वर्ष २०१७ में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव के समय उन्होंने बताया था, ‘आज महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के अंतर्गत संगीत के (टिप्पणी १) माध्यम से साधना करने हेतु ‘संगीत से संबंधित कार्य आरंभ किया गया है ।’ उनके इस संकल्प के कारण ही यह कार्य अल्पावधि में बढता गया तथा प्रतिदिन बढता ही जा रहा है ।
(टिप्पणी १ – इस लेख में जहां-जहां ‘संगीत’, ऐसा उल्लेख किया गया है, उसमें गायन, वादन, नृत्य एवं नाटक, इन चारों कलाओं का समावेश है ।)
‘संगीत से संबंधित चल रहे इस कार्य का ब्योरा
वर्ष २०१७ से वर्ष २०२३, इन ६ वर्षाें में संगीत से संबंधित संपन्न कार्य का ब्योरा मैं सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के चरणों में अर्पित कर रही हूं ।
(टिप्पणी २ – दो अथवा अधिक प्रकारों के संगीत का एकत्रीकरण करने पर उससे उत्पन्न नए आविष्कार को ‘फ्यूजन’ संगीत कहते हैं ।)
(टिप्पणी ३ – साधक का आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत होता है; इसका अर्थ उसमें विद्यमान सात्त्विकता ६१ प्रतिशत होकर वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है ।)
व्यक्त की हुई कृतज्ञता
‘इस ईश्वरीय कार्य हेतु गुरुदेवजी ने हमारा चयन किया’, इसके लिए चाहे कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त की जाए, अल्प ही है । ‘गुरुदेवजी, आप हमारी अंतिम सांस तक हमसे अविरत अपने चरणों की सेवा करवाते रहें’, यही आपके पावन चरणों में प्रार्थना है ।’
– सुश्री तेजल पात्रीकर (आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत) संगीत विशारद एवं संगीत समन्वयक), महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, फोंडा, गोवा. (९.५.२०२४)