परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के छायाचित्र की ओर देखकर ‘कुछ विशेषतापूर्ण अनुभव होता है क्या ?’, इसका अध्ययन करें !‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के वर्ष २००८ से २०२१ के ६ छायाचित्र आगे दिए हैं । इस छायाचित्र में उनका चेहरा एवं मान की त्वचा, आंखें, चेहरे के भाव आदि १ से २ मिनट तक देखें । इससे विशेषतापूर्ण अनुभव होता है क्या ?’, इसका अध्ययन करें । सभी छायाचित्र की एक समान विशेषताएं एवं प्रत्येक छायाचित्र के निरालेपन का भी अध्ययन करें । |
प्रयोग का उत्तर
१. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के छायाचित्रों की आध्यात्मिक विशेषताएं और उनका शास्त्र
१ अ. छायाचित्र सजीव प्रतीत होना : इन छायाचित्रों की ओर केवल सामने से ही नहीं, अपितु किसी भी दिशा से देखने पर ‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी हमारी ओर देखते हुए प्रतीत होते हैं । उनका सिर और कंधे भी हमारी दिशा में घूमते प्रतीत होते हैं ।
१ अ १. शास्त्र : छायाचित्र सजीव प्रतीत होना परात्पर गुरु डॉक्टरजी के चैतन्य में वृद्धि का दर्शक है ।
१ आ. प्रत्यक्ष आयु की अपेक्षा आयु अल्प प्रतीत होना : सामान्य व्यक्ति में आयु के अनुसार दिखाई देनेवाली त्वचा की झाइयां, गालों की लटकी हुई त्वचा, दीर्घकाल तक बीमारी अथवा थकान की मुखमंडल पर दिखाई देनवाली छटा, आयु के कारण आंखों में दिखाई देनेवाली थकान आदि परात्पर गुरु डॉक्टरजी में प्रतीत नहीं होते । (वर्ष २०२२ में भी उक्त लक्षण परात्पर गुरु डॉक्टरजी में दिखाई नहीं देते । इसके विपरीत, दिन-प्रतिदिन उनकी त्वचा अधिकाधिक चमक रही है, ऐसा छायाचित्रों में भी दिखाई देता है । उनका मुखमंडल अधिकाधिक तेजस्वी और ताजगी भरा दिखाई देता है । उनकी प्रत्यक्ष आयु की अपेक्षा उनकी आयु अल्प प्रतीत होती है ।)
१ आ १. शास्त्र : परात्पर गुरु डॉक्टरजी के मुखमंडल के परिवर्तन उनके बढे हुए तेजतत्त्व के दर्शक हैं ।
१ इ. दृष्टि निर्गुण में है, ऐसा प्रतीत होता है : छायाचित्र देखते समय ‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी शून्य में देख रहे हैं अथवा उनकी दृष्टि निर्गुण में है, ऐसा प्रतीत होता है । वर्ष २०१४ के पश्चात के छायाचित्रों में यह मात्रा बढती हुई प्रतीत होती है ।
१ इ १. शास्त्र : परात्पर गुरु डॉक्टरजी में निर्गुण तत्त्व बढने का यह दर्शक है ।
१ ई. अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण के कारण बीमार होकर भी परात्पर गुरु डॉक्टरजी के मुखमंडल पर तेज प्रतीत होना : परात्पर गुरु डॉक्टरजी समष्टि के कल्याण के लिए ईश्वरीय राज्य की स्थापना हेतु अविरत कार्यरत हैं । इसके विपरीत अनिष्ट शक्तियों को पृथ्वी पर सर्वत्र ‘आसुरी राज्य’ स्थापित करना है । इसलिए अनिष्ट शक्तियां परात्पर गुरु डॉक्टरजी के कार्य का विरोध करने के लिए उनपर वर्ष २००० से विविध प्रकार से आक्रमण कर रही हैं । अनिष्ट शक्तियों ने वर्ष २००९ में परात्पर गुरु डॉक्टरजी पर तीव्र आक्रमण किया था, जिससे उनपर महामृत्युयोग का संकट आया था । उसके उपरांत दीर्घकाल तक वे बीमार थे । इसी अवधि में अर्थात वर्ष २०१० में उनकी प्राणशक्ति अत्यंत घट गई थी । अतः उन्हें निरंतर प्रचंड थकान रहती थी । ऐसा होते हुए भी वर्ष २०१० में खींचे गए छायाचित्र में उनके मुखमंडल से वे अधिक बीमार प्रतीत नहीं होते, अपितु उनका मुखमंडल तेजस्वी ही लगता है । वर्ष २०१२ के समय के छायाचित्रों के पश्चात आगामी छायाचित्रों में उनके मुखमंडल पर बीमारी की छटा अल्प होती दिखाई देती है तथा वर्ष २०२१ में खींचे गए छायाचित्रों में तो वह दिखाई भी नहीं देती ।
