१. ‘भगवान के आंतरिक सान्निध्य में रहना’, यह ज्ञान होने के लिए गुरुदेवजी की आवश्यकता होती है । बडे-बडे ग्रंथों का वाचन करना, यह कोई सच्चा ज्ञान नहीं है । उन ग्रंथों का सारांश समझकर उसके अनुसार आचरण करना, यही सच्चा ज्ञान है ।’
२. ‘शुद्धता में सभी तत्त्व समाहित होते हैं । शुद्धता ही ईश्वरीय गुणों का दर्शन है ! साधना से शुद्धता का अंगीकार होता है । माया के कर्माें से देह अशुद्ध होती है । अशुद्धता ही वासना एवं माया में अटकना, जबकि शुद्धता अर्थात वासनाओं का निराकरण तथा ईश्वर की ओर क्रमण करना ! वासनाओं का निराकरण करने हेतु साधना की आवश्यकता है ।’
– श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ (२४.४.२०२०)