सभी साधकों का वे अपने बच्चों समान प्रेम से ध्यान रख रहे हैं । प.पू. डॉक्टरजी को छोटे बच्चे बहुत अच्छे लगते हैं ।

२ ई. समाज के लिए आदर्श गुरु : समाजसेवा अर्थात निर्धनों की सहायता, वृद्धों अथवा रोगियों की सेवा, अन्य संत करते ही हैं । वह पुण्यकर्म है; परंतु समाज को धर्माचरण एवं नामजप इत्यादि साधना सिखाकर, उन्हें ऐहिक एवं पारलौकिक जीवन में अधिक सुख और समाधान देने का महान कार्य प.पू. डॉक्टरजी ही कर रहे हैं । प.पू. डॉक्टरजी के विषय में सभी साधकों को अनेक आध्यात्मिक अनुभूतियां हुई हैं । प्रतिदिन दैनिक ‘सनातन प्रभात’ के २ पृष्ठ इन्हीं आध्यात्मिक अनुभूतियों से भरे होते हैं । प.पू. डॉक्टरजी साधकों के घर के सदस्यों की बडी आत्मीयता से पूछताछ करते हैं । प.पू. डॉक्टरजी भू, भुवर्, स्वर्ग, महर्, जन एवं तपस्, इन लोकों तक के (उन्नत) जीवों का मार्गदर्शन करते हैं । प.पू. डॉक्टरजी के संकल्प के कारण अनेक साधकों को सूक्ष्म से ज्ञान मिल रहा है ।

२ उ. आदर्श शिष्य : प.पू. डॉक्टरजी द्वारा संकलित ‘शिष्य’ नामक ग्रंथ में ‘प.पू. डॉक्टरजी ने शिष्यावस्था में कैसे प.पू. भक्तराज महाराज की सेवा कर गुरुत्व प्राप्त कर लिया’, इसका वर्णन है । ‘आदर्श शिष्य कैसा होना चाहिए ?’, यह उन्होंने अपने ही उदाहरण से सभी के सम्मुख प्रस्तुत किया है ।

२ ऊ. आदर्श राष्ट्रभक्त : त्रेतायुग में श्रीराम ने आदर्श शासन किया । प.पू. डॉक्टरजी कलियुग में वर्ष २०२५ के उपरांत रामराज्य की स्थापना करनेवाले हैं । हिन्दू राष्ट्र नहीं, अपितु धर्मराज्य, अर्थात ईश्वरीय राज्य की स्थापना करने की संकल्पना प.पू. डॉक्टरजी की ही है और उसे साकार करने के लिए वे साधकों के माध्यम से सतत प्रयत्नशील हैं ।

२ ए. आदर्श जगद्गुरु : विश्वकल्याण के लिए अनेक ग्रंथ लिखकर भूतल पर, इसके साथ ही १४ लोकों के (सप्तलोक एवं सप्तपाताल के) जीवों को आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग दिखानेवाले प.पू. डॉक्टरजी ही हैं । विश्वशांति का शाश्वत मार्ग दिखानेवाले प.पू. डॉक्टरजी ही हैं ।

२ ऐ. आदर्श योद्धा : स्थूल से लडना अर्थात शरीर से लडना सरल है । प.पू. डॉक्टरजी सूक्ष्म से सातों पाताल की बडी-बडी अनिष्ट शक्तियों के साथ सहजता से लड सकते हैं । बडी अनिष्ट शक्तियों को भी उनसे भय लगता है । अपनी प्रेरणा और सीख से वे साधकों में क्षात्रतेज निर्माण करते हैं ।

२ ओ. क्षात्रतेज एवं ब्राह्मतेज का अद्भुत संगम होना : सनातन के ग्रंथों द्वारा ब्रह्मज्ञान का प्रसार करनेवाले एवं अनिष्ट शक्तियों के विरुद्ध सूक्ष्म से लडने की प्रेरणा देनेवाले प.पू. डॉक्टरजी ही हैं ।

२ औ. प.पू. डॉक्टरजी के प्रति व्यक्त की गई कृतज्ञता 

श्री. शिवाजी वटकर : क्या आपको और कुछ कहना है ?

ती. अप्पाकाका : आश्रम के और अन्य साधकों के गुण एवं उनकी होनेवाली शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति देखकर मुझे आनंद होता है । अब मुझे समझ में आ रहा है कि मुझे संसार में न अटकते हुए अनेक वर्षाें पूर्व ही अपने समस्त परिवार सहित (पत्नी श्रीमती विजया वसंत आठवले, बडी सुपुत्री डॉ. (श्रीमती) श्रद्धा महेश गांधी (मायके का नाम कु. कला वसंत आठवले), मझली पुत्री डॉ. (श्रीमती) कविता प्रशांत देवस्थळी (मायके का नाम कु. कविता वसंत आठवले) और छोटे पुत्र डॉ. कमलेश वसंत आठवले के साथ) पूर्णकालिक साधक होना चाहिए था ।

३. कृतज्ञता

मेरे पूर्व जन्म के पुण्यकर्म और परम सौभाग्य से मुझे इस जन्म में प.पू. डॉक्टरजी समान भाई मिला, इसका मुझे गर्व है । मुझे बहुत देर से इसका भान हुआ और वह भी गुरुवर्य प.पू. डॉक्टरजी की कृपा से ही !

– सद्गुरु (स्व.) डॉ. वसंत बाळाजी आठवले (परात्पर गुरु डॉक्टरजी के सबसे ज्येष्ठ बंधु)