१ ई १. शास्त्र : परात्पर गुरु डॉक्टरजी के उच्च आध्यात्मिक स्तर तथा उनमें विद्यमान चैतन्य के कारण अनिष्ट शक्तियों ने उनपर किए आक्रमणों के कारण उत्पन्न बीमारी का प्रभाव उनके मुखमंडल पर उतना दिखाई नहीं देता । वर्ष २०१० के उपरांत उन पर अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण बढे हैं, तथापि उनका चैतन्य और तेज भी बढा है । इसलिए आगे के वर्षाें में उनके छायाचित्रों का तेज वर्ष २०१० की तुलना में अधिक प्रतीत हो रहा है तथा उनके मुखमंडल पर दिखाई देनेवाला बीमारी का परिणाम भी अल्प होता दिखाई देता है । वर्ष २०१७ से परात्पर गुरु डॉक्टरजी का निर्गुण तत्त्व भी अधिक मात्रा में बढ रहा है । इसलिए अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों का परात्पर गुरु डॉक्टरजी की स्थूलदेह पर हुआ परिणाम दिखाई देने की मात्रा अल्प होती गई है तथा वर्ष २०२१ के छायाचित्र में वह नगण्य प्रतीत होता है ।
१ उ. वर्ष २०२१ के छायाचित्र में परात्पर गुरु डॉक्टरजी की त्वचा कोमल, मृदु एवं हल्की गुलाबी तथा मुखमंडल निरीह दिखाई देना
१ उ १. मुखमंडल की त्वचा शिशु के समान कोमल और मृदु प्रतीत होती है ।
१ उ १ अ. शास्त्र : परात्पर गुरु डॉक्टरजी में वायुतत्त्व बढने के कारण उनकी त्वचा कोमल और मृदु हो गई है ।
१ उ २. मुखमंडल की त्वचा हलकी गुलाबी दिखाई देती है ।
१ उ २ अ. शास्त्र : परात्पर गुरु डॉक्टरजी की प्रीति के कारण यह परिवर्तन दिखाई देता है ।
१ उ ३. मुखमंडल के भाव शिशु के समान निरीह प्रतीत होते हैं ।
१ उ ३ अ. शास्त्र : परात्पर गुरु डॉक्टरजी की अहंशून्यता के कारण उनके मुखमंडल के भाव शिशु के समान निरीह प्रतीत होते हैं ।
२. परात्पर गुरु डॉक्टरजी देवताओं के चिरयुवा होने की विशेषता से एकरूप होते प्रतीत होना
परात्पर गुरु डॉक्टरजी के छायाचित्रों से उनकी तत्कालीन आयु समझ में नहीं आती । उनकी आयु की अपेक्षा वे युवा प्रतीत होते हैं । चित्रों के देवता भी हमें युवा प्रतीत होते हैं । इससे परात्पर गुरु डॉक्टरजी देवताओं के चिरयुवा होने की विशेषता से एकरूप हो रहे हैं, ऐसा प्रतीत होता है ।
३. परात्पर गुरु डॉक्टरजी के दैवी परिवर्तनों का शास्त्र ध्यान में रखकर उनके प्रति कृतज्ञभाव बढाइए एवं उनके मार्गदर्शन में साधना कीजिए !
उपासक, साधक और भक्त आदि को संतों के ईश्वरीय तत्त्व की अनुभूति हुई होती है । सामान्य लोगों को ‘संत ईश्वर का सगुण रूप होते हैं, यह पढकर अथवा सुनकर ज्ञात होता है; परंतु उन्हें इसकी प्रतीति नहीं हुई होती । संत ईश्वर से एकरूप होते हैं अर्थात संतों का ईश्वरीय तत्त्व बढने के उपरांत उनमें क्या परिवर्तन होता है ?, यह सामान्य लोगों को भी ज्ञात हो, तो उनकी अध्यात्म पर श्रद्धा बढकर वे साधना की ओर आकर्षित होंगे । इस दृष्टि से प्रस्तुत लेख निश्चित ही उपयुक्त सिद्ध होगा । इसके साथ ही इस लेख से साधकों को परात्पर गुरु डॉक्टरजी की असामान्य आध्यात्मिक विशेषताएं ध्यान में आकर उनके प्रति साधकों की श्रद्धा और भक्ति दृढ होने में सहायता मिलेगी ।
‘इस लेख के माध्यम से परात्पर गुरु डॉक्टरजी की महानता सबको ज्ञात हो, अधिकाधिक जिज्ञासु साधना की ओर मुडें तथा साधक हिन्दुत्वनिष्ठ आदि का भक्तिभाव वृद्धिंगत हो’, ऐसी गुरुदेवजी के चरणों में प्रार्थना है ।’
– (पू.) श्री. संदीप आळशी, सनातन के ग्रंथों के संकलनकर्ता एवं कु. भाविनी कापडिया (आध्यात्मिक स्तर ६६ प्रतिशत), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (४.७.२०२२)
परात्पर गुरु डॉक्टरजी के छायाचित्रों की पृथकता पहचानकर उनका संशोधनात्मक अध्ययन करनेवाली सनातन की साधिकाएं !
‘विविध अवसरों पर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के खींचे गए छायाचित्र संग्रहित करना, उन छायाचित्रों से प्रतीत होनेवाली पृथकता का अध्ययन करना, साधकों को भावजागृति के लिए उपयुक्त सिद्ध होनेवाले छायाचित्रों का चयन करना आदि सेवाएं सनातन के रामनाथी आश्रम की साधिका कु. पूनम साळुंखे (आध्यात्मिक स्तर ६४ प्रतिशत) एवं श्रीमती जान्हवी रमेश शिंदे करती हैं । प्रस्तुत लेख के विशिष्ट छायाचित्र भी इन दोनों साधिकाओं ने चुने हैं । इस माध्यम से परात्पर गुरु डॉक्टरजी की आध्यात्मिक विशेषताएं ध्यान में लानेवाली इन दोनों साधिकाओं के प्रति हम कृतज्ञ हैं ।’ – संकलनकर्ता
इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक |