छोटे-बडे सभी अनुभव करते नम्रता व प्रीति । कर जुड जाते लेकर दिव्यता की प्रतीति ।।

नेत्र तृप्त हो जाते, मधुर वचन संतुष्टि प्रदान करते ।
सान्निध्य के क्षण सभी के मन-मंदिर में बस जाते ।।

प.पू. आठवले गुरुजी द्वारा बनाए गए सिद्धांत सच्चे साधक कलाकारों का मार्गदर्शन करते रहेंगे ! – पंडित निषाद बाकरे, शास्त्रीय गायक, ठाणे

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के इर्द-गिर्द प्रकाशमान वृत्त प्रतीत होने पर ‘उनमें आध्यात्मिक शक्ति वास कर रही है’, ऐसा ध्यान में आया

साधना के प्रसार हेतु कठोर परिश्रम करनेवाले तथा अद्वितीय शोधकार्य करनेवाले प.पू. डॉ. आठवलेजी !

‘गोवा स्थित सनातन संस्था के संस्थापक प.पू. डॉ. जयंत आठवलेजी मानवीय रूप में दैवीय अवतार हैं । वे अपनी मातृभूमि पर अर्थात भारत पर असीम प्रेम करते हैं । सनातन संस्था का मुख्यालय भले ही गोवा में है; परंतु प.पू. डॉ. आठवलेजी का अध्यात्मप्रसार एवं धर्मरक्षा का कार्य संपूर्ण विश्व में फैल गया है ।

‘ब्रह्मोत्सव’ के अवसर पर सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी जिस रथ में विराजमान थे, उस रथ को खींचने की सेवा करनेवाले साधकों द्वारा उनके चरणों में समर्पित अनुभूतिरूपी कृतज्ञतापुष्प !

‘जिस प्रकार किसी मंदिर के रथ को वहां के सेवक खींचते हैं, उसी प्रकार साधकों ने श्रीमन्नारायण का रथ खींचे’, सप्तर्षि की इस आज्ञा के अनुसार साधकों ने साक्षात भगवान का यह रथ खींचा ।

स्थूल से तथा आध्यात्मिक स्तर पर सहायता कर रथनिर्मिति की सेवा में बडा योगदान देनेवाले शिवमोग्गा (कर्नाटक) के पंचशिल्पी पू. काशीनाथ कवटेकरजी (आयु ८५ वर्ष) !

सप्तर्षि की आज्ञा से सनातन के साधकों ने शिवमोग्गा (कर्नाटक) के पंचशिल्पी पू. काशीनाथ कवटेकर गुरुजी (आयु ८५ वर्ष) के मार्गदर्शन में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के लिए लकडी का रथ बनाया ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ब्रह्मोत्सव के रथ में विराजमान होने पर साधकों द्वारा अनुभव की गई शब्दातीत कृतज्ञता !

‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी जब रथ में बैठे, उस समय रथ का रहा-सहा अस्तित्व भी नष्ट हो गया । वहां केवल परात्पर गुरु डॉक्टरजी का ही तत्त्व है’, ऐसा मुझे प्रतीत हो रहा था ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ब्रह्मोत्सव हेतु दिव्य रथ बनाते समय साधकों द्वारा भावपूर्ण पद्धति से किए गए परिश्रम की छायाचित्रमय क्षणिकाएं

इस दिव्य रथ को साकार करते समय अनेक शुभचिंतकों ने भी स्वयंप्रेरणा से सहायता की । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने भी समय-समय पर मार्गदर्शन किया ।

दिव्य रथ के निर्मिति की सेवा समर्पित भाव से तथा भावपूर्ण पद्धति से करनेवाले साधकों का परिचय !

‘वास्तव में देखा जाए, तो ‘साधकों के हाथों से रथ बनना’ ही एक बडी अनुभूति है । हम में से किसी को भी रथ बनाने के संदर्भ में बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था । महर्षिजी एवं सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी की कृपा एवं पू. कवटेकर गुरुजी के मार्गदर्शन के कारण ही यह संभव हुआ ।

वर्ष २०२३ के सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ब्रह्मोत्सव हेतु रथ बनाने की पृष्ठभूमि !

रथोत्सव संपन्न होने के उपरांत हमने प.पू. गुरुदेवजी से पूछा, ‘‘इस रथ को वापस भेजने के लिए मन तैयार नहीं हो रहा है । क्या हम इस रथ को रख लें ?’’ उस समय प.पू. गुरुदेवजी ने कहा, ‘‘इस रथ को वापस भेजना है न, तो भेजेंगे । आगे जाकर भगवान की इच्छा हो, तो हमारा अपना रथ तैयार होगा ।’’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ब्रह्मोत्सव के लिए लकडी का रथ बनाने के संदर्भ में सप्तर्षि द्वारा समय-समय पर साधकों का किया गया मार्गदर्शन !

‘वर्ष २०२३ के सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव हेतु संपूर्ण काष्टरथ बनाया जाए । यह रथ वर्ष २०२२ के रथ जैसा गाडी पर बंधा हुआ नहीं होना चाहिए । मंदिर के उत्सव के समय जिस प्रकार भक्त भगवान का रथ खींचते हैं, ठीक उसी प्रकार साधक श्रीविष्णुस्वरूप गुरुदेवजी का रथ खींचें ।